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बीकानेर,जोधपुर,गुर्जरगौड़ ब्राह्मण समाज के शैक्षणिक ट्रस्ट के मामले में एक ऐतिहासिक मोड़ आया है। न्यायालय ने सहायक आयुक्त, जोधपुर द्वारा 01-08-2024 को पारित आदेश को अवैध करार देते हुए निरस्त कर दिया। इस फैसले में न केवल ट्रस्ट के संरक्षक मंडल के अधिकारों की बहाली की गई, बल्कि उन सभी घटनाक्रमों की भी पड़ताल की गई, जिन्होंने ट्रस्टीयों को गुमराह किया और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को धूमिल करने का मार्ग प्रशस्त किया।

न्यायालय की सुनवाई में सामने आया कि हरि गोपाल उपाध्याय द्वारा ट्रस्ट से संबंधित प्रपत्र-8 नियमानुसार प्रस्तुत किया गया था। हालांकि, सहायक आयुक्त ने बिना उचित जांच-पड़ताल के और बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया का पालन किए इस प्रपत्र को खारिज कर दिया। इस घटना से ट्रस्टीयों के विश्वास पर गहरा आघात पहुँचा और उनके भविष्य को अस्थिर कर देने वाले निर्णय की नींव पखाड़ फेंकी गई।

मामले में एक और घोटाले की जड़ सामने आई है। विरेन्द्र शर्मा, जो गौतम शिक्षण संस्थान, जोधपुर के डायरेक्टर हैं, का इस विवाद में सक्रिय योगदान रहा। कई सूत्रों से यह जानकारी सामने आई है कि विरेन्द्र शर्मा ने अपने प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए ट्रस्टीयों को गुमराह किया और अपने पक्ष में फैसले के लिए दबाव बनाया। आरोप है कि इतने समय तक उनके इस हस्तक्षेप के कारण ट्रस्ट के निर्णय प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न हुई और नतीजतन बच्चों के शैक्षणिक भविष्य पर विपरीत प्रभाव पड़ा। आरोपों के मुताबिक, उनकी इस मनमानी नीति के चलते बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को अनदेखा किया गया और उनके विकास के अवसरों पर आक्रामक हस्तक्षेप किया गया।

न्यायालय ने कहा कि सहायक आयुक्त का हस्तक्षेप, जो किसी भी ट्रस्ट के चुनावी प्रक्रिया में उनकी स्वायत्तता पर प्रश्नचिह्न लगाने जैसा था, वह पूर्णतः अवैध है। न्यायालय ने यह भी रुख अपनाया कि ट्रस्ट के चुनावी दस्तावेजों की उचित जांच-पड़ताल न होने के कारण, सहायक आयुक्त द्वारा जारी आदेश में कोई वैधानिक आधार नहीं था। इस संदर्भ में न्यायालय ने ट्रस्ट के हितों की सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हुए, आदेश को शून्य कर घोषित करते हुए मामला अधीनस्थ कार्यालय को पुनः समुचित कार्यवाही के लिए भेज दिया।

इस ऐतिहासिक फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी शैक्षणिक संस्थान या ट्रस्ट के भविष्य पर बाहरी हस्तक्षेप और मनमानी निर्णय का अधिकार नहीं होगा। विरेन्द्र शर्मा द्वारा कथित रूप से ट्रस्टीयों को गुमराह कर उनके विश्वास को तोड़ा जाना अब न्याय की नजर में बर्दाश्त के काबिल नहीं रहेगा। अदालत का यह फैसला न केवल ट्रस्ट के हितों की सुरक्षा करता है, बल्कि भविष्य में ऐसे किसी भी दुरुपयोग को रोकने का सख्त संदेश भी देता है।

यह निर्णय अब सवाल उठाता है कि क्या प्रशासनिक तंत्र में सुधार के लिए और कड़े कदम उठाए जाएंगे ताकि बच्चों के उज्ज्वल भविष्य को किसी भी प्रकार की राजनीतिक या व्यक्तिगत स्वार्थपरक दखलंदाजी से बचाया जा सके। ट्रस्टीयों का विश्वास बहाल हो और हर बच्चे को सही शिक्षा और विकास के अवसर मिले, यही इस फैसले की अहम बात है।

 

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