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बीकानेर,मानव धर्म प्रचार सेवा संस्थान एवं शिक्षाविद विमला देवी आचार्य परिवार द्वारा शीतला गेट स्थित आचार्य पैलेस भवन मे समाजसेवी राधेश्याम आचार्य की पुण्य स्मृति मे आचार्य पैलेस में श्री मद भागवत सप्ताह कथा हो रही हे। सद् ग्रहस्थ संत मनुजी महाराज के संरक्षण मे कथा वाचन श्रीछैल बिहारी महाराज के मुखारविन्द से हो रहा है।आज छठवें दिवस की कथा करते हुवे बालसंत श्रीछैल बिहारी जी महाराज द्वारा उद्धव गोपी संवाद द्वारा बालसंत ने बताया कि कभी भी जीव ओर ज्ञानउपरोक्त कथा व्याख्या के साथ-साथ महाराज ने पंच अध्याय रासप्रसंग की विस्तृत व्याख्या करते हुए बतलाया, कि भगवान कृष्ण का गोपियों के साथ किया गया महा रास प्रसंग जीवात्मा के साथ परमात्मा के मिलन की अद्भुत लीला माना जाता है।।भगवान के उपरोक्त “महारास लीला काम पर विजय प्राप्त करने की लीला का नाम महारास” प्रसंग बतलाया गया है,, अज्ञानता वश कुछ जीव ऐसे काम की लीला मानते हैं जो कि सर्वथा अनुचित है।।साथ ही साथ गोपी और राधा के मन में अहंकार आने पर भगवान श्री कृष्ण द्वारा रास प्रसंग के मध्य उनको छोड़कर जाने की शिक्षा के द्वारा जीवो को बतलाया,,”कि जीवन में कभी भक्ति पथ पर भक्त को सदेव प्रेममय भक्ति करनी चाहिए।। उपरोक्त प्रसंग महारास लीला के मध्य में पंडाल के अनेक श्रद्धालु गोपी गीत एवं मेरे प्रसंग में बाल संत जी की मेरा है लीला के साथ गोपियों का भगवान कृष्ण का अंतर्ध्यान होना रासलीला से की बिरह कथा प्रसंग में पहले तो सभी भक्त जनों के आंखों से अश्रु की धारा में पड़ी। लेकिन तत्पश्चात गोपी विरह प्रसंग भजन के द्वारा के समस्त श्रद्धालुओं द्वारा झूम झूम कर नाते और संपूर्ण पंडाल को वृंदावन बनाकर पवित्र किया और भगवान कृष्णा की भागवत भक्ति में डूब गए।तत्पश्चात भगवान कृष्ण के द्वारा कंस का वध कर उद्धार करने की कथा बतलायी गई।तत्पश्चात भगवान मथुरा छोड़कर संदीपनी मुनि के आश्रम जाकर 64 दिनों में 64 कलाओं की शिक्षा प्राप्त करने की कथा वहीं पर भगवान का सुदामा के साथ मित्रता होने की कथा, तत्पश्चात मथुरा में जरासंध के साथ युद्ध को छोड़ भगवान का भागकर द्वारिका जाकर बसने की कथा जिस कारण उसी समय भगवान का 1 नाम रणछोड़ दास भी पड़ा। लेकिन भगवान ने रण इसलिए छोडा जिससे कि ब्राह्मणों की रक्षा हो सके। तत्पश्चात भागवत कथा माध्यम से द्वारिका में भगवान कृष्ण के 16108 विवाह की कथा मैं मुख्य रूप से भगवान कृष्ण का रुक्मणी के साथ विवाह की कथा सजीव झांकियों के साथ विवरण किया गया। “बालसंत ने कहा भगवान कृष्ण विष्णु है’ और रुक्मणी लक्ष्मी” “इस प्रकार से लक्ष्मी और नारायण के मिलन की लीला का नाम रुक्मणी विवाह प्रसंग” माना जाता है। कथा व्यवस्था सेवाश्रम हैतु दुर्गादास गौकुलप्रसाद मनोजकुमार पुष्पादेवी कलावती संतोष रश्मि आचार्य, नृपेन हर्ष हैमन्त देराश्री,नवरत्न धामु,हरिकिशन नागल ओमप्रकाश कुलरिया, देेवकिशन गैपाल, नितेश आसदेव,एवं पंडित दीनदयाल संपूर्ण कथा मैं व्यवस्था संभाल रहे हैं।

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