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बीकानेर,जाम्भाणी साहित्य अकादमी बीकानेर और गुरु जम्भेश्वर पर्यावरण संरक्षण शोधपीठ जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर के संयुक्त तत्वावधान में मारवाड़ इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोलते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्रीय प्रचारक नींबाराम भाई साहब ने कहा कि भारतीय ज्ञान परम्परा की प्राचीन अवधारणा प्रकृति संरक्षण और प्रकृति में ही परमेश्वर के दिग्दर्शन की भावना का संवाहक है।बिश्नोई समाज

प्रकृति संरक्षण के लिए बिश्नोई समाज का पांच शताब्दियों से चला आ रहा आंदोलन आज प्रासांगिकता के चरमोत्कर्ष पर है।यह प्रकृति ही प्राणिमात्र की जीवनदात्री है। इस धराधाम पर सभी जीवों का नवल विकास इसी के अङ्क में होता है। इसी से सभी जीवन धारण किये हुए हैं। प्रकृति की चेतनता से ही सम्पूर्ण विश्व सचेतन है। प्रकृति के दिव्य शक्ति सम्पन्न होने के कारण ही संस्कृत काव्यों में इसकी स्तुति की गयी है। प्रकृति ही पर्यावरण का व्यक्तरूप है। संस्कृत काव्यों में प्राकृतिक घटकों को दैवभावना से मण्डित करने का यही अभिप्राय रहा है कि मानव-मन इनके प्रति श्रद्धावनत होकर इनका सम्मान करें। भक्ति आंदोलन के समय जिन संतों ने पंथ प्रर्वतन किये उनमें बिश्नोई पंथ उत्तर भारत का प्रथम पंथ है। भक्ति आंदोलन के संतों ने अपनी बात बढ़े सौम्य,सहज और सरल तरीके से बताई, उन्होंने किसी की काट नहीं की और न प्रतिस्पर्धा की, उन्होंने कहा ईश्वर प्राप्ति के अनेक मार्ग हो सकते हैं- एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति। हमारी सनातन संस्कृति चिर पुरातन है। भारत बहुत प्राचीन देश है यह देवताओं द्वारा निर्मित है। हमारे यहां एक श्लोक आता है- हिमालयं समारभ्य यावत् इंदु सरेावरम् ।
तं देवनिर्मितं देशं हिंदुस्थानं प्रचक्षते ।।यानि हिमालय से प्रारम्भ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। भारत में रहने वाले जिसे आज लोग हिंदू नाम से ही जानते आए हैं।
प्रकृति परमार्थ करती है और हम स्वार्थवश उसका दोहन नहीं शोषण करते हैं। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ विनाश का द्वार खोलना है। प्रकृति में दैवत्व की भावना किये विना पर्यावरण संरक्षण की कल्पना नहीं की जा सकती है। प्रकृति के दैव स्वरूप का वरण करना धर्माचरण है। धर्माचरण से चित्त निर्मल होता है, निर्मल चित्त ही आत्मसाक्षात्कार का भाजन होता है। प्रकृति के साथ धार्मिक भावना स्थापित करने से मानव हृदय में आस्था का अंकुरण हो जाता है। इसी अंकुरण से स्वस्थ पर्यावरण का विशाल वट वृक्ष पुष्पित एवं पल्लवित होता है। इसी अर्थ में प्रकृति पूजनीया एवं वन्दनीया हो जाती है। बिश्नोई समाज पिछली पांच शताब्दियों से यही साधना कर रहा है।15वीं शताब्दी में आध्यात्मिक ज्योति पुंज के रूप में प्रकट होकर अपने आलोक से जगत को प्रकाशित करने वाले श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान ने प्रकृति को भगवान मानने का आदेश देते हुए प्रकृति की पूजा से परमेश्वर की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया। इन्होंने अपना पूरा जीवन प्रकृति के सहचर में बिताया और लोगों को इसके साहचर्य का महत्व बताया। ज्ञानोपदेश काल के 51 वर्ष इन्होंने समराथल धोरा पर एक कंकेड़ी वृक्ष के नीचे बैठकर बीता दिये। प्रकृति के श्रृंगार पेड़-पौधे,नदी, पहाड़, तालाब, वन्यजीवों से प्यार करते हुए प्राणपण से इनके संरक्षण का इन्होंने उपदेश दिया। इनके अनुयायियों ने इनके आप्त वाक्यों का अक्षरशः पालन किया और पांच सदियों के पंथ के इतिहास को देखें तो हजारों लोगों ने प्रकृति का संरक्षण अपने प्राण देकर किया है। अगर विश्व श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान के उपदेशों का अनुसरण करे तो यह प्रकृति पुनः अपने मूल स्वरूप को प्राप्त करते हुए रंगीन, प्रफुल्लित, हर्षित और आनंदित हो सकती है।