बीकानेर,बीकानेर की स्थापना दिवस पर विशेष,राजस्थान प्रान्त में बीकानेर राज्य का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस राज्य का प्रधान अंश प्राचीन काल में जांगल देश के नाम से प्रसिद्ध रहा है। वीरवर बीकाजी के पूर्व इस राज्य में कई हिस्सों पर सांखले-परमारों का, कुछ पर मोहिल-चौहानों का, कुछ पर भाटी-यादवों का एवं कुछ पर बोहियों व जाटों का अधिकार था। बीकाजी ने अपने पराक्रम से उन सब पर विजय प्राप्त कर अपना शासन स्थापित किया और अपने नाम से इस बीकानेर राज्य की नींव डाली। परवर्ती नरेशों ने इसे यथाशक्य बढ़ाया, जिसके फलस्वरूप इसका क्षेत्रफल 23317 वर्गमील तक पहुंचा। इसकी लम्बाई-चौड़ाई लगभग 208 मील है।
बीकानेर का ऐतिहासिक महत्व
बीकानेर राज्य के अनेक प्राचीन स्थान ऐतिहासिक दृष्टि से बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। सूरतगढ़ के निकटवर्ती रंगमहल से कुछ पकी हुई मिट्टी की मूर्तियाँ आदि प्राप्त हुई थीं। गत वर्ष सरस्वती और दृषद्वती की घाटियों में खुदाई हुई थी जिससे प्राप्त वस्तुओं का प्रागैतिहासिक सिलसिला हड़प्पाकालीन संस्कृति से जोड़ा गया है। यहाँ अनेक प्रागैतिहासिक स्थान हैं जिनकी परिपूर्ण खुदाई होने पर भारतीय प्राचीन संस्कृति पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़ने की संभावना है।
बीकानेर का आध्यात्मिक महत्व
मध्यकालीन महत्त्वपूर्ण स्थान भी इस राज्य में अनेक हैं, जिनमें बड़ोपल, पलू, भटनेर, नौहर, रिणी, द्रौणपुर, चरलू, रायसीसर, जांगलू, मोरखाणा, भादला, दद्रेवा आदि उल्लेखनीय हैं। पलू से प्राप्त जैन-सरस्वती मूर्तिद्वय अपने कलासौन्दर्य के लिए विश्व-विख्यात हैं। कोलायत- तीर्थ का धार्मिक दृष्टि से बड़ा माहात्म्य है। कार्तिक पूर्णिमा को यहाँ हिन्दू समाज का बहुत बड़ा मेला भरता है। गोगा मैड़ी आदि के मेले भी प्रसिद्ध हैं। देसनोक की करणी माता भी राजवंश एवं बहुजन मान्य है।
बीकानेर की आर्थिक सम्पन्नता
खाद्यान्न उत्पादन की दृष्टि से बीकानेर डिवीजन का नहरी इलाका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। स्वर्गीय महाराजा गंगासिंह ने गंगानहर लाकर इस प्रदेश को बड़ा उपजाऊबना दिया है। जो बीकानेर राज्य खाद्यान्न के लिए परमुखापेक्षी रहता था, आज लाखों मन खाद्यान्न उत्पन्न कर रहा है। इस प्रदेश के खनिज पदार्थ यद्यपि अभी तक विशेष प्रसिद्धि में नहीं आये फिर भी पलाणें की कोयले की खान, दुलमेरा की लाल पत्थर की खान, जामसर का मीठा चूना, मुलतानी मिड्डी (मेट) आदि अच्छी होती है। यहाँ की बालू आदि से कांच के उद्योग भी विशेष पनप सकते हैं। आर्थिक दृष्टि से भी यहाँ के अधिवासी समग्र भारत में ख्याति प्राप्त हैं। इस दृष्टि से बीकानेर धनाढ्यों का देश माना जाता है और अपनी प्रजा के लिये स्वर्गीय शासक गंगासिंहजी को बड़ा गौरव प्रदर्शित किया जाता है। आसाम, बंगाल आदि देशों के व्यापार की प्रधान बागडोर यही के व्यापारियों के हाथ में है।
बीकानेर का साहित्यिक योगदान एवं महत्व
साहित्यिक दृष्टि से भी बीकानेर राज्य बड़ा गौरवशाली है। अकेले बीकानेर नगर में ही 3 लाख से अधिक प्राचीन हस्तलिखित प्रतियों सुरक्षित हैं। इनमें अनूप लाइब्रेरी विश्व विश्रुत है, जहां सैकड़ों की संख्या में अन्यत्र अप्राप्य विविध विषयक ग्रन्थरल विद्यमान हैं। अभय जैन ग्रंथालय बीकानेर मे 2 लाख से आस पास अत्यंत महत्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध है। तथा अगर चंद भैरूदान सेठी का पुस्तकालय रागडी चौक, जवाहर विद्यापीठ भीनासर, आचार्य तुलसी राजस्थानी शोध संस्थान बड़ा गंगाशहर,बडा उपासरा यति जी बीकानेर, राजस्थान प्राच्य प्रतीष्ठान बीकानेर तथा नागरी प्रचारणी सभा बीकानेर, चूरू की सुराणा लाईब्रेरी आदि भण्डारो मे 3 लाख से अधिक हस्तलिखित प्रतियां आज भी विद्यमान है।
बीकानेर की विश्वप्रसिद्ध कलानिधि
कला की दृष्टि से भी बीकानेर पश्चात् पद नहीं है, यहाँ की चित्रकला की शैली अपना विशिष्ट स्थान रखती है और बीकानेरी कलम गत तीन शताब्दियों से सर्वत्र प्रसिद्ध है। बीकानेर के सचित्र विज्ञप्तिपत्र, फुटकर, चित्र एवं भित्तिचित्र इस बात के ज्वलन्त उदाहरण हैं। शिल्पकला की दृष्टि से यहां का भांडासरजी का मन्दिर सर्वत्र प्रसिद्ध है। इस विषय में ‘बीकानेर आर्ट एण्ड आर्टिटेक्चर’ नामक ग्रन्थ द्रष्टव्य है।इस प्रकार विविध दृष्टियों से बीकानेर की गौरवगाथा रही है।
बीकानेर महाराज अनुपसिंह ने धर्मपरिवर्तन को रोकने के लिये प्रथ्वीराज रासो की प्रतियो का लेखन करवा कर सम्पूर्ण देश मे पाठ करवाये जिससे हिन्दु पुन: जागृत हो उठे।