बीकानेर,महाभारत कालीन पौराणिक चरित्रों को केन्द्र में रखकर राजस्थानी नाटक ‘हिडिम्बा’ के सृजन के साथ राजस्थानी गद्य विधा में सृजित डायरी विधा एवं राजस्थानी बाल डायरी के साथ दो काव्य संग्रह के रचनाकार कमल रंगा की नव प्रकाशित पांच राजस्थानी पुस्तकों से राजस्थानी साहित्य की सृजन यात्रा में एक नव पहल हुई है। यही केन्द्रीय भाव स्थानीय नागरी भण्डार स्थित नरेन्द्र सिंह ऑडिटोरियम में
प्रज्ञालय संस्था द्वारा आयेाजित ‘पोथी उछब’-एक रचनाकार चार विधाएं-पांच पुस्तकों के जन पाठक अर्पण समारोह में रहे।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं राजस्थानी अकादमी के अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने कहा कि कमल रंगा ने लोकार्पित हुई 5 पुस्तकांे के माध्यम से जहां एक ओर राजस्थानी गद्य विधा को नव आयाम दिए हैं वहीं राजस्थानी काव्य परंपरा में अपनी काव्य सृजनात्मकता से प्रदेश की प्रकृति, मरू संस्कृति के साथ जीवन के विभिन्न आयामों को नवबिम्ब-प्रतीक के साथ सृजन कर राजस्थानी काव्य यात्रा में एक नया रंग भरा है।
समारोह के मुख्य अतिथि वरिष्ठ नाटककार आलोचक एंव साहित्य अकादमी नई दिल्ली में राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के संयोजक डॉ अर्जुनदेव चारण ने कहा कि महाभारत कालीन पौराणिक चरित्रों को केन्द्र में रखकर खासतौर से नाटक का सृजन करना चुनौती भरा है। इसी तरह राजस्थानी साहित्य की सभी विधाओं में नवाचार करना भी जहां महत्वपूर्ण तो है ही वहीं जोखिम भरा भी है।
डॉ चारण ने लोकार्पित पुस्तकों में सृजित हाइकू एवं गद्य कविता के संदर्भ में भारतीय एवं विदेशी महान् रचनाकारों की रचनाओं एवं उसकी प्रक्रिया पर गंभीर आलोचनात्मक व्याख्या करते हुए राजस्थानी रचनाकारेंा को राजस्थानी की मठोठ और छंद-विधान के साथ क्रमशः जापान एवं फा्रंस की काव्य धारा को सृजित कर और अधिक ऊंचाईयां देने का उपक्रम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसे समारोह के माध्यम से हमें हमारी समृद्ध ज्ञान परंपरा और उसके अहम् चरित्रों को वर्तमान संदर्भ में परोटते हुए समझने और उनसे रूबरू होने के और सार्थक प्रयास करने चाहिए।
समारोह के विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ कवि-आलोचक एवं साहित्य अकादमी दिल्ली के हिन्दी परामर्श मण्डल के सदस्य डॉ. ब्रजरतन जोशी ने कमल रंगा कि लोकार्पित कृतियों पर अपने उद्बोधन मंे कमल रंगा के राजस्थानी साहित्य की विभिन्न विधाओं में निरन्तर समर्पित सृजन को रेखांकित किया। उन्होने आगे कहा कि हमें रचना प्रक्रिया में भाषा और भाव के साथ अन्य साहित्यिक तत्वों के लिए सावचेत रहना चाहिए, साथ ही उन्होंने पुस्तक चर्चा के आयोजन का सुझाव दिया।
समारोह में राजस्थानी के वरिष्ठ कवि, कथाकार, नाटककार आलोचक एवं संपादक कमल रंगा ने अपनी नव सृजित पांचों पुस्तकों में से चयनित रचनाओं के अंश वाचन कर राजस्थानी भाषा की मठोठ से रूबरू कराते हुए अपनी रचनाओं से उपस्थित विभिन्न कलानुशासन के गणमान्यों को भाव-विभोर कर दिया।
प्रारंभ में रंगा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर कवि संजय सांखला ने संक्षिप्त प्रकाश डाला।
रंगा कि लोकार्पित दो काव्य पुस्तक ‘कुदरत री कीरत’ अर ‘रंग अबीर गुलाल’ पर अपनी आलोचनात्मक व्याख्या के साथ पत्रवाचन करते हुए कवि आलोचक डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने कमल रंगा कि काव्य धारा के कई रंगों को सामने रखते हुए कहा कि रंगा के आज तक 11 काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और सभी संग्रह नवाचर लिए हुए हैं। रंगा खासतौर से पौराणिक चरित्रों को समकालीन संदर्भ में परोटते हुए नव बोध एवं नई अर्थवत्ता प्रदान करते है। डॉ प्रजापत ने कहा कि 21वीं सदी में राजस्थानी काव्य संग्रह सबसे ज्यादा कमल रंगा के प्रकाशित हुए हैं।
इसी क्रम में रंगा कि लोकार्पित 3 साहित्यिक कृतियां नाटक, डायरी विधा एवं बाल साहित्य की बाल डायरी पर अपनी आलोचकीय व्याख्या करते हुए अपने पत्र वाचन में कथाकार एवं आलोचक डॉ रेणुका व्यास ‘नीलम’ ने कहा कि कमल रंगा ने महाभारत की उपेक्षित नारी पात्र हिडिम्बा को केन्द्र में रखकर नारी-विमर्श की सशक्त नाट्य कृति को सृजित किया है। जो महत्वपूर्ण है। डॉ व्यास ने रंगा कि डायरी विधा की पुस्तक को राजस्थानी डायरी विधा में कम पुस्तकों की स्थिति में अपनी इस पुस्तक ‘बगत रै ओळावै’ से एक नई हलचल की है। इसी क्रम में रंगा द्वारा रची गई बाल साहित्य कि बाल डायरी संभवतः राजस्थानी बाल साहित्य की पहली डायरी की पुस्तक है। रंगा द्वारा सृजित तीनों गद्य पुस्तकों ने राजस्थानी गद्य साहित्य में नव प्रयोग किए हैं।
इस अवसर पर कमल रंगा की राजस्थानी साहित्य सेवा एवं राजस्थानी मान्यता के संघर्ष का मान करते हुए श्री जुबिली नागरी भण्डार पाठक मंच, राष्ट्रीय कवि चौपाल सहित अनेक संस्थाओं के पदाधिकारियों एव ंसदस्यों ने रंगा को शॉल, माला, साफा, प्रतीक चिन्ह आदि अर्पित कर सम्मान किया।
इस समारोह में सैकड़ों गणमान्य लोगों की गरिमामय साक्षी रही। समारोह का संचालन वरिष्ठ शायर कासिम बीकानेरी ने किया तो सभी का आभार ज्ञापित कवि गिरीराज पारीक ने किया।