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बीकानेर,प्रांत सहमंत्री मोहित जाजडा ने बताया कि बीकानेर के सभी विश्विद्यालय व विभिन्न महाविद्यालयों के पीएचडी व पीजी विद्यार्थियों ने भाग लिया , दिनांक 19.05.2024 विद्यार्थी खाजूवाला पहुँचे जहाँ खाजूवाला निवासियों ने उनका स्वागत व अभिनंदन किया , एवम् ग्रामवसियों के साथ उन्होंने सीमा दर्शन किया व सीमावर्ती गाँवों के घरों में जाकर विद्यार्थियों ने उनकी समस्याएं व उनके अनुभवों के बारे में जानकारी ली, इस दौरान डॉ.विमला जी डुकवाल राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भारत स्काउट एवं गाइड का प्रवास रहा।दिनांक 20.05.2024 को विद्यार्थियों ने बज्जू के नज़दीक सीमावर्ती गाँव भूरासर,बरसलपुर,छिला कश्मीर व अन्य गाँवों का भ्रमण किया साथ में उन्होंने पाक विस्थापित परिवारों के बारे में व उनके इतिहास के बारे में बताया एवम् नज़दीकी बॉर्डर व खेतों का दर्शन किया शाम को विद्यार्थियों में बरसलपुर फोर्ट का भ्रमण किया व इसी दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ , बीकानेर विभाग के विभाग प्रचारक विनायक जी ,खाजूवाला ज़िला प्रचारक योगेश जी ,अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जोधपुर के प्रांत संगठन मंत्री पूरण जी शाहपुरा , प्रांत मंत्री श्याम शेखावत व बीकानेर विभाग के विभाग संगठन मंत्री पूनम जी का प्रवास रहा , अगले दिन दिनांक 21.05.2024 को सांचू पोस्ट का दर्शन किया और आते हुए गोड़ू गाँव के ग्रामवसियों ने सभी विद्यार्थियों का स्वागत किया , विद्यार्थियों ने 3 दिनों में खाजूवाला व बज्जू के क़रीब 15 सीमावर्ती गाँवों का भ्रमण किया व अपने अनुभव कथन में बताया कि शहरों में रहने वाले व्यक्ति इतनी गर्मी में काफ़ी असहज महसूस होते है लेकिन 50 डिग्री तापमान में भी BSF के जवान दिन और रात हमारी सुरक्षा के लिए तैनात रहते है। सांचू पोस्ट पर सीमा अवलोकन करते हुए विद्यार्थियों की नजर जब दूर से आ रहे सैनिक पर पड़ी तो देखा कि दिन की चिलचिलाती धूप में भी एक जवान सीमा के पास बनी सड़क पर गस्त कर रहा था। चौकी पर हथियार बंद जवान धूल मिट्टी से सने कपड़ों में दूरबीन से सीमा पर टकटकी लगाए हुए देखा तो सैनिकों की विषम परिस्थितियों की वास्तविक अनुभूति विद्यार्थियों को हुई। जवानों के साथ संवाद करके उनकी समस्याओं के बारे में जाना सीमा पर अग्रिम चौकिया में तैनात महिला जवानों के साथ भी अनुभव साझा किये। सीमा के नज़दीकी गाँवों में रहने वाले ग्रामवासी भी BSF का सहयोग करते है , सीमावृति क्षेत्रों में काफ़ी असुविधा के होते हुवे भी वहाँ के लोग उन परिस्तितिथियों में रहकर भी काफ़ी सकारात्मक जीवन व्यतीत करते है और गाँवों में आज भी महमानों के लिये प्यार और सत्कार देखने की मिला। पाक विस्थापित परिवारों से जब विस्थापन की विभत्स विडंबना को जाना तो छात्रों के चेहरे गमगीन हो गए किस तरह से विस्थापन के समय उन्हें तंबू में रहना पड़ा तथा बाद में इस सुनसान और बंजर इलाके में भूमि आवंटन होने के बाद विषम परिस्थितियों से लड़ते हुए उन्होंने इस क्षेत्र को विकसित किया, जहां बैठने के लिए कोई छायादार पेड़ भी उपलब्ध नहीं थे और झोपड़ी बनाने के लिए लकड़ी भी नहीं मिल पाती थी।पानी इतनी दूर से लाना पड़ता जिसकी कीमत घी से भी ज्यादा होती थी।आज भी घरों में जल संरक्षण का विशेष ध्यान रखा जाता है जिससे विद्यार्थियों को जल संरक्षण के वास्तविक महत्व का पता चला। महिलाओं को प्रसव के लिए उचित व्यवस्थाएं गांव में उपलब्ध नहीं होने के कारण आज भी टूटी सड़क से सफर तय करके बहुत दूर स्थित अस्पतालों में जाना पड़ता है तथा विद्यालय में पदों की रिक्तता जैसी समस्याओ को जानने का अवसर मिला। सीमावर्ती गांव के नागरिक सुरक्षा बलों के साथ पूरा तालमेल बनाकर रखते हैं तथा किसी अवांछित गतिविधि की सूचना तुरंत बीएसएफ को देना उचित मानते हैं। विद्यार्थियों ने क्षेत्र का अवलोकन करने के बाद पाया कि इस क्षेत्र में खान व खनिज उद्योग संबंधी विनिर्माण इकाइयां लगाकर इस क्षेत्र की समस्याओं को कम किया जा सकता है।

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