बीकानेर। पीबीएम अस्पताल में इलाज कराना युद्ध लडऩे से कम नहीं है। यहां की अव्यवस्थाओं से मरीजों मर्ज ठीक होने की बजाय और बढ़ रहा है। मरीज को दवा व जांच की जरूरत आज है और व्यवस्थाओं के चलते उपचार महीनेभर में भी नहीं मिल रहा। विडम्बना है कि मरीज को सरकार को नि:शुल्क जांच व दवा योजनाओं का लाभ पूरा नहीं मिल रहा। दवा तो फिर भी मिल रही लेकिन जांचों में बहुत मारामारी है। जांचों के लिए मरीजों को तारीख पर तारीख मिल रही है। तारीखों के फेर में उलझे मरीज को आखिरकार निजी लैबों से जांच कराना मजबूरी बन गया है।
सोनोग्राफी के लिए एक महीना, ईको में सवा महीने की ताारीख
पीबीएम अस्पताल में हालात बेहद खराब है। सामान्य मरीजों को तारीख पर तारीख देकर टरकाया जा रहा है। पेट की सोनोग्राफी (एबडोनल) दिनेश (बदला हुआ नाम) की जांच कराने मरीज को एक महीने की तारीख दी गई है। वह शुक्रवार को जांच कराने पहुंचा तो उसे नौ नवंबर की तारीख दी गई। इसी तरह भागीरथ (बदला हुआ नाम) ईको की जांच कराने पहुंचा। उसे १३ नवंबर को बुलाया है। द्रोपदी (बदला हुआ नाम) एलएस स्पाइन की एमआरआई कराने पहुंची तो उसे २० दिन बाद की तारीख दी गई है।
दर्द आज और इलाज एक महीने बाद
मरीज के परिजन श्यामसुंदर ने पीबीएम अस्पताल की व्यवस्था को मरीजों के लिए खतरनाक बताया। मरीज के हॉर्ट में दिक्कत हुई, चिकित्सक ने तुरंत ईको जांच कराने के लिए कहां। जांच करने वालों ने एक महीने बाद आने की तारीख दे दी। अब सोचने वाली बात यह है कि एक महीने बाद जांच होगी तो इलाज कब शुरू होगा। इन हालातों में मजबूरन मरीजों को निजी लैबों में जांच करानी पड़ती है।
पीबीएम में घुमते लपके
पीबीएम अस्पताल प्रशासन की अनदेखी व लापरवाही के चलते ही लपकों का गिरोह पनप रहा है। हार्ट, कैंसर, एमआरआइ सेंटर, यूरोलॉजी, ऑपरेशन थियेटर, जनाना व बच्चा अस्पताल के वार्ड आदि में निजी लैबों के लोग घुमते रहते हैं। यह बाहर से आने वाले मरीजों की निगरानी रखते हैं। चिकित्सक की बाहर की जांच लिखने पर तुरंत उससे संपर्क कर निजी लैब में ले जाते हैं। वहां से अपना कमीशन लेते हैं। मरीजों को दवा भी अपने कॉन्टेक्ट वाली दुकान से दिलाते हैं। अस्पताल में मरीज के शीघ्र स्वस्थ होने के लिए परिजन बिना सोचे-समझे गुर्गों के बहकावे में आ जाते हैं।
परिजनों की नहीं सुनते
परिजन अगर चिकित्सक व स्टाफ से बाहर से जांच कराने से मना करते हैं तो वह उस पर भड़क जाते हैं। सख्ती व कार्रवाई के डर से चिकित्सक व स्टाफ सादे कागज पर जांच व दवा का नाम लिखकर देते हैं और परिजन को जांच किस लैब से करानी है बताकर भेजते हैं। इस संबंध शिकायत करने वाले परिजनों की चिकित्सक हालात खराब कर देते हैं, उन्हें विभिन्न प्रकार से डराते हैं। पीबीएम प्रशासन तक को इसकी जानकारी है लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जाती।