बीकानेर,श्रीमद् भागवत कथा को प्रणाम करते हुए श्री गोपेश्वर-भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथ का वाचन करते हुए व्यासपीठ पर विराजे सींथल पीठाधीश्वर महंत क्षमाराम जी महाराज ने बुधवार को दशमश स्कन्ध में गोपियों के विरह का प्रसंग बताया। उन्होंने कहा कि दशमश स्कन्ध को निरोध कहते हैं। निरोध का मतलब रुक जाना है। भक्ति शास्त्र में नारद जी ने लिखा है- लौकिक व्यवहार ओैर वैदिक व्यवहार सब रुक जाते हें। क्यों रुक जाते हें?, प्रेम में! वो निरोध कहलाता है।
क्षमाराम जी महाराज ने बताया कि भागवत में लिखा है। जब मनुष्य को गहरी नींद आती है, उसकी सारी शक्तियां रुक जाती है, वह भूल जाता है कि मैं कोई पढ़ा लिखा हूं, अनपढ़ हूं, विद्वान हूं, कलाकार हूं उसे कुछ पता नहीं रहता है। ऐसे ही भगवान के प्रेम में आत्म विस्मरण होता है।
महंत जी ने बताया कि भगवान ने रासलीला की, गोपियों के साथ ऐसे रहे और गोपियों के घरवालों को भी पता नहीं चला कि उनकी मां-बहन- बेटी जैसे सब सामने है, पता ही नहीं चला! रासलीला में देखो कैसे गोपियां तल्लीन हो गई। भगवान ने कंस को मार दिया। मथुरा आ गए, गुरुदक्षिणा दे दी। लेकिन मथुरा आने के बाद अपने कक्ष में पड़े उदास, मानो मथुरा में जैसे विपत्ति हो, ऐसे उदास पड़े रहते हैं। क्षमाराम जी ने उद्धव जी से भगवान श्री कृष्ण का मथुरा में हुए संवाद की व्याख्या की। उद्धव को भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोपियों के विरह की जानकारी देने और उन्हें मथुरा से गोकुल भेजने के प्रसंग की व्याख्या की।
कथा के साथ हो रहा मूल पाठ का वाचन
श्रीमद् भागवत पाक्षिक कथा के साथ प्रतिदिन वेदपाठी पंडितों द्वारा कथा का मूल पाठ किया जा रहा है। कथा आरंभ से पूर्व और कथा विराम से पूर्व प्रतिदिन आरती में यजमान आरती का लाभ ले रहे हैं। बुधवार को आरती में देश में अमन-चैन और विश्व शांति की कामना की गई। सेवा में जुटे सेवादार
कथा श्रवण के लिए आने वाले महिलाओं और पुरुषों के लिए कथा स्थल पर ठण्डे जल से लेकर हवा और अल्पाहार तक के लिए समिति की ओर से गठित टीम सुबह से शाम तक प्रेमभाव से कार्य कर रही है।