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बीकानेर,6 साल की उम्र, झोले में चूरमा और एक ड्रेस लेकर घर से निकला नन्हा बालक आज सांसद और फिर विधायक बन गया है. पूरे देश में उनके नाम की चर्चा है. यही नहीं, राजस्थान का मुख्यमंत्री बनने की रेस में भी वो सबसे आगे हैं.

हम बात कर रहे हैं तिजारा से विधानसभा चुनाव जीते बाबा बालकनाथ की.

बाबा बालक नाथ एक सामान्य परिवार से हैं. उनके पिता ने बाबा खेतानाथ को अपना बेटा दान दे दिया था. उस समय परिवार ने कभी नहीं सोचा कि जिस बेटे को दान में दे रहे हैं, वो एक दिन उनका और उनके गांव का नाम रोशन करेगा. बालकनाथ की जीत के बाद पूरा परिवार और गांव उन्हें राजस्थान का मुख्यमंत्री बनता हुआ देखना चाहता है. उनकी जीत से पूरे गांव में दिवाली जैसा माहौल है. ऐसे में बाबा बालकनाथ के माता-पिता ने बताया की.  बाबा बालकनाथ के जीवन के बहुत रोचक किस्से…

‘6 साल की उम्र में बने संन्यासी’

अलवर स्थित बहरोड़ के पास कोहराना गांव में रहने वाले सुभाष यादव शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति के रहे हैं. वो महाराज खेतानाथ की सेवा करते थे. कामकाज छोड़कर उनकी सेवा में लगे रहते. महाराज खेतानाथ ने सुभाष यादव को अपना शिष्य बनने की बात कही. लेकिन सुभाष यादव की शादी हो चुकी थी और उनके दो बच्चे थे. ऐसे में महाराज खेतानाथ ने सुभाष यादव से उनका बड़ा बच्चा मांग लिया, तो खेतानाथ के समाधि लेने के बाद सुभाष यादव ने अपना बड़ा बेटा दान कर दिया, जिसकी उम्र उस समय महज 6 साल थी. जिसको बालकनाथ नाम दिया गया.

बस फिर घर से एक झोले में चूरमा और एक जोड़ी कपड़े लेकर बालकनाथ घर से निकले और अपने गुरु के पास पहुंच गए. वहीं उनका जीवन बीता. बालकनाथ रोहतक स्थित अस्थल बोहर के महंत बने. उसके बाद अलवर से उन्होंने सांसद का चुनाव लड़ा. वो जीते और सांसद बन गए. अब तिजारा विधानसभा सीट से विधायक का चुनाव लड़ा, तो विधायक का चुनाव भी जीत गए. बालक नाथ आज मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे हैं. बालकनाथ के माता-पिता और परिवार के सदस्यों ने कहा कि उन्होंने अपना बेटा देश सेवा के लिए दान किया है. उन्हें खुशी है कि बेटा देश की सेवा कर रहा है.

‘घर से निकले, फिर कभी नहीं लौटे’

बालकनाथ की मां उर्मिला ने कहा कि मैं रात-दिन बस यही दुआ करती हूं कि मेरा बेटा सीएम बने और देश की यूं ही सेवा करता रहे. पिता सुभाष यादव ने बालकनाथ के बचपन का वाकया सुनाते हुए बताया कि शुरुआत में जब वो अपना बच्चा दान कर रहे थे, तब उनके मन में कई सवाल थे. वो संशय में भी थे कि क्या मैं जो भी कर रहा हूं, वो सही है या नहीं. फिर मैंने सोचा कि शायद विधाता को यही मंजूर हो. लेकिन जब से बालकनाथ साधु-संन्यासी बनने के लिए घर से निकले तो कभी लौटकर नहीं आए. क्योंकि वो वहां खुश थे. परिवार ने कई बार शादी समारोह में उनको बुलाने का प्रयास किया. लेकिन उन्होंने आने से मना कर दिया.

पिता ने कहा, ‘2 साल पहले जब बालकनाथ की दादी का निधन हुआ, तब वो गांव पहुंचे और एक घंटा रुकने के बाद वापस लौट गए. हम लोग बालकनाथ की जीत से बहुत खुश हैं. रात-दिन दुआ कर रहे हैं कि बालकनाथ मुख्यमंत्री बनें. घर में इसके लिए रोज पूजा-पाठ होता है.’

उधर बालकनाथ की जीत से उनके छोटे भाई के बच्चे भी खासे खुश हैं. स्कूल में पढ़ने वाली मोक्षी और मनु ने कहा कि ताऊ की जीत की खुशी में हमने अपने स्कूल में दोस्तों को पार्टी दी. स्कूल में टीचर और दोस्त जब बालकनाथ के बारे में पूछते हैं तो हमें बहुत अच्छा लगता है. मोक्षी ने कहा कि वो उनसे मिलना चाहती हैं, उनके साथ समय बिताना चाहती हैं. लेकिन यह संभव नहीं है.

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