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बीकानेर,बीकानेर प्रारम्भ से ही सदभाव का प्रेरक शहर रहा है और साहित्य में सदभाव एक परम्परा के रूप में विधमान है। विशेषतः उर्दू साहित्य में सभी धर्मों के मानने वाले साहित्यकारों ने रचनात्मक अवदान देकर भारत में यह संदेश प्रसारित किया कि भाषाओ को धार्मिक बंधन में नहीं बांधा जा सकता यह कहना था मुफ़्ती सद्दाम हुसैन का जो अजित फाउण्डेशन में मासिक संवाद के अन्तर्गत ‘‘बीकानेर में उर्दू अदब और सदभाव’’ कार्यक्रम में बतौर अध्यक्ष अपना उद्बोधन दे रहे थे। मुफ़्ती सद्दाम हुसैन ने कहा कि भाषाई सदभाव के संस्कार नई पीढि तक संचारित करना आज के समय की आवश्यकता है।

मुख्य वक्ता के रूप में उर्दू रचनाकार डॉ. सीमा भाटी ने ‘‘उर्दू है मेरा नाम, मै खुसरो की पहेली’’ नज्म से शुरूआत करते हुए कहा कि उर्दू प्रारम्भ से ही अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए स्वतंत्रता आन्दोलन में भी रचनात्मक योगदान के लिए जानी जाती है एवं जब बात बीकानेर के साहित्यिक परिदृश्य की करें तो उर्दू भाषा में सदभाव की अनगिनत रचनाएं देखने को मिलती है।
डॉ. सीमा भाटी ने कहा कि बीकानेर के शायर बादशाह हुसैन राणा ने जहां रामायण नज़्म की रचना की और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से स्वर्णपदक हासिल किया वहीं मोहम्मद युसुफ रासिख ने ‘‘होली’’ पर नज्म कहकर सदभाव का संदेश दिया। शायर मस्तान ने पन्नाधाय की कुर्बानी पर अपनी कलम चलायी वहीं दिवानचंद दिवा मोहम्मद साहब पर मनकबत लिखते है। डॉ. भाटी ने कहा कि बीकानेरी सदभाव परम्परा का परचम फहराने वाले इब्राहित गाजी जब गुरू गोविन्द सिंह पर नज्म लिखते है तो लोग बीकानेर को सलाम करते है। अज़िज़ आजाद, रामकृष्ण शर्मा, बाबूराम प्रसाद, मुंषी सोहनलाल भटनागर जैसे शायरों ने सदभाव की परम्परा को मजबूत किया है।
साहित्यकार नदीम अहमद नदीम ने इस अवसर पर कहा कि बीकानेर में उर्दू अदब और सदभाव विषय पर और अधिक शोध एवं पुस्तक प्रकाषन पर विचार किया जाना नई पीढि के लिए समसामयिक होगा।
कार्यक्रम समन्वयक संजय श्रीमाली ने कार्यक्रम के प्रारम्भ में आगन्तुकों का स्वागत करते हुए अजित फाउण्डेशन की गतिविधियों के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि उर्दू विषय पर अजित फाउण्डेषन में यह पहला कार्यक्रम है और भविष्य में भी सद्भाव विषय पर श्रृंखलाबद्ध कार्यक्रम आयोजित किए जाएगें।
अजित फाउण्डेशन की ओर से वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. अजय जोशी ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सदभाव बीकानेर शहर की प्राचीन परम्परा है और यह शहर सदभाव के रूप में देष में एक सदभाव के मॉडल शहर के रूप में विख्यात है।
कार्यक्रम में कासिम बीकानेरी, विजयशर्मा, सक्षम गहलोत, इमरोज नदीम, अल्लादीन निर्बाण, गोविन्द जोशी, मोहम्मद हनीफ उस्ता, डॉ. फारूक चौहान, हरीश बी शर्मा, बाबूलाल छंगाणी, अयूब अली उस्ता, गिरिराज पारीक, सुनील गज्जाणी, प्रेम नारायण व्यास, डॉ. अजय जोषी की गरिमामय उपस्थिति रही।

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