बीकानेर,अजित फाउण्डेशन द्वारा आयोजित मासिक पुस्तक चर्चा कार्यक्रम के तहत इस माह वरिष्ठ साहित्कार एवं लेखिका सरोज भाटी की ‘‘शब्द सार सहस्त्र धार‘‘ पुस्तक पर चर्चा अजित फाउंडेशन सभागार में आयोजित की गई।
इस पर अवसर पर मुख्य समीक्षक के रूप में पुस्तक की समीक्षा करते हुए कवि-कथाकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि कालयात्रा की दृष्टि से छंद विधा सबसे पुरातन, सबसे अधिक लोकप्रिय और प्रासंगिक मानी गई है। कविता की सबसे छोटी इकाई छंदबद्ध दोहो को माना गया है। सरोज भाटी द्वारा कृत पुस्तक में विभिन्न विषयों पर 1111 दोहों का समावेश है जोकि बहुत ही उम्दा भाषा में लिखे गए है। स्वर्णकार ने कहा कि छंदबद्ध कविता शब्दों का खेल नहीं बल्कि एक गंभीर सांस्कृतिक कर्म है। इसे मनुष्य की विकास यात्रा में सहयोगी, विचार संवेदना यात्रा भी कहा जा सकता है। एक तरह से देखा जाये तो कविता लोकधर्म की संवाहिका शक्ति है। राजाराम ने कहा कि ‘‘शब्द सार सहस्त्र धार दोहा संग्रह पुस्तक में लोक संस्कृति से जुड़े दोहों के साथ-साथ धर्म-अध्यात्म, नीति, प्रेम, युग-बोध, परम्परागत लोक व्यवहार, राजनीति और प्रकृति पर कई दोहे लिखे गए जो मन को मोहते है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष शिक्षाविद् प्रो. नरसिंह बिनानी ने कहा कि पुस्तक ‘‘गागर में सागर’’ भरने जैसी है। इस पुस्तक में कम शब्दों में बहुत ज्यादा बात कही गई है जोकि समाज एवं वर्तमान परिवेश के लिए बहुत आवश्यक है। प्रो. बिनानी ने कहा कि कोई भी शब्द हो वह ब्रहाण्ड में रहते है इसलिए शब्द की तरंग हमेशा हमारे ऊपर असर डालती है। प्रो. बिनानी ने बताया कि इस पुस्तक में रचित हिन्दू माह के बारह महिनों का वर्णन बहुत ही अनुकरणीय रूप में लिखा गया है, इससे हमारी परम्पराएं पोषित होती है।
पुस्तक की लेखिका सरोज भाटी ने कहा कि हमारे लगभग सभी शास्त्र छंद विधा में लिखे गए है और मेरे द्वारा रचित ये दोहे भी छंद विधा से ही प्रेरित है। इस पुस्तक की नींव कोराना काल में रखी गई उस दौरान दौहा विधा में लिखने हेतु स्वयं द्वारा प्रेरित हुई। पुस्तक में मुख्य रूप से 1111 दोहे है जोकि विभिन्न विषयों को समाविष्ट किए हुई है।
कार्यक्रम संयोजन व्यंग्यकार लेखक संपादक प्रो. डॉ. अजय जोशी ने कहा कि दोहो में संप्रेषणीयता होना जरूरी है जिससे उनकी गेयता बढ़ती है जिससे वो जन-जन तक पहुंच पाते हैं। डॉ. जोशी ने कहा कि कविता हो या गीत उनमें छंद, लय और स्मप्रेषणता का होना आवश्यक है। उन्होंने वर्तमान साहित्य कि स्थिति की ओर इशारा करते हुए कहा कि लिखा तो बहुत ज्यादा जा रहा है लेकिन पढ़ा बहुत कम जा रहा है। इसलिए अच्छी पुस्तकों का लेखन और उन पर चर्चा बहुत जरूरी है।
संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली ने कार्यक्रम संचालन करते हुए कहा कि प्रतिमाह अलग-अलग विधाओं की पुस्तकों पर चर्चा आयोजित की जाती है जिससे पुस्तक की पाठकों को जानकारी मिलती है और पाठक पढ़ने हेतु प्रेरित होते हैं। इसी क्रम में उन्होंने संस्था द्वारा संचालित सभी गतिविधियों से सभी को अवगत करवाया।
कार्यक्रम में जुगल किशोर पुरोहित, डॉ. कृष्णा आचार्य, बाबूलाल छंगाणी, यामिनी जोशी, डॉ. जगदीश बारहठ, डॉ. मोहम्मद फारूक चौहान, राजेन्द्र जोशी, डॉ. शंकरलाल स्वामी आदि ने सरोज भाती की पुस्तक के विविध आयामों पर चर्चा की। साथ ही परशुराम भाटी, गिरीराज पारीक, चंद्रशेखर आचार्य, कासिम बीकानेरी, योगेन्द्र पुरोहित, बी.एल नवीन आदि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के अंत में हास्य व्यंग्य कवि बाबूलाल छंगाणी ने सभी आगुन्तुकों का संस्था की तरफ से आभार ज्ञापित किया।