
बीकानेर,सैन समाज के 6 युवाओं की देशनोक के पूल पर हादसे में दर्दनाक मौत की घटना मानवता, सरकार और प्रशासन की संवेदनाशीलता और समाज के सहयोग का मामला है। इस घटना पर सरकार और प्रशासन का रवैया संवेदनशीलता का हो। समाज भी पीडित परिवार के सहयोगी बने। तभी मानवता का कोई अर्थ होगा। सरकार और प्रशासन का रवैया संवेदनहीनता का माना जा रहा है। इसकी परिणित विरोध प्रदर्शन के रूप में उभरी है। घटना के बाद प्रशासन और सरकार को संवेदना दिखानी चाहिए थी। ऐसा हुआ नहीं। लोक कल्याणकारी सरकार है और संवेदनशील प्रशासन। ऐसा नेताओं और अफसरों का व्यवहार नहीं दिखा। केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, राजस्थान सरकार के मंत्री सुमित गोदारा और अन्य जन प्रतिनिधियों को घटना को मानवीय दृष्टिकोण से देखना चाहिए था। वैसा नहीं हुआ तबअब धरना, प्रदर्शन और बीकानेर जिले में विभिन्न क्षेत्रों में बंद के रूप में प्रतिक्रिया हुई। यह सरकार, प्रशासन और मंत्रियों की जनप्रतिनिधि होने की साख के लिए अच्छा नहीं रहा। अब मुद्दे का राजनीतिकरण हो गया है। भले ही गोविन्द मेघवाल और महेन्द्र गहलोत कितना ही स्पष्टीकरण दे कि यह राजनीतिक मुद्दा नहीं है, परन्तु प्रतिबिम्ब राजनीतिक ही आ रहा है।
बीकानेर जिले में मुआवजे की मांग को लेकर बंद और धरना प्रदर्शन अब सरकार, प्रशासन और सत्तारूढ़ जनप्रतिनिधियों व्यवहार पर सवाल बन गया है। बंद के दौरान जन संवेदन भी यही व्यक्त हो रही है कि सरकार और प्रशासन का रवैया असंवेदनशीलता का है। हालांकि दुर्घटना के मामलों में आर्थिक सहायता के कायदे बने है। फिर भी राजनीतिक सहानुभूति और जन दवाब से फैसले होते रहे हैं। घटना दर्दनाक और जिस परिवार और समाज के युवकों की मौत हुई उनको हिला देने वाली है। जनता भी घटना से स्तब्ध है।
नोखा कस्बा जहां के मृतक युवक है पहली बार स्वत स्फूर्त बंद रहा। मृतकों के परिजनों का जिला मुख्यालय पर अनिश्चितकालीन धरना जारी है। परिवारों को 50 लाख मुआवजा और नौकरी की मांग कर रहे हैं। इस मांग को लेकर आज बीकानेर, नोखा, कोलायत, देशनोक ओर लूणकरणसर बंद का आवाह्न किया गया था। जनता ने बंद को समर्थन दिया है। सरकार जनता की माई बाप है। घटना दर्दनाक है। मृतकों के परिजनों पर दुख का पहाड़ टूटा है। कुछ तो दुख दर्द बांटों। भले ही विरोध प्रर्दशन में कांग्रेस के नेता अंगुवा हो सरकार तो जनता की माई बाप है। सुन लो । दुख के दर्द को महसूस कर लो सरकार। राजनीति करने वालों पर मत जाओ। दया, करूणा दिखाओ। पीडित परिवार के आंसूं पौछ दो।