भारत अनादि काल से ज्ञान प्रधान देश रहा है। भारतीय ऋषियों द्वारा रचा गया ऋग्वेद विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ है। यहाँ ऋषि-मुनियों का मुख्य कार्य ही ज्ञान की खोज था। गुरु जाम्भोजी ने भी अपनी वाणी में ज्ञान की खोज करने का आह्वान किया है- खोज प्राणी ऐसा बिनाणी,नुगरा खोजत नांही अर्थात हे प्राणी! उस परमतत्त्व की खोज करो, नुगरे उसके खोज नहीं करते यानि मनुष्य जन्म लेकर जो अपने कल्याण का उपाय नहीं करते वे सब नुगरे हैं। अब जिज्ञासा यह होती है कि उसे खोजे कहां तो गुरु जाम्भोजी आगे कहते हैं – मेरा सबद खोजो सबदे सबद समाई अर्थात मेरे सबदों में उस तत्व की खोज करो वह इनमें सर्व व्याप्त है। आधुनिक भाषा में कहें तो रिसर्च करने वाले को ही ऋषि कहा गया था जो नित्य नवीन खोज करके नये नये रहस्यों का उद्घाटन करते रहते हैं। उन ऋषियों के द्वारा लिखे गए ग्रंथों की अपार संपदा थी हमारे पास और आततायीयों ने उसमें से बहुत से ग्रंथ को जलाकर भस्म कर डाला परन्तु उसके बाद भी हमारे पास इतना कुछ बचा रह गया जो जगत को आश्चर्य करने के लिए पर्याप्त है। गुरु जाम्भोजी ने अपने जीवन में शुद्ध कर्मों को करने पर बहुत जोर दिया था क्योंकि कर्मों की शुद्धता से जीवन पवित्र होता है तथा पवित्र जीवन ही मंगल चिंतन कर सकता है,वह मंगल चिंतन ही आपका शुद्ध ज्ञान है। आज सदियों बाद भारतीय ज्ञान परंपरा ने अंगड़ाई ली अपने खोए हुए गौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए। आज वह समय आ गया है जब गुरु जम्भेश्वर जी पर्यावरणीय चेतना और युक्ति मुक्ति वाली वाणी की युगानुकुल व्याख्या हो ताकि इस विज्ञान और तकनीक के युग में इसे युवा भी सम्यक प्रकार से समझ सके। विद्यालयों, महाविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में यह शामिल हो और विश्वविद्यालयों में इस पर शोध किया जाए।
इस सम्मेलन को राजस्थान सरकार के मंत्री श्री सुरेश सिंह रावत,श्री मदन दिलावर,श्री अविनाश गहलोत,श्री के के बिश्नोई, राज्यसभा सांसद श्री राजेन्द्र गहलोत, कुलदीप प्रो कन्हैया लाल श्रीवास्तव और अनेक पर्यावरणविदों, विद्वानों ने भी संबोधित किया।डॉ ओपी बिश्नोई ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सम्मेलन को आचार्य रामानंद जी मुकाम पीठाधीश्वर, आचार्य गोरधनराम जी मुकाम, आचार्य सच्चिदानंदजी लालासर साथरी,श्री अतुल भंसाली विधायक,श्री मलखान सिंह विश्नोई पूर्व विधायक,श्री हीरालाल बिश्नोई पूर्व विधायक,श्री किशनाराम बिश्नोई पूर्व विधायक,प्रो प्रवीण गहलोत पूर्व कुलपति,प्रो सुनील आसोपा, श्री घनश्याम ओझा,रवि बिश्नोई क्रिकेटर, डॉ आर के बिश्नोई,श्री अशोक ओझा न्यूजर्सी, डॉ सत्यपाल बिश्नोई,प्रो प्रीति सागर, डॉ निक्की चतुर्वेदी, डॉ दलपत सिंह, डॉ दिनेश गहलोत ने भी संबोधित किया। मंच संचालन डॉ सुरेन्द्र बिश्नोई और हितेंद्र गोयल ने किया।इस अवसर पर देवेंद्र बिश्नोई आईपीएस, राजाराम धारणिया, रामस्वरूप धारणिया, सोहनलाल बिश्नोई, सुखराम बोला, मोहनलाल लोहमरोड़ बीडीओ,डॉ महेश धायल, डॉ भंवरलाल बिश्नोई डॉ लालचंद बिश्नोई, डॉ भंवरलाल उमरलाई,एन आर बिश्नोई, डॉ पुष्पा बिश्नोई, डॉ रामस्वरूप बिश्नोई, एडवोकेट रामदयाल झूरिया हरदा,प्रदीप बिश्नोई मुरादाबाद, डॉ अनुराग चौधरी, एडवोकेट संदीप धारणिया, डॉ हरिराम बिश्नोई, गोरधनराम बांगड़वा आदि गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

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