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बीकानेर,आचार्य श्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी ने कहा है कि परमात्मा व सद्गुरु के गुणों को ग्रहण कर आध्यात्म की भूख से मोक्ष का मार्ग मिलता है। सांसारिक विषय वस्तुओं, सुख-वैभव प्राप्ति की भूख कभी किसी की शांत नहीं होती। सांसारिक भोग विलास, अधिकाधिक संपत्ति अर्जित, मान-सम्मान मिलने की भूख किसी की भी नहीं मिटी। विषय व भोगों की भूख नरक की ओर ले जाती है वहीं अध्यात्म भूख, दोषों को क्षय कर आत्म कल्याण व परमात्म प्राप्ति में सहायक होती है। श्रावक-श्राविका को धर्म प्रभावक आराधक बनाती है।
उन्होंने कहा कि भूख पांच तरह की होती विलासी, विस्तार, विजय, विकारी तथा धर्म-आध्यात्म की भूख। विलासी भूख में पांच इंद्रियों के 23 विषयों को भोगने की तीव्र अभिलाषा रहती है। विस्तार की भूख में जगत के पदार्थों की तीव्र लालसा रहती है। विजय की भूख व्यक्ति को अकरणीय कृत्यों के लिए मजबूर कर पाप के कर्म बंधन में बांधती है। विकारी भूख में वासना की तरंगें मन व विचारों को कलुषित करती है। सभी धर्मों में ब्रह्मचर्य पालन का संदेश दिया गया है। भगवान महावीर के पांच महाव्रतों में सत्य, अहिंसा,अस्तेय, अपरिग्रह के साथ ब्रह्मचर्य को प्रमुखता दी है।
बीकानेर के मुनि सम्यक रत्न सागर ने प्रस्तुत विषय का विस्तार करते हुए कहा कि देव, गुरु व धर्म द्वारा प्रतिष्ठित मर्यादाओं व सीमाओं का उल्लंघन करने पर पाप का कर्म बंधन होता है। मनुष्य को मर्यादाओं की पालना करते हुए सुदेव, सुगुरु व सुधर्म के बताए मार्ग पर चलना चाहिए। मंगलवार को संघ पूजा का लाभ मुनि तत्व रत्न म.सा. के सांसारिक भाई बाड़मेर के दिनेश कुमार छाजेड़ ने सुश्रावक स्वर्गीय भगवानदास, मैनादेवी छाजेड़ की स्मृति में लिया।
श्री स्थानांग सूत्र (ठाणांग) आगम का पूजन वंदन
आचार्यश्री, मुनि व साध्वीवृंद के सान्निध्य में ढढ्ढा चौक की आगम वाटिका को मंदिर का रूप दिया गया है। आगम वाटिका, सुबह सात बजे से दोपहर बारह बजे तक व शाम 5 बजे से 9 बजे तक दुर्लभ ताड़ पत्रों पर अंकित 45 आगम व उसके यंत्रों के दर्शन, वंदन व जाप के लिए 11 सितम्बर खुला रहेगा। मंगलवार को आंगम वाटिका में श्री 45 आगम तप साधकों ने ’’श्री स्थानांग सूत्र (ठाणांग) का पूजन वंदन किया।

हर काल व परिस्थिति में समता भाव रखें-मुनिश्री

बीकानेर, 30 जुलाई। जैन श्वेताम्बर तपागच्छ के मुनिश्री पुष्पेन्द्र विजय .ने मंगलवार को कुरगड्ु मुनि के प्रसंग के माध्यम से कहा कि हर काल व परिस्थिति में जीवन में समता
को रखना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि अपरिचित व्यक्ति के द्वारा किए गए अपमान को सहन करना तो भी आसान है, परन्तु जिनके साथ रहना, उठना-बैठना होता है, उनके द्वारा हुए अपमान को निगल जाना बहुत ही मुश्किल होता है।
मस क्षमण के तपस्वी मुनियों ने संवत्सरी जैसे पवित्र दिन में कुरगडु मुनि के पात्र में थूक दिया । इतना घोर अपमान और तिरस्कार होने पर भी समताधारी कुरगडु मुनि ने उनका प्रतिकार नहीं किया। समता के फल स्वरूप ही उन्हें कैवल्य लक्ष्मी की प्राप्ति हुई। मासक्षमण जैसी तपश्चर्या से भी जो कार्य सिद्ध नहीं हुआ वह कार्य समता पूर्वक की गई एक नवकारसी के द्वारा करके बता दिया।
मुनि श्रुतानंद विजय ने कहा कि हर परिस्थिति में समता के भाव रखने चाहिए। समता व शुद्ध भाव से परमात्मा को जीवन का सारथी मानकर श्रद्धा भाव से की गई धार्मिक-आध्यात्मिक क्रिया, प्रभु भक्ति फलदायी होती है।

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