बीकानेर,विष्णु स्वरूपा, अधिकाधिक प्राण वायु ऑक्सीजन देने वाले पीपल वृक्ष का वैशाख में भक्ति गीतों के साथ पूजन, सिंचन व ’’ऊं नमो भगवते वासुदेवा’’ के मंत्र के जाप के साथ परिक्रमा देने का सिलसिला शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में परवान पर है। पीपल पूर्णिमा 23 मई तक चलने वाले अनुष्ठान में महिलाएं अधिकाधिक संख्या में धार्मिक भावना के साथ भागीदारी निभा रही है।
लक्ष्मीनाथजी, मरुनायकजी, पीपल पार्क, विश्वकर्मा गेट के अंदर काली माता मंदिर के सामने के पार्क, श्रीराम मंदिर, शिवबाड़ी, धरणीधर, धनीनाथ गिरि मठ पंच मंदिर, सन्यास आश्रम, जस्सोलाई व्यास पार्क के पास सहित शहर के विभिन्न स्थानों गंगाशहर, भीनासर, सुजानदेसर, किसमीदेसर, सहित नव विकसित कॉलोनियों, गांव व कस्बों में पीपल के वृक्ष का पूजन, सिंचिन सुबह सूर्योदय से करीब नौ दस बजे तक धर्मावलम्बी कर रहे है वहीं शाम को भी शनि की पीड़ा को दूर करने, शनि की कृपा प्राप्त करने के लिए दीपक प्रज्जवलित कर रहे है।
श्रद्धालु पीपल के वृक्ष के दूध, पानी का सिंचन कर, उसके रोली-मोळी चढ़ाकर, परिक्रमा कर रहे है। विश्वकर्मा गेट के अंदर कालीमाता मंदिर के सामने के पार्क में महिलाओं का समूह नियमित पीपल पूजन के दौरान भजन ’’सारी में सृष्टि मेंं पीपल देवरा रामजी, राखो म्हारे कुळ री लाज पीपल देवरा रामजी’’ आदि भजन गा रही है। वहीं गर्मी में वृक्ष सूखें नहीं इसके लिए वे धार्मिक भावनाओं व कथानकों पर आधारित कहानी भी सुनाती है।
पद्म पुराण के अनुसार पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु स्वरूप है। इसको धार्मिक क्षेत्र में श्रेष्ठदेव वृक्ष का सम्मान मिला है। शास्त्रों में बताया गया है कि पीपल के वृक्ष का विधिवत पूजन, नमन, व परिक्रमा करने से आयु की वृद्धि होती है तथा पापों का नाश होता है। पंडितों के अनुसार पीपल में त्रिदेव का वास होता है। गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते है ’’अश्वत्थः सर्ववृक्षाणम’’ यानि सब वृक्षों में पीपल वृक्ष हूं। इसके जड़ में श्री विष्णु, तने में भगवान शंकर तथा अग्रभाग में ब्रह्माजी का वास रहता है। अश्वत्थ वृ़़क्ष के भूतल में साक्षात हरी का वास रहता है। पीपल के वृक्ष को लगाने, रक्षा करने, छूने तथा पूजने से धन, संतान, स्वर्ग व मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसमें पितरों का वास, सब तीर्थों का निवास होता है।