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बीकानेर,बीकानेर स्थित राजस्थान के एकमात्र आवासीय खेल विद्यालय, सादुल स्पोर्ट्स स्कूल, में लंबे समय से चल रही अनियमितताओं और दुर्व्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज बुलंद करते हुए क्रीड़ा भारती और पूर्व खिलाड़ियों द्वारा शुरू की गई भूख हड़ताल ने अब तेरहवें दिन में प्रवेश कर लिया है। यह आंदोलन सिर्फ एक स्कूल की दुर्दशा का मामला नहीं है, बल्कि राज्य में खेल शिक्षा और खिलाड़ियों के भविष्य के साथ हो रहे खिलवाड़ पर गहरी चिंता का प्रतीक बन गया है।

आंदोलन को बढ़ता समर्थन:

सर्द हवाओं और प्रतिकूल मौसम के बावजूद खिलाड़ियों और क्रीड़ा भारती के कार्यकर्ता अपनी मांगों को लेकर धरने पर डटे हुए हैं। शुक्रवार को इस आंदोलन को और अधिक ताकत मिली, जब मानवाधिकार आयोग की महिला सदस्यों ने भी प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े होकर अपनी एकजुटता दिखाई। आयोग ने कहा कि यह केवल खिलाड़ियों का नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का मुद्दा है, क्योंकि खेलों में लापरवाही बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

समाज का बढ़ता जुड़ाव: अधिवक्ता और जनप्रतिनिधि आए समर्थन में

भूख हड़ताल के बारहवें दिन आंदोलन ने सामाजिक और खेल प्रेमियों का मिल रहा साथ,
बीकानेर के जनमानस का कहना है की “राजस्थान में खेल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने में सादुल स्पोर्ट्स स्कूल की भूमिका अहम है। यहां की दुर्व्यवस्थाएं राज्य की खेल संस्कृति पर गहरा प्रहार हैं।”

इस जनसमर्थन ने आंदोलन को और मजबूती प्रदान की है।

छात्रों की समस्याएं: मांगें जो अनदेखी नहीं की जा सकतीं

क्रीड़ा भारती की प्रमुख मांगे –
1. खेल प्रशिक्षण में कमी
• विद्यालय में स्वीकृत 12 खेलों के लिए NIS डिप्लोमा धारक प्रशिक्षकों की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में 10 पद खाली पड़े हैं। इस वजह से खिलाड़ियों को उच्चस्तरीय प्रशिक्षण नहीं मिल पा रहा है।
2. आवास और भोजन व्यवस्था
• 2007 में खिलाड़ियों के भोजन का दैनिक भत्ता ₹100 तय किया गया था, जो आज तक नहीं बढ़ा है। 18 वर्षों बाद भी यह रकम अपर्याप्त है। छात्रों ने इसे कम से कम ₹300 करने की मांग की है।
• भोजन और रहने की गुणवत्ता बेहद खराब है, जिससे खिलाड़ियों के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
3. बुनियादी सुविधाओं का अभाव
• सभी खेल मैदानों और छात्रावासों की मरम्मत और रखरखाव के लिए अलग से बजट की घोषणा की जाए।

क्रीड़ा भारती और आंदोलनकारियों का कड़ा रुख

क्रीड़ा भारती के उपाध्यक्ष दानवीर सिंह भाटी ने स्पष्ट रूप से कहा,
“यह आंदोलन सिर्फ सादुल स्पोर्ट्स स्कूल तक सीमित नहीं है। यह राजस्थान की खेल प्रतिभाओं और उनके अधिकारों के लिए लड़ी जा रही लड़ाई है। जब तक सभी मांगें पूरी नहीं होतीं, यह भूख हड़ताल जारी रहेगी।”

प्रशासन की चुप्पी पर उठे सवाल

सादुल स्पोर्ट्स स्कूल के बाहर पिछले 12 दिनों से प्रदर्शनकारी भूख हड़ताल पर हैं, लेकिन प्रशासन की चुप्पी ने सवाल खड़े कर दिए हैं। भैरुरतन ओझा ने कहा,
“यदि प्रशासन ने जल्द कदम नहीं उठाए, तो यह आंदोलन राज्य स्तर पर फैल जाएगा। हम मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की मांग करने को मजबूर होंगे।”

आंदोलन का बढ़ता प्रभाव और राज्यव्यापी जागरूकता

यह आंदोलन न केवल बीकानेर, बल्कि पूरे राजस्थान में खेल शिक्षा और खिलाड़ियों के अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ाने का माध्यम बन गया है। छात्रों, पूर्व खिलाड़ियों और सामाजिक संगठनों के साथ-साथ अब राजनीतिक दलों और मानवाधिकार संगठनों का समर्थन इसे एक बड़ा रूप दे रहा है।

दानवीर सिंह भाटी ने यह भी कहा,
“यह आंदोलन केवल आज की समस्याओं को हल करने के लिए नहीं, बल्कि राजस्थान में खेलों के सुनहरे भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए है। इसे किसी भी कीमत पर अधूरा नहीं छोड़ा जाएगा।”

आंदोलन का संदेश: खेल प्रतिभाओं के साथ न्याय की लड़ाई

सादुल स्पोर्ट्स स्कूल में हो रहे इस ऐतिहासिक प्रदर्शन ने यह संदेश दे दिया है कि अगर प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई नहीं की, तो यह आंदोलन राज्यव्यापी आंदोलन का रूप ले सकता है। यह लड़ाई केवल एक स्कूल की दुर्व्यवस्थाओं के खिलाफ नहीं, बल्कि राजस्थान की खेल प्रतिभाओं के लिए न्याय की लड़ाई है।

सर्द हवाओं के बीच धरने पर बैठे ये खिलाड़ी और उनके समर्थक राजस्थान के खेल जगत में बदलाव का प्रतीक बन चुके हैं। अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इस बदलाव को सकारात्मक दिशा में ले जाएगा, या आंदोलन और तेज होगा?

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