बीकानेर,राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के निवर्तमान अध्यक्ष एवं राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार शिवराज छंगाणी नहीं रहे। छंगाणी ने गुरूवार को नत्थूसरगेट स्थित अपने पैतृक निवास पर आखिरी सांस ली। 86 वर्षीय छंगाणी पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे।राजस्थानी साहित्य के मूर्धन्य रचनाकार और संत स्वभाव के पर्याय श्री शिवराज छंगाणी नहीं रहे। छंगानी ने अपने पूरे जीवन में 50 से अधिक कृतियों की रचना की । अपनी 86 वर्षीय जीवन यात्रा में वे राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व अध्यक्ष भी रहे।
उनियारा, ओलखान और संभाल थारो कवि करम जैसी कृतियां उन्होंने राजस्थानी साहित्य को दी।राजस्थानी साहित्य में गीत ,रेखाचित्र विधाओं के इतिहास में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा।उनके अवदान के लिए उन्हें देश विदेश के शताधिक पुरुस्कारों से सम्मानित किया गया।
मरुधर महरो देश बदलतो रितुवा सारी वेश हियो हुलसावे रे, सुन ए कामनगारी मिर्गनैनी रूप री डली ,आवो सजन घर आज, पधारो म्हारा राज चमाचम चमके बिजली जैसे गीतों को अपने मधुर कंठ से गाकर मंच लूटने वाले मंचीय कवियों के इतिहास में आज एक मील का पत्थर चला गया।मुंबई,कोलकाता,दिल्ली, सूरत सहित देश के विभिन्न कवि सम्मेलनों में अपनी गीतों की आभा बिखेर चुके थे।
मरुधर महरो देश बदलतो रितुवा सारी वेश हियो हुलसावे रे, सुन ए कामनगारी मिर्गनैनी रूप री डली ,आवो सजन घर आज, पधारो म्हारा राज चमाचम चमके बिजली जैसे गीतों को अपने मधुर कंठ से गाकर मंच लूटने वाले मंचीय कवियों के इतिहास में आज एक मील का पत्थर चला गया।मुंबई,कोलकाता,दिल्ली, सूरत सहित देश के विभिन्न कवि सम्मेलनों में अपनी गीतों की आभा बिखेर चुके थे।
21 नवंबर1938 को प्रसिद्ध एडवोकेट ग्वालदास छंगाणी के घर जन्मे पले बढ़े छंगाणी राजस्थानी भाषा की सेवा विगत 60 वर्षो से निरंतर कर रहे थे।उन्होंने शिक्षा,प्रौढ़ शिक्षा ,साहित्य और पठन पाठन के साथ समाज के विकास को दिशा देने की अनथक कोशिश की। वे अपने पीछे भरा पूरा परिवार छोड़ कर गए हैं।उनकी मृत्यु से संपूर्ण प्रदेश और देश के राजस्थानी साहित्य परिवार में शोक की लहर छा गई है।