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बीकानेर,राष्ट्रीय स्तर पर गोचर संरक्षण और विकास के प्रस्तावों में सभी राज्यों में गोचर विकास बोर्ड गठित करने, भारत सरकार और राज्य सरकारों के स्तर पर गोचर, ओरण, आगोर को इकोलोजिकल पार्क या जूलोजिकल पार्क स्तर से ए प्लस का ग्रेड देकर संरक्षण और विकास मद में संसाधन देने, गोचर संरक्षण में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों के तहत गोचर भूमि का अन्य उपयोग प्रतिबंधित करने, गोचर से सभी तरह के अतिक्रमण हटाने,गोचर की सर्वे रिपोर्ट तैयार करने, गोचर की तादादी कायम रखने, स्थानीय वनस्पित, जीव जन्तु के संरक्षण की आवश्यक सुरक्षा व्यवस्था करने, हर गांव में ग्रामीणों के स्तर पर गोचर विकास में सहयोग प्रदान करने के नीतिगत सुझावों पर देश भर से इस क्षेत्र में काम करने वाले प्रतिनिधियों की सहमति बनी है। गोचर संरक्षण और विकास पर जीसीसाआई के मंच से नेशनल वेबीनार में देश के हर राज्य से प्रतिनिधि लोग शामिल हुए। वेबीनार में राष्ट्रीय कामधेनु आयोग और गुजरात गोचर्र विकास बोर्ड के पर्व अध्यक्ष डा. वल्लभ भाई कथीरिया, राजस्थान सरकार के पूर्व मंत्री और गोचर विकास आन्दोलन के अगुवा देवी सिंह भाटी, देश के विभिन्न राज्यों के 830 गांवों में ग्रामीणों के सहयोग से गोचर विकास का काम करने वाले डा. गिरिश भाई शाह, अजीत महापात्रा, पूर्व कुलपति, निदेशक, योजनाकार, पर्यावरण विशेषज्ञ, एडवोकेट, गोचर मुद्दे पर काम करने वाले प्रमुख लोग इस वेबीनार में सुझाव दिए। दो घंटे चले इस विचार विमर्श में तय किया गया गोचर विकास और संरक्षण की राष्ट्रीय नीति बनाने के लिए केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को राष्ट्रीय गोचर संरक्षण और विकास का प्रारुप प्रस्तुत किया जाएगा। डा. वल्लभ भाई कथीरिया, देवी सिंह भाटी, डा. गिरिश भाई शाह, उडीसा, गोवा, मध्य प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिमी बंगाल, उतराखण्ड, हरियाणा, छतीसगढ़, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात समेत विभिन्न राज्यों से आए प्रतिनिधि लोगों ने एक स्वर में कहा कि भारत में गोचर संस्कृति की पुर्नस्थापना होनी चाहिए है। गोचर प्राकृतिक रूप से स्थानीय वनस्पति और जीव जन्तुओं की संरक्षण स्थली है। जैव विविधता का प्राकृतिक पार्क है। पर्यावरण संतुलन का आधार है। पशुधन के चारागाह के साथ ग्रामीणों की आजीविका का साधन है। गोचर एक जीवन संस्कृति है जो मानव की जरूरतों और प्रकृति चक्र संतुलन की धुरी है। इस मंच से देशभर के गोचर संरक्षण पर काम करने वाली संस्थाओ, लोगों और विशेषज्ञों को एक मंच पर आने पर आभार जताया गया। सभी ने इस आन्दोलन को सतत रूप से जारी रखने पर सहमति जताई। साथ ही गोचर का संरक्षण और विकास में समाज और ग्रामीणों की सहभागिता पर जोर दिया गया। डा. कथीरिया, भाटी और शाह का कहना था कि अब पूरे देश गोचर को लेकर जन जागृति आई है। सरकार का भी ध्यान गया है। गोचर आम सहमति से समाज का नियंत्रण में हो। जनहित में गोचर चारागाह की भूमि का अन्य उपयोग के लिए अवाप्ति की कानून में छूट के प्रावधान को हटाया जाए। गोचर से गांव स्वावलम्बन, प्रकृति और पर्यावरण संतुलन और संरक्षण रह सकता है। गोचर विकास का काम गांव के लोग करें तब ही गोचर संस्कृति की पुनर्स्थापना हो सकेगी। इस दौरान राजस्थान और गुजरात में गोचर विकास के माडल के बारे में बताया गया। राजस्थान बीकानेर सरेह नथानिया गोचर में समाज के सहयोग से गोचर सुरक्षा के लिए 40 किलोमीटर लम्बी दीवार बनाने, गुजरात मे गोचर भूमि से बबूल हटाने, पूरे देश में गोचर भूमि की स्थिति और वहां किए जा रहे कार्यो के बारे में प्रतिनिधि लोगों माडल प्रस्तुत किया और सुझाव रखे। राजस्थान सरकार की ओर से मंडियों में लगने वाले गो सेस की राशि गोचर विकास में खर्च करने और अन्य राज्यों में भी यही पैर्ट्रन अपनाने का सुझाव दिया गया। केन्द्र सरकार में गोचर विकास की सशक्त नीति बनाने, कृषि विवि, कृषि विज्ञान केन्द्र, कृषि और वन विभाग की ओर से गोचर विकास में सहयोग करने की नीति बनाने का सुझाव आया। हर राज्य में सशक्त अधिकार प्राप्त गोचर विकास बोर्ड बनाने का भी सुझाव दिया गया।

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