बीकानेर,राजस्थानी भासा रा मानीता साहित्यकार मईनुदीन कोहरी नाचीज बीकानेरी बहुमुखी प्रतिभा रा धणी है। आपरी गद्य-पद्य री मोकळी पोथ्यां छपी है। समीक्षित पोथी ‘घिरत-फिरत री छियां आपरी नवीं पोथी है। राजस्थानी कथा साहित्य में आपरी आ पैली पोथी है। इण संग्रै में 35 कहाणियां है। इण कहाणी संग्र में समाज री अणगिणत अबखायां अर मूंडा रीति-रिवाजां नैं उजागर करता थकां आप खुल’र विरोध जतायो है।
इण संग्रै री पैली कहाणी ‘आंख्यां खुलगी’ में आप समाज नैं संदेसो देवणो चायो है कै बेटी से साख-संबन्ध करती बेळ्यां ईं बात री निगै राखणी चाइजै कै घर हीणो भलाई हुवो पण वर हीणो नीं हुवणो चाइजै। वर हीणो हुयां बेटी री जिनगाणी बरबाद हुय सकै। आपणै कैबत चालै-पाणी पीवो छांण’र, रिस्तो करो जाण’र। रिस्तो करती बेळा कदेई उंताणळ नीं करणी चाइजै। जियां माटी रो घड़ो आछी तरियां ठोक बजाय’र लेंवा, ईंया ई संबंध बी आछी तरियां निगै कर’र करणो चाइजै। उतावळो बावळो हुवै। जल्दबाजी काम नै बिगाड़ देवै। काम बिगड्यां पछै सुधरै कोनी। गंगा री मा कीं उतावळी बेसी ही। उण रा सासू-सुसरा इण रिस्तै नै नकार दीन्यो। उणां रै सौ बरस पुग्यां पर्छ उण नै बरजण वालो कोई नीं हो। गंगा री मा दूजी लुगायां री बातां में आगी अर उण रो रिस्तो गोपाल रै साथै कर दीन्यो। गोपाल डील सूं गंगा रै जोड़ रो नीं। पण ब्याव हुया पछै के हुवै। गंगा रा भाग फूटग्या। गंगा मून हुय’र घणां ई दिन निभावै। आखिर में गंगा री अकल नीसर जावै। वा आपरै जोड़ रै दूजै जुवान रो हाथ पकड़’र घरां सूं बारै नीसर जावै। ‘राध में छुरी’ बी ओक सजोरी कहाणी है। कहाणी रो नायक चोरू आपरी मा रो ओकलो बेटो। मा बीमार रैवै। चोरू रै मजूरी करियां ई मा बेटै रो पेट भरै। चोरू मा री चाकरी करै कै मजूरी पर जायै। दिन भर थाक्योड़ो चोरू जदै घर में बड़े तो उणी बगत पाड़ोसण लुगायां होकै सी’क टुणकलो न्हाख देवै- “बेटा, चोरू! बापड़ी
डोकरी दबती जायरी है। इण नै अस्पताळ देखाळ। डोकरी रो इलाज तो कराव। बेटा, डोकरी सूं खेत आछो नीं है। छेवट चोरू मा रो इलाज करवावै। खरचै सूं दब जावै। लुगायां री निजर चोरू रै खेत पर ही। आखर में चोरू नै आधै पड़दै पीसा में खेत बेचणो पड़े। चोरू रै हाथां सूं खेत बी नीसर जावै अर मा बी राम नै प्यारी हुज्यावै ।
‘रूपलै री लुगाई’ नै रूपलै री सरकारी नौकरी अर आपरै छोरा रो नशो हो। रूपलै री लुगाई पैलडै छोरै रै ब्याव में कीं ठगीजगी। अबै बिचलो छोरो कीं आछो पढ़ग्यो। इण छोरै रै ब्याव खातर च्यारूं कानी लबका ढूढ़ण नैं घर-घर भटकण लागै। रूपलै री लुगाई कैवती- म्हारै पैलडै छोरै रै ब्याव में म्हें ठगीजगी, अबै म्हारै इण छोरै रो ब्याव इक्कीस करसूं। म्हारै मन री काढ़सूं। पाबूराम रूपलै अर बीं री लुगाई नै सब्जबाग दिखावै। आपरी छोरी नीतू अर रूपलै रै छोरै बंटी रै बिचाकै इस्यो चक्कर चलावै कै दोनू ओक दूजै नै चावण लाग जावै। रूपलै री लुगाई घणा ई पग पटक्या, पण बेटै बंटी रै आगै उण री ओक नीं चाली। पाबूराम आपरी चतराई सूं छोरो टांचण में कामयाब हुयग्यो। दायजै रा लोभी अर समाज नै धत्तो बतावणियां रै साथै इयां ईज हुया करै। सीधी आंगळी सूं घी नीं निकलै तो आंगळी नैं की टेढ़ी करणी पड़े।
बडेरा मायतां रो फरज हुदै कै बै टाबरां नै मैनत अर ईमानदारी सूं नेक कमाई करणै री सीख देवै। पण आजकालै रा बूढा-बडेरा टाबरां सूं तिनखा सूं ऊपर कीं हाथ खरचो काढ़ लेवणै री बात करै। कहाणी ‘ऊपरली कमाई’ में नूवी-नूवी सरकारी नौकरी लाग्योड़ो भंवरियो गांव री चौपाल में बडेरा नैं कैवै, ‘थे बडेरा हो। थानें नूवी पीढी नै कीं ईमान-धरम पर चालण री सीख देवणी चाईजै। भंवरियै रा औ बोल सरावण जोग है।
पोथी री सिरे नांव कहाणी ‘घिरत फिरत री छियां रै केसियै रै घर में रोट्यां रा केई बार लाला पड्या करता। पण बगत-बगत री बात है। बगत निकळता देर को लागै नीं। केसू रा काम-धंधा इत्ता चालण लागग्या कै अबै केसू, केसू सूं केसूजी बाजण लागग्यो। केसूजी री अबै आंख्यां ई को खुलै नीं। अबै बो आदमी नै आदमी नीं समझै। पाव वाळी हांडी में सवा सेर ऊरयां कांई हाल हुदै बैई हाल केसू रा हुयग्या। केसू रा बेटा शराबी-कबाबी, ऊंधा लखणां में पड़ग्या अर गिणवै दिनां में ई घर रो घरकोलियो हुयग्यो। कहाणी सीख देवै-आदमी ने भगवान सूं डर’र चालणो चाइजै। बो चावै तो डागळें सूं सीधो नीचै पटकै।
केई कहाण्यां दीसण में तो छोटी है पण पाठकों पर जबरदस्त असर छोडै। मईनुदीन कोहरी नाचीज’ री भासा सरल, सहज अर मुहावरैदार है। पोथी री हरेक कहाणी में मुहावरा अर कहावतां देखण में मिलै। कहाण्यां में संवाद छोटा-छोटा, चुटीला अर असरदार है। पोथी री कहाण्यां निस्वैई बांचण जोग अर प्रेरणादाई है।