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बीकानेर,बीकानेर और पश्चिमी राजस्थान में कितने शिक्षाविद, विद्वान और जनप्रतिनिधि हैं जो अपने क्षेत्र आध्यात्मिक विरासत, संस्कृति, ऋषि मुनियों की धरोहर के प्रति जागरूक हैं। बहुत कम लोग कपिल मुनि की तपोस्थली के बारे में विस्तार से जानते होंगे। कोलायत कपिल मुनि का तीर्थस्थल ही नहीं है, बल्कि जागेरी याज्ञवल्क्य ऋषि की तपोस्थली रही है।यह नहीं चानी गांव में व्यवन ऋषि, दियातरा में दत्तात्रेय ऋषि, टेकरी में काग ऋषि, जोगिरा में जोग ऋषि, डेह देवहुति माता का आश्रम है। कपिल सरोवर के तट पर गुरुद्वारा भी है। गुरु नानक देव जी और गुरु गोविंद सिंह जी का शब्द ज्ञान इस धरा पर है। कोलायत में संत बेलनाथ का आश्रम भी है। कोलायत युगों से ऋषि मुनियों की तपस्थली रही है। सवाल यह है कि हम जिम्मेदार लोग इस विरासत को कितना महत्व देते हैं? यहां आने वाले साधु संतों और योगियों को ज्ञान, संस्कृति, संस्कार और आध्यात्मिक जागृति के रूप में हम कितना आदर देते हैं? मंदिर, आश्रम, अखाड़े और मठ उतरोत्तर अपनी आभा क्यों खोते जा रहे हैं। किसी ने सोचा? कोलायत विपुल खनिज संपदा को लेकर राष्ट्रीय मानचित्र पर अंकित है। इसका दोहन कर लोगों ने करोड़ों कमाएं है। खनिज का तो दोहन करते ही जा दे हैं। ऋषि मुनियों का इतिहास, ज्ञान और आध्यात्मिक थाती अनदेखी की जा रही है। क्या हमने इन ऋषि मुनियों का और उनके इस क्षेत्र में रहे इतिहास को महत्व दिया हैं? हम ऐसा करते तो हमारी पीढियां और क्षेत्र का स्वरूप कुछ ओर ही होता। इस ऋषि मुनियों की खोई हुई मान प्रतिष्ठा को पुन: स्थापित कर कोलायत को राष्ट्रीय मानचित्र पर तपोस्थली के रूप में फिर से स्थापित किया जा सकता है। होगा कैसे? तपोस्थली के गूढ़ अर्थ को हर कोई तो समझ नहीं सकता। क्या हम इसे धूमिल होने दें?

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