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बीकानेर, जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ के आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरिश्वरजी के सान्निध्य में चल रहे श्री 45 आगम तप में मंगलवार को ढढ्ढा चौक की आगम वाटिका में श्री चन्द्रदेध्य प्रकीर्णक सूत्र (पयन्ना) की मंत्र जाप के साथ आराधना की गई। श्री सुगनजी महाराज का उपासरा ट्रस्ट व श्री जिनेश्वर युवक परिषद की ओर से अट्ठाई की तपस्वी बालिका यश्वी गोलछा व भूमि मुसरफ, बाड़मेर के कल्प कुमार सिंघवी, हर्षा व मोक्षा सिंघवी का 37 दिन की तपस्या पूर्ण कर चुके कन्हैयालाल भुगड़ी, 19 दिन के तपस्वी रौनक बरड़िया, श्री जिनेश्वर युवक परिषद अध्यक्ष संदीप मुसरफ, शिखरचंद, कंवर लाल खजांची आदि वरिष्ठ श्रावक-श्राविकाओं ने किया।
आचार्यश्री ने स्वयं अपने मुखारबिंद से तपस्वियों की अनुमोदना गीत के मुखड़े करते हुए कहा कि जैन धर्म में तपस्या आत्मशुद्धि व कर्म निर्जरा के लिए की जाती है। तपस्या करने के लिए मजबूत ंसंकल्पबल,मनोबल व आत्मबल जरूरी है। तप साधना, उपासना व औषधि तथा मोक्ष मंदिर का सोपान है। इन बालिकाओं व श्रावक बरड़िया व भुगड़ी लम्बी तपस्या कर दृढ़ संकल्प व हिम्मत का परिचय दे रहे है। तपस्याओं की अनुमोदना करने, तपस्या के लिए प्रेरित करने से पुण्यों की प्राप्ति तथा जिन शासन की प्रभावना होती है।
आचार्यश्री ने धर्मचर्चा में बताया कि श्री चन्द्रदेध्य प्रकीर्णक सूत्र (पयन्ना) में विनय गुण, आचार्य के गुण, शिष्यों के गुण, चारित्र के गुण, चारित्र की आराधना करने वाले जीव और उससे होने वाले फायदे और अंत में समाधिमरण की प्रशंसा आदि सात अधिकारों का संक्षिप्त सरल पद्धति से बताया गया है। मन को स्थिर रखकर आराधक भाव में आत्मा को जोड़ने, मन को समाधिभाव में स्थिर करने के लिए राधावेध का उल्लेख किया है। मुनि सम्यक रत्न सागर ने आठ प्रकार के वर्गणा में भाव व द्रव मन आदि के बारे में विस्तार से समझाया।

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