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बीकानेर,आचार्य श्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी के सान्निध्य में चल रहे 45 दिवसीय आगम तप में श्रावक-श्राविकाओं ने बुधवार को चौथे सूत्र समवायांग सूत्र की क्रिया, साधना, उपासना, पूजा व वंदना की। तप के व्रत नियम की पालना करते हुए गुरुवार को पांचवें भगवती सूत्र (व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र) की स्तुति की जाएगी।
आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी ने बताया कि समवायांग आगम एक ही श्रुतस्कंध रूप है, एक ही अध्ययन है। कुल 135 सूत्र है, इस सूत्र मेंं तीसरे सूत्र की तरह एक से सौ तक के और उससे भी बढ़कर 200-300-400 से लेकर एक लाख, 10 लाख कोटा कोटी सागरोपम की स्थिति वाले पदार्थ भगवंत महावीर देव ने प्ररुपित किये हैं । वे समाहित हैं। इसमें बारह अंग का संक्षिप्त स्वरूप भी समझाया गया है वहीं विभिन्न संख्याओं में भगवान महावीर की विशेषताओं को दिग्दर्शित किया गया है। इसमें बताया गया कि प्रभु महावीर के सिवाय इस अवसर्पिणी के 23 तीर्थंकरों को सूर्योदय के समय केवलज्ञान हुआ तथा प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के सिवाय 23 तीर्थंकर 11 अंग के जानकार थे। ब्राह्मी लिपि के इस आगम में मातृका अक्षर-मुलाक्षर 46 है। इस सूत्र के 144000 पद हैं, वर्तमान में 1667 श्लोक प्रमाण उपलब्ध है। इस आगम में तारा,ग्रह व नक्ष़़त्रों की विशेषताएं, खगोल-भूगोल, देवलोक की भी जानकारी है।

जिनवाणी वकालत नहीं करती

आचार्य श्री ने ढढ्ढा चौक में नियमित प्रवचन में कहा कि जैन दर्शन और सिद्धांत की जिनवाणी किसी की वकालत नहीं करती। जिनवाणी सांसारिक विषय भोगों की आसक्ति, इच्छा, ममत्व व मूर्छा को कम कर धर्म आराधक, साधक को पापमय सांसारिक प्रवृत्तियों से दूर करते हुए विशुद्ध धार्मिक-अध्यात्मिक क्रिया व साधना करने का संदेश देती है। निर्णय स्वयं श्रावक-श्राविकाओं को करना होता है। परमात्मा के सिवाय दुनियां में कोई किसी का दुख दूर नहीं कर सकता। भ्रमित लोग परमात्मा को छोड़कर दीनहीन बनकर तथा कथित दुखियारे धर्म गुरुओं के पास जाकर अपना दुःख व तकलीफ को दूर करने की विनती कर भयंकर गलती व पापकर्म का बंधन करते है। सुदेव, सुगुरु व सुधर्म की शरण में जाने से ही सांसारिक जीवन में आने वाली दुख-तकलीफे व संकट में राहत मिलती है। प्रभु का बताया धर्म का मार्ग किसी भी जीव को कष्ट व तकलीफ नहीं पहुंचाता। परमात्मा में श्रद्धा व विश्वास के अभाव में दीनहीन वीतराग का भक्त भटकता, जीवन में कष्ट व तकलीफों को महसूस करता है। बीकानेर के मुनि सम्यक रत्न सागर ने नियमित श्रावक-श्राविकाओं की धर्म ज्ञान कक्षा में आचार्य श्री की ओर से प्रस्तुत विषय को विस्तार से समझाया। संघ पूजा का लाभ मुनि शाश्वत रत्न सागरजी के सांसारिक परिवार छतीसगढ़ के दिलीप चंद, महेन्द्र कुमार चोपड़ा ने लिया। वहीं संतोष देवी राजेन्द्रजी नाहटा के अट्ठम तप की तीसरे दिन की तपस्या व प्रेमाबाई दुग्गड़ के आयम्बिल की तपस्या की अनुमोदना की गई।

साधना, आराधना, जप,तप में भाव शुद्धि आवश्यक-मुनिश्री

बीकानेर, 31 जुलाई। जैन श्वेताम्बर तपागच्छ के मुनिश्री पुष्पेन्द्र विजय .ने बुधवार को रांगड़ी चौक की तपागच्छीय पौषधशाला में नियमित प्रवचन में इलायची कुमार के दृष्टांक के माध्यम से कहा कि भाव शुद्धि से सुगुरु के दर्शन, वंदन व उनके बताए मार्ग पर चलने से केवल ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। साधना, आराधना, जप,तप में भाव शुद्धि आवश्यक है।
मुनि मुनि श्रुतानंद विजय ने कहा मनुष्य की गति उसकी मति, रति व स्मृति पर निर्भर है। मनुष्य की बुद्धि के अनुसार उसके कर्मों का बंधन होता है। देव, मनुष्य व त्रियंच गति मिलती है।
चातुर्मास व्यवस्था से जुड़े सुरेन्द्र बद्धाणी जैन व शांति लाल कोचर ने बताया कि प्रवचन में आने वाले श्रावक-श्राविकाओं का प्रतिदिन लक्की ड्रा निकाला जाता है। पांच विजेताओं को गुरु भक्त ओसवाल शोप ग्रुप जयपुर की ओर से पुरस्कृत किया जाता है। वहीं प्रतिदिन आयम्बिल तपस्वियों को मातृश्री ज्योति बेन दीपक चोपड़ा ठाणे, मुंबई की ओर से प्रभावना से सम्मानित किया जा रहा है।

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