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बीकानेर,दम्माणी धर्मशाला स्थित जे.एस.बी. संस्थान में पुस्तक-समीक्षा कार्यक्रम आयोजित किया गया l इसके अंतर्गत मूर्धन्य साहित्यकार, लेखक एवं अनुवादक जगदीश रतनू दासौड़ी द्वारा राजस्थानी भाषा में अनुवादित “भारतीय संस्कृति, धरम अर पर्यावरण संरक्षण” पुस्तक पर समीक्षा का आयोजन किया गया l पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व प्राचार्य, चिंतक व लेखक प्रोफेसर डॉ. नरसिंह बिनानी थे l अध्यक्षता संस्थान के संस्थापक डॉ.जगदीश दान बारठ ने की l पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष और संचालक डॉ.एस.के.बारठ थे l समीक्षा कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के तेलचित्र पर कुमकुम,चावल,पुष्पाहार, मोली एवं नारियल अर्पण कर पूजन किया गया l उसके पश्चात कार्यक्रम के स्वागताध्यक्ष डॉ.एस.के.बारठ ने स्वागत भाषण दिया l

पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए पूर्व प्राचार्य, चिंतक व लेखक प्रोफेसर डॉ.नरसिंह बिनानी ने कहा कि एक भाषा से दूसरी भाषा में, विशेषतः राजस्थानी भाषा में, अनुवाद करने का कार्य अत्यंत दुष्कर कार्य है l इसके लिए पूर्ण निष्ठा, लगन और मेहनत की आवश्यकता होती है l प्रोफेसर डॉ. बिनानी ने कहा कि अनुवाद कार्य में अनुवादक को मूल लेखक के भावों को उसी की भावनाओं के अनुरूप पाठकों को संप्रेषित करने का दायित्व होता है l इस अनुवादित पुस्तक के माध्यम से अनुवादक जगदीश रतनू दासौड़ी ने भारतीय धर्म व संस्कृति को पर्यावरण संरक्षण से जोड़ने का राजस्थानी भाषा में अद्भुत कार्य किया गया है l  प्रोफेसर डॉ. बिनानी ने कहा कि राजस्थानी भाषा में अनुवादित इस पुस्तक में डॉ. बी बी एस कपूर द्वारा मूल रूप में हिन्दी भाषा में लिखित “भारतीय संस्कृति, धर्म और पर्यावरण संरक्षण” पुस्तक की बेहद साधारण एवं जन सामान्य के समझ आने वाली मायड़ भाषा में अनुवादित किया जाना निश्चय ही सराहनीय कार्य है l
इस अवसर पर कार्यक्रम अध्यक्ष, संस्थान के संस्थापक डॉ.जगदीश दान बारठ ने अपना अध्यक्षीय उद्बोद्धन देते हुए कहा कि जगदीश रतनू दासौड़ी राजस्थानी भाषा के विख्यात साहित्यकार, विद्वान, लेखक एवं अनुवादक होने के साथ साथ बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी तथा शिक्षा विभाग के वरिष्ठ शिक्षक पद से सेवानिवृत है l उन्होंने जगदीश रतनू दासौड़ी के इस अनुवाद कर्म की सराहना करते हुए इसे आगे भी निरंतर जारी रखने का आव्हान किया ।  इस अवसर पर पुस्तक के अनुवादक जगदीश रतनू दासौड़ी ने अपने अनुवाद कार्य के अनुभव साझा किये l उन्होंने बताया कि इस पुस्तक का अनुवाद कार्य कोरोना काल में किया गया l अनुवाद के दौरान मूल पुस्तक के हिन्दी के कुछ शब्दों के राजस्थानी में भावानुकूल शब्द नहीं मिलने के कारण हिन्दी के शब्दों का ही प्रयोग किया गया है, ताकि मूल लेखक के भावों की संप्रेषणीयता बनी रहे l इससे पूर्व डॉ.एस.के.बारठ ने मुख्य अतिथि पूर्व प्राचार्य, चिंतक व लेखक प्रोफेसर डॉ. बिनानी का परिचय दिया। इस अवसर पर जगदीश रतनू दासौड़ी ने मायड़ भाषा में अनुवादित अपनी उक्त पुस्तक की प्रति भेंटकर प्रोफेसर डॉ. बिनानी को सम्मानित किया ।  प्रोफेसर डॉ. बिनानी ने अपना सम्मान किए जाने पर पुस्तक अनुवादक जगदीश रतनू दासौड़ी का आभार व्यक्त किया । इस पुस्तक-समीक्षा कार्यक्रम में संदीप बारठ, गुमान दान, आसिफ, शिवलाल, शंकर शर्मा आदि सहित संस्थान के अनेक कार्मिकों के साथ ही बड़ी संख्या में गणमान्यजन उपस्थित थे । अंत में गोष्ठी के संचालक डॉ.एस.के.बारठ ने सभी को धन्यवाद दिया ।

 

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