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बीकानेर,कवि दुष्यन्त ने कहा था, हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं, मेरी कोशिश हैं यह सूरत बदलनी चाहिए। लेकिन सूरत नहीं बदली, सब कुछ वैसा का वैसा ही रहा। जैसा पहले था। जिन माननियो को जनता ने चुनकर भेजा, वो ही हंगामा करने लगे। मान- मर्यादा की परवाह किये बिना वे सदनों में ऐसा बर्ताव करने लगे जैसे बच्चे स्कूल में झगड़ते है। ख़ैर हम बात कर रहे हैं अपने बीकानेर की। जैसा था वैसा ही है। मीठी मीठी घोषणाएँ ज़रूर सुनने को मिलती है, वन्दे- मातरम् ट्रेन बीकानेर से चलने की घोषणा केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने की। बीकानेर यूआईटी की प्राधिकरण बनाने की घोषणा मुख्यमंत्री जी ने की। बीकानेर पश्चिम के लिये आठ करोड़ से सड़क निर्माण की घोषणा भी हुई। बीकानेर पूर्व तो इन्हें नज़र ही नहीं आया। इसके लिए शानदार स्वागत भी हमारे विधायक महोदय का हुआ , लेकिन फ़िलहाल अब तक वसुत्तत:धरातल पर कुछ भी नहीं हुआ है। सिर्फ़ भाषण, उदघाटन, लोकार्पण या फिर समारोह का फ़ीता काटना या स्वागत समारोह में अपना अभिनन्दन करवाना ही नेताओ का काम रह गया है। कोई तो बताये कि नई सरकार से — या फिर दोनों सरकारों ने बजट में बीकानेर को क्या दिया ? मीठा झुनझुना या बाबाजी का ……! क्या बजट में रेल फाटको की समस्या निदान के लिये कोई चर्चा हुई। नहीं। बीकानेर में सड़के बनाने की आवश्यकता थी सिर्फ़ बजट में ज़रूर पश्चिम को महत्व दिया गया। पूर्व को छोड़ दिया गया। सीवरेज व्यवस्था की ज़रूरत थी। कुछ हुआ? बढ़ते अतिक्रमण को रोकने की ज़रूरत थी। शहर में अवेध निर्माण और तेजी से बढ़ रहे आसुरक्षित निर्माण को रोकने की ख़ास ज़रूरत थी। वे भी नहीं हुई जबकि निगम से जितनी मंजिले बनाने की इजाज़त मिलती है उससे कहीं ज़ायदा मंजिले भवन पर चढ़ा ली जाती है। न फ़ायर नियंत्रण, न पार्किंग की व्यवस्था की जाती हैं। काग़ज़ो में पार्किंग की जगह छोड़ी जाती है लेकिन उसे भी व्यावसायिक इस्तेमाल में लिया जाता है। बेसमेंट तो ज़रूर बनायेगे चाहे आस- पास के मकानों में दरारें क्यों न आ जाये ? अभी हाल ही में दिल्ली के कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भर जाने से तीन छत्राओ की मौत हो गई , ऐसा ही जयपुर में हुआ। यहाँ भी किसी घटना का इन्तज़ार हो रहा है। मेडिकल कॉलेज रोड पर डाक्टरों के बने बेसमेंट- पाँच पाँच बनी विशाल इमारतें निगम को अंगूठा दिखा रही है। या फिर उनकी सेवा- पूजा से निगम ने आँखें बंद कर रखी है। भवन मालिकों की और निगम की मिली- भगत से हाउसिंग बोर्ड की रिहायशी कालोनी डाक्टरों के अस्पताल, मॉल, कोचिंग सेंटर, मयखाने , होटल्स- और शो- रूम में तब्दील हो रही है। नागरिक परेशान हैं। सूरज की रोशनी- चन्द्रमा की चाँदनी और हवाओं से महरूम होते सरकार को कोस रहे हैं। जबकि नेताओ को इन बातो से कोई सरोकार ही नहीं हैं। इनके लिए मानवीय सवेंदनाये दम तोड़ चुकी हैं। अब घूम- फिर कर लोगो को अपना ईश्वर ही नज़र आता है। और फिर इसे राम की मर्ज़ी समझ कर हम सन्तोष कर लिया जाता है और फिर यही आवाज़ निकलती है चल मेरे दिल कही और चल- तेरी दुनिया से जी घबड़ा गया।

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