Trending Now












बीकानेर,विश्व आयोडीन अल्पता एवं विकार निवारण दिवस के अवसर पर शनिवार को स्वास्थ्य भवन से नर्सिंग विद्यार्थियों द्वारा रैली निकाल कर आयोडीन के महत्व को प्रतिपादित किया गया वहीं स्वास्थ्य भवन सभागार में कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ मोहम्मद अबरार पंवार ने शरीर में आयोडीन की कमी से होने वाले शारीरिक विकार जैसे घेंघा, बौनापन आदि के बारे में चर्चा की व जागरूकता फैलाने हेतु आह्वान किया। उन्होंने बताया कि सूक्ष्म पोशक तत्व आयोडीन बहुत ही सुलभ और सस्ता है इसका मतलब ये नहीं कि ये कम उपयोगी है। आयोडीन की शरीर को बहुत थोड़ी मात्रा की जरूरत होती है लेकिन इसके बिना गंभीर बीमारियाँ व विकार हो जाते हैं। डिप्टी सीएमएचओ (स्वास्थ्य) डॉ लोकेश गुप्ता ने बताया कि आयोडीन खाद्य पदार्थो जैसे दूध, अंडा, दाल, मछली इत्यादि में भी विद्यमान होता है लेकिन सबसे अच्छा सुलभ स्रोत आयोडीन युक्त नमक है। बिना आयोडीन का नमक उपयोग नहीं करना चाहिए।

जिला आईडीडी लैब प्रभारी इदरीश अहमद द्वारा आयोडिन जाॅच करने की विधि के बारे में जानकारी दी गई। खाद्य सुरक्षा अधिकारी भानु प्रताप सिंह व श्रवण वर्मा ने बताया कि आयोडीनयुक्त नमक का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने खाद्य अपमिश्रण निवारक अधिनियम वर्ष 1954 (प्रिवेंशन ऑव फूड ऐडल्टशन ऐक्ट वर्ष 1954) के अंतर्गत देश में प्रत्यक्ष मानव उपभोग के लिए आयोडीन रहित नमक की बिक्री पर प्रतिबंध लगा रखा है। कार्यशाला में मौजूद नर्सिंग अधिकारी सुनील सेन, अजय भाटी व शिवम सांखला ने भी अपने विचार रखे।

क्यों जरूरी है आयोडीन ?
सीएमएचओ डॉ. अबरार ने जानकारी दी कि शरीर के विकास के लिए उत्तरदायी थाइरोक्सिन हार्मोन मनुष्य की अंतस्रावी ग्रंथि थायराइड ग्रंथि से स्रावित होता है। आयोडीन इसका महत्वपूर्ण घटक है अतः आयोडीन की अल्पता होने पर इसका निर्माण कम हो जाता है। आयोडीन की कमी से चेहरे पर सूजन, गले में सूजन (गले के अगले हिस्से में थाइराइड ग्रंथि में सूजन) और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में बाधा वजन बढ़ना, रक्त में कोलेस्ट्रोल का स्तर बढ़ना और ठंड बर्दाश्त न होना जैसे आदि रोग होते हैं।
गर्भवती महिलाओं में आयोडीन की कमी से गर्भपात, नवजात शिशुओं का वजन कम होना, शिशु का मृत पैदा होना और जन्म लेने के बाद शिशु की मृत्यु होना आदि होते हैं। एक शिशु में आयोडीन की कमी से उसमें बौद्धिक और शारीरिक विकास समस्यायें जैसे मस्तिष्क का धीमा चलना, शरीर का कम विकसित होना, बौनापन, देर से यौवन आना, सुनने और बोलने की समस्यायें तथा समझ में कमी आदि होती हैं।

Author