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बीकानेर,राजस्थानी भाषा, कला व संस्कृति की पूरे विश्व में सराहना की जाती है। राजस्थानी करोड़ों लोगों की मातृभाषा है। राजस्थानी का गौरवशाली इतिहास रहा है, इसका विशाल शब्दकोष है व इसमें निरंतर उत्कृष्ट साहित्य-सृजन हो रहा है। राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता मिलनी ही चाहिए।

ये विचार साहित्यकारों ने विश्व मातृभाषा दिवस के अवसर पर राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, श्री सार्दूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट व राजकीय सार्वजनिक मंडल पुस्तकालय के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को पुस्तकालय सभागार में आयोजित ‘मायड़ भासा रो मान’ विषयक राजस्थानी संगोष्ठी में रखे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने कहा कि मातृभाषा व्यक्ति की सांस्कृतिक पहचान व अस्मिता है। पूरे विश्व में राजस्थानी बोलने-समझने वाले करोड़ों लोग हैं। राजस्थानी को शीघ्र संवैधानिक मान्यता मिले, इसके लिए गंभीरता से समन्वित प्रयास किए जाएं। विश्व की विभिन्न भाषाओं के उत्कृष्ट साहित्य का अनुवाद राजस्थानी में हो तथा राजस्थानी की कृतियों का अनुवाद अन्य भाषाओं में हो। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार-सम्पादक प्रो. अजय जोशी ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा का माध्यम राजस्थानी होना चाहिए। संवैधानिक मान्यता मिलने से बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार मिलेगा। राजस्थानी में एक ही शब्द के सैकड़ों पर्यायवाची मिलते हैं।
अकादमी सचिव शरद केवलिया ने बताया कि यूनेस्को ने 17 नवंबर 1999 को विश्व मातृभाषा दिवस की स्वीकृति दी थी। इसका उद्देश्य भाषायी और सांस्कृतिक विविधता व बहुभाषावाद के बारे में जागरुकता को बढ़ावा देना है। मायड़ भाषा व्यक्ति के संस्कारों की परिचायक है। साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि बच्चों को राजस्थानी बोलने-लिखने के लिये प्रेरित किया जाये। साहित्यकार पूर्ण निष्ठा से राजस्थानी में साहित्य सृजन करें, विशेषकर युवा लेखकों को इस दिशा में प्रोत्साहित किया जाए। शिक्षाविद् मोतीलाल ने शेक्सपियर के नाटकों के राजस्थानी अनुवाद के अंश प्रस्तुत किये। कार्यक्रम का संचालन करते हुए पुस्तकालयाध्यक्ष विमल शर्मा ने विश्व मातृभाषा दिवस के इतिहास के महत्व पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर मुख्य अतिथि जोशी ने उपस्थित लोगों को मातृभाषा के समर्थन व उन्नयन का संकल्प दिलवाया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विद्यार्थी मौजूद थे।

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