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बीकानेर-संपूर्ण बीकानेर सड़ांध मार रहा है, कचरे के ढेरो ने मुख्य मार्गो को अवरूद्ध कर रखा है और बारिश के चलते जाम नालों और शिविर लाइन से सड़को पर भरा पानी महापौर की विफलता को दर्शाता है

जिस निगम को फरवरी मार्च में नालों की सफाई कर लेनी चाहिए थी वो बारिश के बाद उनके सफाई के आदेश निकालती है वो भी जिला कलेक्टर के दखल के बाद इस लेटलतीफी का प्रमाण है सड़को पर जलभराव की स्थिति |
इसके साथ ही सफाई कर्मचारियों में वाल्मिकी समाज की हड़ताल के चलते गैर वाल्मिकी कर्मचारियों से सफाई व्यवस्था करवाई जानी चाहिए थी जो की महापौर नही कर पाई |

इससे भी बड़ी हास्यपद स्थति ये है की जो कचरा गाड़ी शहर में आती थी उसका ठेका किसी कंपनी के पास है उसका हड़ताल से क्या लेना देना ?
महापौर सुशीला कंवर राजपुरोहित और निगम आयुक्त क्यों नही कंपनी से सवाल करके उनको कचरा उठाने के बाध्य करते ?
क्या कंपनी किसी जाति विशेष से अनुबंधित होती है ?

और सबसे बड़ी बात सफ़ाई व्यवस्था को सुचारू रखना महापौर का कर्तव्य है उनको वैकल्पिक व्यवस्था करवाकर दैनिक भत्ता देकर सफाई व्यवस्था करवानी चाहिए लेकिन महापौर अपने सम्पूर्ण कार्यकाल में ऐसा कुछ नही कर पाई जिस से लगता हो की निगम में जनप्रतिनिधि जनता के लिए सेवा करने को मुस्तैद है और अब तो पिछले 8 माह से राज्य में सरकार भी भाजपा की है तो महापौर अब ये बहाना भी नही कर सकती की सरकार या उसके मंत्री काम नहीं करने देते
कुल मिलाकर बीकानेर नगर निगम की महापौर विफलता की पर्याय है ऐसे नाकारा जनप्रतिनिधि के कारण शहर की छवि खराब होती है

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