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बीकानेर. संभाग का सबसे बड़ा पीबीएम अस्पताल। यहां मरीज उपचार के लिए आते है, ठीक होकर चले जाते हैं। कुछ ऐसे भी मरीज है जो यहां अस्तपाल में ही रम कर रह गए हैं। ऐसे ही दो मरीज बेसुध हालत में यहां लावारिस के रूप में भर्ती कराए गए। इलाज हुआ और ठीक हो गए। परन्तु वापस अपने घर जाने के बजाय अस्पताल में रहकर एेसे लोगों की सेवा करने लगे जो लावारिस हालात में अस्पताल में भर्ती कराए जाते हैं। यानि मरीज भी लावारिस और सार-संभाल करने वाले भी लावारिस है।

दोनों लावारिस भर्ती होकर स्वस्थ्य हुए दोनों मरीजों की कहानी सुनने में अजीब लगती है। परन्तु यह सत्य और चौंकाने वाली जरूर है। एक तो दिव्यांग भी है, जो सुन-बोल भी नहीं सकता। अब अस्पताल का हर चिकित्सक और नर्सिंग स्टाफ उन्हें अच्छे से जानता है।

ट्रोली खींचते, मल-मूत्र साफ करते
असहाय सेवा संस्थान से जुड़े गणेश उर्फ राजकुमार व राजेन्द्र कुमार २४ घंटे अस्पताल में रहकर सेवा करते हैं। संस्था अध्यक्ष राजकुमार खडग़ावत ने बताया कि गण्ेाश व राजेन्द्र पीबीएम अस्पताल में ही रहते हैं। यह रात में या दिन में हादसे में घायल गंभीरों के इलाज में मदद करते हैं। ट्रॉली खींचने, वार्ड में शिफ्ट कराने, सफाई करने एवं असहाय व लावारिसों की दवा देने, खाना खिलाने एवं मल-मूत्र साफ करने तक का काम करते हैं।

एक को नाम मिला गणेश
संस्था से जुड़े ताहिर हुसैन ने बताया कि दो साल पहले सरदारशहर से लाए एक लावरिस युवक को पीबीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया। बाद में पता चला कि यह युवक न बोल सकता है और न ही सुन सकता है। इसकी सार-संभाल की जब यह ठीक हो गया तो इसे आश्रम भेजना चाहा। परन्तु वह आश्रम नहीं गया और यहां अस्पताल में ही अन्य मरीजों की सेवा करने लगा। एेसे में उसे संस्था से जोड़कर लावारिस मरीजों की सेवा का काम सौंप दिया। साथ ही उसे गणेश नाम दिया गया।

सेवा ही जीवन है गणेश उर्फ राजकुमार का

गणेश उर्फ राजकुमार सरदारशहर से रेफर होकर पीबीएम आया। असहाय सेवा संस्था ने सार-संभाल की। युवक को आश्रम भेजने की बात आई तो उसने मना कर दिया। इस पर उसे संस्था के साथ ही मरीजों की सेवा में सहयोग लेने लगे। अब यह लावारिस मरीजों की सार-संभाल करता है।
बेसहारों का सेवादार राजेन्द्र कुमार
राजेन्द्र की पत्नी छोड़कर चली गई। रिश्तेदारों ने घर से निकाल दिया। दस माह पहले दुर्घटनाग्रस्त होकर ट्रोमा सेंटर में भर्ती हुआ। पैर का ऑपरेशन हुआ। डेढ़ महीने तक भर्ती रहा। असहाय संस्था के पदाधिकारियों ने सेवा की। ठीक होने पर शांति निकेतन आश्रम छोड़ा लेकिन वहां से आकर संस्था में सेवा देने लगा। ऑपरेशन वाले पैर में दर्द बढऩे पर वापस ऑपरेशन कर रॉड दुबारा डलवाई गई। अब इसकी सेवा गणेश कर रहा है।

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