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बीकानेर,मानव धर्म प्रचार सेवा संस्थान धर्म परायण मोहिनी देवी पंवार माली परिवार बीकानेर के संयोजन “प्रकाश चंद पंवार व भगवानजी पंवार की स्मृति” में रामपुरिया कालेज के पीछ कृपाल भैरव मंदिर के पास स्थित”श्रीभगवान निवास”में श्री मद भागवत सप्ताह कथा हो रही हे। सद् ग्रहस्थ संत मनुजी महाराज के संरक्षण मे कथा वाचन श्रीछैल बिहारी महाराज के मुखारविन्द से हो रहा है।आज छठवें दिवस की कथा करते हुवे बालसंत श्रीछैल बिहारी जी महाराज द्वारा गिरिराज धरण की लीला से इन्द्र के अहंकार को तोडने की कथा बतलाते हुवे कहा,। कि अंहकार ही भगवान का भोजन है। बड़े बड़े शूर, अमलात्मा, महात्माओ, देवताओं व दानव भी मद मोह लोभ व अंहकारवश ही मोह व पतन को प्राप्त हो गये। उद्धव गोपी संवाद द्वारा बालसंत ने बताया कि कभी भी जीव ओर ज्ञानीजनों को अंहकार नही करना चाहिए।अंहकार रुपी नाव के सवार का डूबना निश्चित है। उपरोक्त कथा व्याख्या के साथ-साथ महाराज ब ने पंच अध्याय रासप्रसंग की विस्तृत व्याख्या करते हुए बतलाया कि भगवान कृष्ण का गोपियों के साथ किया गया महा रास प्रसंग जीवात्मा के साथ परमात्मा के मिलन की अद्भुत लीला माना जाता है।।भगवान के उपरोक्त “महारास लीला काम पर विजय प्राप्त करने की लीला का नाम महारास” प्रसंग बतलाया गया है,, अज्ञानता वश कुछ जीव ऐसे काम की लीला मानते हैं जो कि सर्वथा अनुचित है।।साथ ही साथ गोपी और राधा के मन में अहंकार आने पर भगवान श्री कृष्ण द्वारा रास प्रसंग के मध्य उनको छोड़कर जाने की शिक्षा के द्वारा जीवो को बतलाया,,”कि जीवन में कभी अहंकार रूपी नाव पर सवार होकर जीवन की नैया पार लगाने की चेष्टा ना करें’, “क्योंकि जीवन मे अहंकार की नांव में सवार नाविक जीवात्मा डूबता है” और जीव जब भी अहंकार को अपने जीवन में अगर अपनाता है, तो आखिर में अधोगति एवं पतन का भागी होना पड़ता है। उपरोक्त प्रसंग महारास लीला के मध्य में पंडाल के अनेक श्रद्धालु गोपी गीत एवं मेरे प्रसंग में बाल संत जी की मेरा है लीला के साथ गोपियों का भगवान कृष्ण का अंतर्ध्यान होना रासलीला से की बिरह कथा प्रसंग में पहले तो सभी भक्त जनों के आंखों से अश्रु की धारा में पड़ी। लेकिन तत्पश्चात गोपी विरह प्रसंग भजन के द्वारा के समस्त श्रद्धालुओं द्वारा झूम झूम कर नाते और संपूर्ण पंडाल को वृंदावन बनाकर पवित्र किया और भगवान कृष्णा की भागवत भक्ति में डूब गए।। भगवान गिरिराज प्रसंग के अवसर पर मोहिनी देवी पंवार परिवार द्वारा छप्पन भोग का प्रसाद चढाया गया। तत्पश्चात भगवान कृष्ण के द्वारा कंस का वध कर उद्धार करने की कथा बतलायी गई।तत्पश्चात भगवान मथुरा छोड़कर संदीपनी मुनि के आश्रम जाकर 64 दिनों में 64 कलाओं की शिक्षा प्राप्त करने की कथा वहीं पर भगवान का सुदामा के साथ मित्रता होने की कथा, तत्पश्चात मथुरा में जरासंध के साथ युद्ध को छोड़ भगवान का भागकर द्वारिका जाकर बसने की कथा जिस कारण उसी समय भगवान का 1 नाम रणछोड़ दास भी पड़ा। भगवान ने रण इसलिए छोडा जिससे कि ब्राह्मणों की रक्षा हो सके। तत्पश्चात भागवत कथा माध्यम से द्वारिका में भगवान कृष्ण के 16108 विवाह की कथा मैं मुख्य रूप से भगवान कृष्ण का रुक्मणी के साथ विवाह की कथा सजीव झांकियों के साथ विवरण किया गया। “बालसंत ने कहा भगवान कृष्ण विष्णु है’ और रुक्मणी लक्ष्मी” “इस प्रकार से लक्ष्मी और नारायण के मिलन की लीला का नाम रुक्मणी विवाह प्रसंग” माना जाता है।कथा व्यवस्था सेवाश्रम हैतु ओमप्रकाश आकाश सोनी लविश गहलोत हिमांशी गहलोत लक्ष्मीनारायण शशिकला गहलोत, नेमीचंद सोनी, अश्वनी कुमार सोनी, नवरत्न धामु, हरिकिशन नागल ओमप्रकाश कुलरिया, देेवकिशन गैपाल, नितेश आसदेव,एवं पंडित रविकुमार शास्त्री संपूर्ण कथा मैं व्यवस्था संभाल रहे हैं।

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