बीकानेर, भाकृअनुप- राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र की अनुसंधान सलाहकार समिति (आरएसी) की दो दिवसीय बैठक (5-6 नवम्बर) का आज डॉ.रामेश्वरसिंह, पूर्व कुलपति, बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना की अध्यक्षता में समापन हुआ । इस दो दिवसीय बैठक में समिति सदस्य के रूप में डॉ.त्रिभुवन शर्मा, पूर्व अधिष्ठाता, राजूवास, बीकानेर, डॉ.प्रमोद कुमार राउत, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार- डीजी, भाकृअनुप, नई दिल्ली, डॉ.रणधीर सिंह, पूर्व एडीजी, आईसीएआर, नई दिल्ली, श्री रणवीर सिंह भादू, किसान प्रतिनिधि, बाड़मेर तथा डॉ. अमरीश कुमार त्यागी, सहायक महानिदेशक (एएनपी), भाकृअनुप, नई दिल्ली, डॉ.एस. वैद्यनाथन, पूर्व निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय मांस अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद एवं डॉ.वी.पी.सिंह, पूर्व निदेशक, निशाद एवं अधिष्ठाता, वेटरनरी कॉलेज, झांसी भी इस बैठक से ऑनलाइन जुड़े । एनआरसीसी की ओर से इस बैठक में डॉ.आर.के.सावल, निदेशक, डॉ.राकेश रंजन, समिति सदस्य सचिव तथा सभी वैज्ञानिकों ने सहभागिता निभाई।
निदेशक डॉ.आर.के. सावल ने एनआरसीसी द्वारा प्राप्त अनुसंधान उपलब्धियों एवं चल रही गतिविधियों के संबंध में समिति को अवगत करवाते हुए अनुसंधान के क्षेत्र में केन्द्र के नवाचारों को सदन के समक्ष रखा तथा गतिशील अनुसंधानों के और अधिक बेहतर कार्यान्वयन, सही दिशा व अपेक्षित परिणाम के लिए समिति से उचित मार्गदर्शन की अपेक्षा जताई ।
आरएसी समिति के अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर सिंह ने कहा कि एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे अनुसंधान कार्य एवं व्यावहारिक प्रयास सराहनीय है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के अनुसार अनुसंधान, कार्य योजना, मानकीकरण के लिए और अधिक सीखने की जरूरत है , वैज्ञानिक इस प्रजाति में विद्यमान विलक्षण संभावनाओं को अपनी अनुसंधान कार्य प्रणाली द्वारा उभारने का भरपूर प्रयास जारी रखें । समिति अध्यक्ष ने बदलते परिदृश्य में उष्ट्र पालन व्यवसाय के समक्ष आने वाली विविध चुनौतियों एवं इस पशु की देश में घटती व वैश्विक स्तर पर बढ़ती संख्या तथा इसकी प्रासंगिकता को दृष्टिगत रखते हुए ऊँटों संबद्ध विविध पहलुओं पर गहन व नवाचार अनुसंधान की आवश्यकता भी जताई तथा कहा कि उष्ट्र डेयरी व्यापार की अवधारणा को वैश्विक स्तर पर ले जाने हेतु इन देशों की सहभागिता, आयात, मार्केटिंग डवलपमेंट आदि पहलुओं को नीतिगत लाते हुए ऊॅट को ‘डेयरी मॉडल के रूप में तैयार किया जा सकता है ।
समिति सदस्य डॉ.रणधीर सिंह ने कहा कि देश में उष्ट्र प्रजाति की स्वास्थ्य सुरक्षा हेतु वैश्विक स्तर पर ऊँटों की बीमारियों के प्रति भी सचेत रहने होगा साथ ही इस पशु प्रजाति के लिए चरागाह विकसित करने हेतु उपयुक्त पौधे उपलब्धता होनी चाहिए । डॉ. प्रमोद कुमार राउत ने वैज्ञानिकों को परियोजना संबंधित अनुसंधान कार्यों के बेहतर परिणामों के लिए उपयोगी सुझाव दिए । डॉ. त्रिभुवन शर्मा ने अनुसंधान के क्षेत्र में अपने अनुभव साझा किए वहीं श्री रणवीर सिंह भादू ने ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य में लाभकारिता का प्रचार-प्रसार करने, अच्छी नस्ल ऊँट विकसित करने, व ऊँटों के बाल, हड्डी, त्वचा से निर्मित उत्पादों का लाभ पशुपालकों तक पहुंचाने की आवयकता जताई । इस बैठक में ऑनलाईन जुड़े डॉ. अमरीश त्यागी ने ऊँटनी के दूध से फार्मास्युटिकल, कॉस्मेटिक व मूल्य संवर्धित उत्पाद विकसित करने हेतु प्रोत्साहित किया ताकि इनके माध्यम से राजस्व उतपादन अधिक प्राप्त हो सकेगा । डॉ.वी.पी.सिंह ने परिवर्तित परिदृश्य में उष्ट्र पालन से जुड़ी कई चुनौतियों व समस्याओं को इंगित किया। डॉ.एस.वैद्यनाथन ने भी अनुसंधान कार्यों को वैज्ञानिक कसौटी पर खरा उतारने के लिए उपयोगी सुझाव दिए । बैठक के समापन पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.राकेश रंजन, समिति सदस्य सचिव ने अध्यक्ष व सभी समिति सदस्यों व वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त किया ।