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बीकानेर, महाजन प्रेम का संदेश लेकर जाने कितने प्रवासी परिदे सैकड़ों हजारों किलोमीटर का सफर तय कर सरहद के इस पार पहुंच रहे हैं। कुछ खूबसूरत और सुकून देने वाला दृश्य बीकानेर श्रीगंगानगर के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग 62 के आसपास इन दिनों गाहे-बगाहे देखने को मिल रहा है।डेमोइसेल क्रेन जो राजस्थानी संस्कृति के पृष्ठों में कुरजा या कुर्जा के नाम से दर्ज है। इन दिनों उसकी क्लूणकरनसर झील के नमकीन पानी में कलरव करते कुणों के झुण्ड अठखेलियों से लूनकरणसर क्षेत्र की नमकीन झील में मानो मिठास पसर गया हो। हर बार से इस बार कुछ पहले ही कुरजा यहां पहुंच गई है। सिर्फ यहीं नहीं राजस्थान के फलौदी में खींचन, बीकानेर में गजनेर झील, कोलायत तथा सूरतगढ़ भी इनके कलरव से गुलजार हो रहे हैं। चुरु का ताल छापर और पाना पक्षी विहार भरतपुर भी इन दिनों इनके नेह से अछूते नहीं है। ऐसे में हिन्दी सिनेमा के एक खूबसूरत नगमे के यह बोल सहसा जुबा पर आ जाते हैं ‘पछी नदिया पवन के झोंके, कोई सरहद ना इन्हें रोके’। देश की मिट्टी से कुरजा का जुड़ाव आजकल प्रवासी पक्षी करजा का जमावड़ा लूनकरणसर क्षेत्र के विभिन्न जल स्रोतों के निकट नजर आ रहा है। पक्षी विशेषज्ञों की माने तो एक समय था जब कुरजा साइबेरिया से ईरान सहित कई देशों की सरहदें लांधकर पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में उतरा करते थे। जहां इनका शिकार होने लगा। नतीजन इन परिदों ने वहां से अपना मुह मोड़ लिया। हिंदुस्तान को मिट्टी में अब इन्होंने अपना महफूज। लूनकरनसर झील को विदेशी पक्षियों की शरणस्थली माना जाता है। नमक की परत से ढकी झील का अस्तित्व खतरे में है। दरअसल झील के शहर किनारे बने होने के चलते गंदा पानी नाले के द्वारा इस झील में गिरता है जिसके कारण झील का पानी काला होने लगा है। मृत पशु भी यहां फेंक दि जाते हैं। नतीजन पानी सड़ांध मारता रहता है। अगर झील में गंदे पानी के निकास की यही व्यवस्था रही तो निश्चित तौर पर यह खूबसूरत स्थल एक दिन वीरान हो जाएगा। आशियाना तलाश लिया है। हर साल सितंबर महीने में इन पक्षियों का आना शुरू हो जाता है और मार्च के अंत तक सर्दी के समय यहीं अपनी रगत बिखेरते है। विरहणियों की सखी कुरजा राजस्थानी लोक गीत इनके रंग में रंगे नजर आते हैं। डेमोइसेल क्रेन की सगत में इस बार पाइडेवोसेट, बारहेडेडगूज और समुद्री पक्षी ग्रेटर फ्लेमिंगो भी लूणकरणसर की नमक झील का जायका लेने पहुंचे हैं। डेमोइसेल क्रेन तो लोक भाषा में विरहणियों की सखी के नाम से साहित्य अकादमी दिल्ली से सम्मानित लूनकरणसर के युवा कवि राजूराम बिजारणियां बताते हैं कि कुरजा के लिए यह प्रजनन का समय होता है। विशेषकर लूणकरणसर झील व बीकानेर इन दिनों कुरजा के लिए प्रजनन के लिए हर लिहाज से सुरक्षित स्थान माना जाता है। खाने की तलब इनको आसपास स्थित खेतों में ले जाती है। दिन भर खेतों में अपना भोजन जुटाकर शाम होते-होते अपनी निर्धारित शरणस्थली की ओर रुख कर लेते हैं। वर्णित है सलेटी रंग और गर्दन के भवर मिला दे ऐ जैसे दर्जनों गाँ नीचे झूलते हल्की कालिमा वाले विरहणियों की पीड़ा को बड़ी शिद रोएदार पंखों वाले ये परिंदे शर्मीले के साथ प्रस्तुत करते रहे हैं। अंग्रेजी स्वभाव एवं एकातप्रिय मिजाज के वर्णमाला के वी आकार में गुण्ड कारण थोड़ी सी आहट भर से उड़ान बनाकर आसमान में ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले ये पक्षी बहुत दूर तक देखने के लिए भी जाने जाते है। यह पक्षी लोक गीतों भर देते हैं। कुरजा म्हारी हालोनी में बेहतरीन संदेश वाहक के रूप में आलीजा रे देश और कुरजा म्हारी

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