बीकानेर,भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 16 अक्टूबर को राजस्थान के उदयपुर और जोधपुर दौरे पर रहे। नड्डा ने उदयपुर और जोधपुर संभाग के प्रमुख पदाधिकारियों से सीधा संवाद किया। इन दोनों संवादों में पूर्व मुख्यमंत्री राजे भी उपस्थित रहीं। नड्डा ने स्पष्ट तौर पर कहा कि नेता की पहचान पार्टी से होती है। पार्टी की पहचान नेता से नहीं हो सकती। सवाल उठता है कि नड्डा ने यह बात राजस्थान के किस नेता के संदर्भ में कही है? विगत दिनों भाजपा ने अपने 41 उम्मीदवारों की घोषणा की। इनमें 6 लोकसभा और एक राज्यसभा के सांसद हैं। 41 में से अधिकांश स्थानों पर घोषित उम्मीदवारों का विरोध हो रहा है। मीडिया में जो खबरें प्रकाशित हो रही है, उसके मुताबिक विरोध करने वाले अधिकांश नेता वसुंधरा राजे के समर्थक हैं। सूत्रों की मानें तो सांसदों ने भी जो फीडबैक दिया है उसमें राजे समर्थकों की भूमिका ही बताई गई है। यहां तक कि कहा जा रहा है कि विरोध करने वाले अब निर्दलीय उम्मीदवारों के तौर पर चुनाव लड़ेंगे। इनमें तिजारा से सांसद बालक नाथ को पूर्व विधायक मामन यादव, झोटवाड़ा से सांसद राज्यवर्धन राठौड़ को पूर्व विधायक राजपाल सिंह शेखावत, किशनगढ़ से सांसद भागीरथ चौधरी को गत बार के प्रत्याशी विकास चौधरी, सांचौर से सांसद देवजी पटेल को पूर्व विधायक जीवाराम चौधरी, विद्याधर नगर से सांसद दीया कुमारी को नरपत सिंह राजीव चुनौती दे रहे हैं। ऐसी ही स्थिति कोटपूतली, देवली, भरतपुर के नगर, झुंझुनूं, लक्ष्मणगढ़, डूंगरपुर, बामनवास आदि में दी जा रही है। राजस्थान में भाजपा की राजनीति को समझने वाले कह सकते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी, भाजपा विधायक दल के नेता राजेंद्र राठौड़, उपनेता सतीश पूनिया या अन्य किसी नेता का ऐसा मिजाज नहीं है कि वे हाईकमान द्वारा घोषित उम्मीदवारों का विरोध करवाए। भले ही उम्मीदवारों के चयन में इन नेताओं की राय न मानी गई हो, लेकिन फिर भी ऐसे सभी नेता हाईकमान के निर्णय के साथ हैं। सब जानते हैं कि राजे के समर्थकों ने कई बार राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाने की मांग की है। राजे ने भले ही अपनी जुबान से कुछ न कहा हो, लेकिन समय समय पर शक्ति प्रदर्शन जरूर किया है। राजे पिछले पांच वर्ष से भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष है, लेकिन राजे ने राष्ट्रीय राजनीति में रुचि नहीं दिखाई है। राजे की प्रदेश राजनीति में ही सक्रिय रही। 17 अक्टूबर को दिल्ली में राजस्थान भाजपा की कोर कमेटी की जो बैठक हुई, उसमें भी राजे शामिल हैं। प्रधानमंत्री मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की होने वाली सभाओं में भी राजे को मंच पर बैठाया जाता है। 16 अक्टूबर को जोधपुर में मंच पर जब राजे की कुर्सी प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह के बाद लगाई गई तो नड्डा ने अरुण सिंह की कुर्सी पर वसुंधरा राजे को बैठाकर सम्मान दिया। यानी राष्ट्रीय नेताओं ने राजे का सम्मान करने में कभी कोई कमी नहीं रखी। इतना करने के बाद भी घोषित उम्मीदवारों के विरोध से भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व चिंतित हैं। राष्ट्रीय नेतृत्व अब यह नहीं चाहता कि घोषित उम्मीदवारों का विरोध हो, इसलिए 17 अक्टूबर को दिल्ली में कोर कमेटी की बैठक रखी गई है।