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बीकानेर,कुछ भी कहो बीकानेर तो बीकानेर ही है। हम कितना ही कोसे नेताओ को, जन प्रतिनिधियों को, सरकार को, लेकिन बीकानेर के लोगो में जो मिठास हैं वे कहीं और नहीं! प्रकृति का वरदान ही समझिये— कि यहाँ के लोगो में जो भाईचारा हैं, प्रेम हैं, जो अपनापन हैं एक दूसरे की मदद करने का जो जज्बा हैं वह देश में कही भी नहीं! आप स्टेशन से बाहर आकर अपने किसी का पत्ता पूछो, वह आपको सारे काम- काज छोड़कर अपनी साइकिल या स्कूटी पर बैठाकर उसके घर छोड़ देगा। यह होगा सच्चा बिकानेरी! यहाँ के चुने हुवें जनप्रतिनिधियों को भी कभी गर्व नहीं रहा। चाहे वे मुरलीधर व्यास हो , चाहे गोकुल प्रशाद पुरोहित हो, गोपाल जोशी हो, या महबूब अली। निकल पड़ते थे सड़क पर— आम जनता की तकलीफ़ दूर करने के लिए। महबूब अली तो सादगी की मिसाल थे। वे सरकारी गाड़ी छोड़कर विधान सभा या सचिवालय साइकल पर या पैदल ही जाते। पूरे देश में वे साइकल वाले मन्त्री के नाम से विख्यात थे। हमारे संभाग की गृह मन्त्री प्रोफ़ेसर केदार ने तो अपना सरकारी बंगला अपने क्षेत्र के लोगो के लिए सुरक्षित कर रखा था हमारे डॉ बी डी कल्ला जी ने भी अपने घर के दरवाज़े सब के लिए खुले रखे हैं। ख़ैर बीकानेर की इस प्यारी आत्मीयता की परम्परा को किसी की नज़र ना लगे। आज यहाँ मुस्लिम- और हिन्दू मिलजुल कर रहते हैं। मुस्लिम भाई भी दिवाली और होली मनाते हैं और हिन्दू भी ईद पर सेविया खाने से नहीं चूकते। कला- साहित्य- संस्कृति की तो क्या बात करे- इनका अदभुत संगम हैं बीकानेर। कला साहित्य और रंगकर्म के क्षेत्र में बीकानेर ने जो नाम कमाया हैं उसका वर्णन शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। वैसे तो बीकानेर के लेखकों और कवियों के नाम जग ज़ाहिर हैं कुछेक नाम मैं लिख रहा हूँ। मसलन हरीश भदानी, मोहम्मद सदीक़, भीम पांड्या, शायर मस्तान , मोहम्मद अज़ीज़ , शमीम बीकानेरी , हरदर्शन सहगल , हालाँकि अन्य बहुत हैं जो इस दुनिया में नहीं हैं जिन्होंने साहित्य जगत में नाम कमाया। अभी भी आदरणीय नन्दकिशोर आचार्य, श्री भवानी शंकर व्यास- विनोद- श्री शिव राज छँगानी उमर के आख़िरी दौर में भी साहित्य सेवा मी जुटे हैं। इनकी विरासत को सम्भाले सरल विशारद सहित युवा लेखक और कवि मधुं आचार्य, हरीश बी शर्मा, बुलाकी शर्मा , राजेन्द्र जोशी, राजाराम सवर्णकार, बाबूलाल छँगानी, क़ासिम बीकानेरी , डॉ अजय जोशी, राजेन्द्र स्वर्णकार, मीनाक्षी स्वर्णकार, कवित्री मनीषा आर्य सोनी, आशा शर्मा, मोनिका गौड़, कृष्णा आचार्य, पूर्णिमा, मित्रा , बसन्ती हर्ष और भी कई महान विभूतियाँ हैं जो बीकानेर की सांस्कृतिक विरायत को आगे बढ़ा रही हैं। नाज़ हैं बीकानेर को इन पर। यही नहीं रंगकर्म के क्षेत्र में भी बीकानेर हमेशा अग्रणीय रहा हैं। आज भी प्रदीप भटनागर , बी एल नवीन, सुधीर व्यास, मन्दाकिनी जैसे अन्य कई क्लाकरों ने थियेटर के क्षेत्र में बीकानेर को ऊँचाइयाँ प्रदान की हैं। बीकानेर ने ना केवल रसगुल्लों की मिठास में या भुजियों के चटकने स्वाद में देश भर में अपना नाम कमाया अपितु यहाँ की ज़मीन की क़ुब्बत ही ऐसी हैं कि जो यहाँ आता हैं यहाँ का होकर रह जाता हैं। हमने आरम्भ से ही यह देखा हैं कि कोई कलक्टर या अन्य कोई अधिकारी यहाँ आना नहीं चाहता। और आने के बाद यहाँ से जाना नहीं जाता। ख़ासकर यहाँ आये डाक्टर्स— चाहे जितना जनता का शोषण करो , लुटने के बाद भी उफ तक नहीं करता यहाँ का नागरिक ? बीकानेर का नागरिक सरकार व जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के बावजूद भीअनेकों कस्ठों को झेलता हुआ अपनी आत्मीयता औरमानवता को, अपनी नियति को नहीं बदल रहा हैं। और इसका फ़ायदा सरकार और अधिकारी पूर्ण रूप से उठा रहे हैं। न उनसे आज तक रेल फाटको की समस्या हल हुई। ना ही शहर की मूलभूत आवश्यकताएँ वह पूर्ण कर पायी हैं। ख़ैर अब चुनाव निकट हैं संक्रान्ति का दौर हैं और इस दौर में परिवर्तन आवश्यक हैं। इतना तो बीकानेर का नागरिक समझता है।

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