बीकानेर,मृदा विज्ञानी डॉ महेन्द्र सिंह ने कहा कि कृषि वैज्ञानिक स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप जैव उर्वरक विकसित करें। इससे किसानों को खासा फायदा होगा। अयोध्या के आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय, कुमारगंज से आए एसोसिएट प्रोफेसर डॉ महेन्द्र सिंह सोमवार को स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे। कृषि महाविद्यालय परिसर में टिकाऊ खेती उत्पादन एवं मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन में जैव उर्वरकों की भूमिका विषय पर आयोजित व्याख्यान में मृदा वैज्ञानी डॉ महेन्द्र सिंह ने कृषि विश्वविद्यालय में लैब स्थापित करने और स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप जैव उर्वरक विकसित करने पर जोर दिया।
डॉ सिंह ने जैव उर्वरकों को किसानों के लिए फायदेमंद बताते हुए इनके इस्तेमाल पर जोर दिया।ताकि मृदा की सेहत भी अच्छी बनी रहे। साथ ही तरल और ठोस जैव उर्वरकों की तुलना करते हुए तरल जैव उर्वरकों को ज्यादा प्रभावी बताया। उन्होने कहा कि रासायनिक उर्वरकों के लंबे समय तक इस्तेमाल से पैदावार बेहद कम हो जाती है। डॉ सिंह ने राजस्थान की मृदा में आर्गेनिक कार्बन बढ़ाने की आवश्यकता बताते हुए इसको बढ़ाने के उपाय भी बताए।
इससे पूर्व एसकेआरएयू कुलपित डॉ अरूण कुमार ने व्याख्यान को संबोधित करते हुए कहा कि स्टूडेंट्स रिसर्च का कार्य पूरी तन्मयता से करें। कृषि विश्वविद्यालय में स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप जैव उर्वरक उत्पादन हेतु लैब स्थापित करने और विभिन्न रिसर्च को लेकर कहा कि फंड्स की कमी नहीं आने दी जाएगी। स्नातकोत्तर शिक्षा की अधिष्ठाता डॉ दीपाली धवन ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि मृदा विज्ञानी डॉ महेन्द्र सिंह के द्वारा दी गई जानकारी से रिसर्च स्टू़डेंट्स को जज्बे के साथ कार्य करने की प्रेरणा मिली है। कार्यक्रम में मंच संचालन मृदा विज्ञानी डॉ सुशील खारीया ने किया।
व्याख्यान में कृषि महाविद्यालय के कार्यवाहक अधिष्ठाता डॉ दाताराम, प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ सुभाष चंद्र, कीट विज्ञान के प्रोफेसर डॉ वीर सिंह, कृषि अभियांत्रिकी विभागाध्यक्ष डॉ जितेन्द्र कुमार गौड़, मृदा विज्ञानी डॉ रणजीत सिंह, डॉ भूपेन्द्र सिंह समेत पीजी और पीएचईडी के रिचर्स स्टूडेंट्स ने हिस्सा लिया।