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बीकानेर,मानव धर्म प्रचार सेवा संस्थान के संयोजन में बंबलू निवासी हाल मीरारोड मुम्बई के धर्मपरायण भामाशाह आसदेव परिवार की धर्मपरायण माता धापुदेवी के पुत्र कान्ट्रेक्टर श्रीरामप्रताप आसदेव कुंदनमल आसदेव लक्ष्मण आसदेव नवरत्न मनोज पार्थ दिनेश आसदेव परिवार गांव बम्बलु हाल मीरारोड़ मुम्बई की यजमानी में बालसंत श्रीछैल विहारी महाराज की सन्निधि में नया शहर, सुथार मोहल्ला पारीक चौक स्थित भागवत बासा भवन में नवरात्रि हवन यज्ञ साधना अनुष्ठान अनवरत जारी हे। जिसके अंतर्गत बालसंत श्रीछैल विहारी महाराज ने कन्याओं के चरण पखार कर कन्या पूजन किया। और कंजको को भंडारा प्रसादी करवायी।। संस्थान सचिव सीमा पुरोहित ने बताया। दूसरे दिन अनुष्ठान का शुभारंभ सर्वप्रथम गणेश पूजन सप्तऋषि मंडल नवग्रह मंडल का पंचोपचार षोडशोपचार विधि से पूजन आरती की गई। तत्पश्चात बालसंत द्वारा कन्या पूजन किया गया। तत्पश्चात दुर्गा सप्तशती पाठ इंद्राक्षी एवं गायत्री कवच बीज मंत्र आहुतियां के द्वारा हवन-यज्ञ हुआ। दोपहर कालीन नवरात्रि प्रवचन करते हुए बालसंत श्रीछैल बिहारी महाराज ने माता दुर्गा के द्वितीय स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की विस्तृत व्याख्या करके बतलाई । बालसंत श्रीछैल विहारी महाराज ने बताया।कि मां दुर्गा की नवशक्ति का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है। यहां ब्रह्म का अर्थ तपस्या से है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाला है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली।देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है।और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था। और नारदजी के उपदेश से प्रेरित होकर भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए। और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे। और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए। और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता,ऋषि,सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया,सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की।यह तुम्हीं से ही संभव थी।तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे।अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। इस देवी की कथा का सार यह है। कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है।

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