Trending Now




बीकानेर। विधि विज्ञान प्रयोगशाला (एफएसएल) बलात्कार और हत्या के मामलों में आरोपियों को सलाखों के पीछे धकेलने में अहम रोल अदा कर रही है। अपराधियोंं का अब बचकर निकलना मुश्किल हो रहा है। कई मामले ऐसे भी सामने आ रहे हैं, जिनमें पीडि़त पक्ष मुकर गया लेकिन एफएसएल रिपोर्ट से वह बच नहीं पाया और सजा भुगत रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि हाल ही के सालों में बीकानेर जिले में दर्जन भर से अधिक मामले ऐसे हैं, जिनमें एफएसएल की रिपोर्ट को आधार मान कर सजा दी गई है।

वृद्धा की गला घोंटकर हत्या
केस एक
नाल थाना क्षेत्र में छह साल पहले एक युवक ने अपनी ही मौसी शीला देवी की गला घोंटकर हत्या कर दी। सबूतों को नष्ट करने के लिए वृद्धा पर पेट्रोल छिड़कर जला दिया। पुलिस जांच में पता चला कि वृद्धा की कोटगेट थाने में गुमशुदगी दर्ज है। हत्या करने वाला युवक वृद्धा शीला का भानजा निकला। उक्त मामले में एफएसएस की रिपोर्ट से आरोप प्रमाणित हो गए। न्यायालय ने एफएसएल की रिपोर्ट के आधार पर उम्रकैद की सजा सुनाई जा सकी।

मंदबुद्धि नाबालिग हवस का शिकार

केस दो

खाजूवाला थाना क्षेत्र में ११ मार्च, 2017 की सुबह घर से शौच के लिए गई मंदबुद्धि नाबालिग को अभियुक्त महावीर बावरी ने हवस का शिकार बना डाला। बालिका मंदबुद्धि होने से पुलिस को जांच में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। पांच साल तक मामला न्यायालय में चला। पुलिस की जांच को एफएसएल रिपोर्ट से दिशा मिली और अभियुक्त को सजा मिल पाई।

इन तीन जांचों पर टिकी विश्वसनीयता

ब्लड टेस्टिंग
घटनास्थल से मिले सैम्पल और मेडिकल ज्यूरिस्ट द्वारा लिए गए कंट्रोल सैम्पल की सीरम अनुभाग में जांच होती है कि इनमें मौजूद खून इंसान का है या जानवर का। इंसान का खून मिलने पर ही ग्रपिंग की जाती है।
सीमन गु्रपिंग

सीमन ग्रपिंग के लिए कंट्रोल सैम्पल की जांच की जाती है। इसके लिए भी ब्लड गु्रपिंग वाली प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें दो दिन का समय लगता है। सीरोलॉजी के एक केस का परिणाम देने में चार दिन का समय लगता है।

ब्लड गु्रपिंग
खून से सने कपड़े का भाग काटकर उसे एंटीसीरा कैमिकल में एक रात चार डिग्री टेमप्रेचर पर फ्रिज में रखते हैं। फिर अन्य कैमिकल से साफ किया जाता है। इसमें ताजा खून से तैयार कोशिकाएं डाली जाती है। दो घंटे वापस चार डिग्री के टेमप्रेचर पर फ्रिज में रखते हैं। ब्लड ग्रपिंग प्रक्रिया में दो दिन का समय लगता है।
ऐसे होता है अपराध प्रमाणित
घटनास्थल पर मिले सबूतों (बाल, खून, कपड़े) में से ब्लड ग्रुप निकाला जाता है। फिर मेडिकल जांच से डॉक्टर की ओर से भेजे पीडि़ता और अपराधी के कंट्रोल सेंपल (शरीर से निकाला गया खून, थूक, लार व बाल) से ब्लड ग्रुप निकाला जाता है। यदि अपराधी का रक्त गु्रप घटनास्थल पर मिले सैम्पल के गु्रप से मिल जाता है तो यह स्पष्ट हो जाता है कि उक्त अपराधी ने ही वारदात को अंजाम दिया है।
आंकड़ों पर नजर
खण्ड प्रकरण लंबित
जैविक खंड ५३०० ४
सीरम खंड ५५20 १2७
भौतिक खंड ११९४ १2५
अस्त्रक्षेप खंड ६८४ १८
विष खंड ४८2० 220 (आंकड़े औसत में है विधि विज्ञान प्रयोगशाला बीकानेर से प्राप्त)
इनका कहना है…
एफएसएल रिपोर्ट बदमाशों को सलाखों के पीछे धकेलने में काफी अहम होती है। दर्जनों मामले ऐसे हैं, जिनमें एफएसएल रिपोर्ट को आधार मानते हुए सुजा मुर्करर की गई। वर्ष २०१४ के बाद जैविक खण्ड, भौतिक, विष, अस्त्रक्षेप, सीरम खंड के परिणाम के आधार पर कई मामलों में अपराधी जेल में हैं।
डॉ. संजय शर्मा, उप निदेशक विधि-विज्ञान प्रयोगशाला बीकानेर

Author