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बीकानेर,बीकानेर संभागीय आयुक्त कार्यालय में बीकानेर की जनभावनाओं का प्रतीक सबसे ऊंचा राष्ट्रीय ध्वज नदारद हो गया है। बीकानेर के उद्यमियों के अंशदान से यह तत्कालीन संभागीय आयुक्त डा. नीरज के. पवन की पहल से लगाया गया था। नए संभागीय आयुक्त राष्ट्रीय ध्वज और जनभावनाओं की कितनी कद्र करती है यह तिरंगे के प्रति उनके व्यवहार से समझा जा सकता है। कितना धन खर्च हुआ? उद्योगपतियों की कितनी मिटिंगें हुई ? समय, श्रम और जनभावनाओं का आकलन करने वाला कोई अधिकारी है भी? संभागीय आयुक्त के लिए अपने कार्यालय परिसर में से झंडा हटने पर कोई जिम्मेदारी नहीं है क्या? संभागीय आयुक्त की राष्ट्रीय ध्वज की अनदेखी की जितनी निंदा की जाए उतनी कम है। सरकार ऐसे अफसर के खिलाफ नोटिस क्यों नहीं लेती? जहां आईजी और कमिश्नर बैठते हैं वहां लाखों की लागत से सबसे ऊंचा झंडा लगाया गया। झंडा शायद फट गया होगा! दूसरा क्यों नहीं लगाया गया? नैतिक रूप से संभागीय आयुक्त जिम्मेदार है? संभागीय आयुक्त कार्यालय परिसर तो उनका जिम्मा है। अगर वो गैरजिम्मेदार है तो इसका दंड मिलना चाहिए। संभागीय आयुक्त का पद सरकारी संसाधनों का सुखभोगने के लिए ही है क्या? कुछ तो नैतिक जिम्मेदारी होगी। ऐसे अफसरों को शर्म आनी चाहिए जो राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान नहीं रख सकते। जनता और जनप्रतिनिधियों को भी हालत को समझने की जरूरत है। संभागीय आयुक्त के खिलाफ इस अनदेखी का मामला दर्ज हो। अफसरों के गेरजिम्मेदार होने का यह बड़ा मामला है। बीकानेर में प्रशासन की कार्यशैली और भूमिका पर कोई टिप्पणी करने की दरकार ही कहां है? संभागीय आयुक्त नीरज के पवन ने अपनी समझ, श्रम और जनता को विश्वास में लेकर, यातायात सुधार, चौराह विकास, अतिक्रमण हटाने, अस्पताल में व्यवस्था सुधार के जो भी काम किए थे वो ढर्रे पर लौटा आए है या लौटा रहे है। यह जन सुविधा का सुधार कितनी मेहनत और बाधा का सामना करके किया गया। जिम्मेदार जिला प्रशासन को कोई मतलब नहीं है। बीकानेर में रानी बाजार का अंडर ब्रिज और विकास कार्यों की तस्वीर जिला प्रशासन की कार्य दक्षता समझने के खातिर पर्याप्त है। लोग किससे कहें की प्रशासन अच्छा है या नकारा। जो जिम्मेदार थे उनको तो जनता ने सबक सीखा ही दिया। अब तो प्रशासन भी बदलेगा ही। अच्छी सी कार्यकाल की छवि के साथ। खासकर कलक्टर और न्यास अध्यक्ष। संभागीय आयुक्त का तो कहना ही क्या! तीन मंत्री क्यों हारे प्रशासन आंख मूंदे बैठा था इसलिए? जो मन में आया किया। खूब लूटा। जनता ने सबक सीखा दिया। विकास का झुनझुना धरा रह गया।

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