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बीकानेर,राजस्थानी, हिन्दी के महान् साहित्यकार कीर्तिशेष शिवराज छंगाणी के 86वें जन्म दिवस पर राजस्थानी युवा लेखक संघ एवं प्रज्ञालय संस्थान द्वारा स्थानीय नत्थूसर गेट बाहर स्थित लक्ष्मीनारायण रंगा सृजन-सदन में उनकी स्मृति में नमन-स्मरण कार्यक्रम का आयोजन आज दोपहर किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ जनकवि एवं शिक्षाविद् विशन मतवाला ने कहा कि कीर्तिशेष शिवराज छंगाणी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। साथ ही वे अजातशत्रु थे। इस अवसर पर मतवाला ने छंगाणी जी की साहित्यिक यात्रा के महत्वपूर्ण प्रसंग साझा करते हुए कहा कि वह गंभीर शिक्षाविद् भी थे।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि संस्कृतिकर्मी एन.डी. रंगा ने उनके प्रेरणादायक व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए उनके साथ शिक्षा जगत में बिताये अनछुए प्रसंग साझा करते हुए कहा कि मेरे जीवन पर उनका गहरा प्रभाव रहा।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि कीर्तिशेष छंगाणी मौन साधक रहते हुए शिक्षा, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में अपनी समर्पित भाव की सेवाएं जीवनपर्यन्त देते रहे। रंगा ने आगे कहा कि उन्होंने राजस्थानी गद्य की रेखाचित्र एवं संस्मरण विधा को ऊँचाईयां प्रदान कर उल्लेखनीय काम किया।
अपनी शब्दांजलि देते हुए कवि गोपाल व्यास ‘कुंठित’ ने उन्हें आदर्श शिक्षक बताया तो समाजसेवी सत्यनारायण छंगाणी ने उन्हें राजस्थानी का सच्चा सपूत कहा और कहा कि वे प्रतियोगी छात्रों को निःशुल्क अपनी सेवाएं देते थे।
वरिष्ठ शिक्षाविद् राजेश रंगा ने कहा कि छंगाणी कुशल प्रशासक के साथ-साथ समर्पित शिक्षाविद् थे। उन्होंने समाज में शिक्षा की अलख जगाई। इसी क्रम में उनके पुत्र गीतकार-संगीतकार सुशील छंगाणी ने कीर्तिशेष शिवराज छंगाणी का रचित लोकप्रिय गीत ‘अरे कोई नाचै गावै रै…प्रस्तुत कर उनकी याद को ताजा किया। इसी क्रम में संस्कृतिकर्मी गिरिराज छंगाणी ने उन्हें स्मरण करते हुए नेक इंसान बताया। इसी क्रम में उनके पोते आनन्द छंगाणी ने उनकी कविता-धोरा धरती तपे तावड़ौ/बादळ्यां क्यूं तरसावै… की सुन्दर प्रस्तुति दी।
इस अवसर पर अपनी शब्दांजलि देते हुए उनके पुत्र इन्द्र छंगाणी, भवानीसिंह अशोक शर्मा, कार्तिक मोदी, नवनीत व्यास, हेमंत पुरोहित, चन्द्रेश दिवाकर, आशीष छंगाणी उपस्थित सभी सभी गणमान्यों ने उन्हें स्मरण करते हुए प्रेरणादायी व्यक्तित्व का धनी बताया।
नमन-स्मरण आयोजन का संचालन आशीष रंगा ने किया एवं सभी का आभार भवानीसिंह ने ज्ञापित किया।

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