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बीकानेर,मन भटकता रहता है। यह मन भटकने का स्वभाव सदा कहां से आया है। मन की मर्जी से काम करते हैं। उसके कारण ही मन भटकता है। गुरुजनों की, बड़ों की आज्ञा का पालन ना करने वालों का मन भटकता है। जो माता-पिता की, गुरुजनों की आज्ञा का पालन करते हैं, उनका मन शांत रहता है।  सींथल पीठाधीश्वर महंत क्षमाराम जी महाराज ने गुरुवार को गोपेश्वर-भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रही पाक्षिक श्रीमद् भागवत कथा का वाचन करते हुए  यह सद्ज्ञान कथा श्रावक श्रद्धालु महिलाओं और पुरुषों को दिया। उन्होंने आज की कथा में कर्दम ऋषि, देवहूति और ब्रम्हा जी बेटे कर्दम के ९ पुत्रियों का होना और उनका विवाह ब्रम्हा जी के पुत्रों से होने का प्रसंग बताया। कर्दम ऋषि ने देवहूति के विवाह और उसके बाद गृहस्थ में रहने और वैराग्य होने का प्रसंग बताया। देवहूति को बड़ा वैराग्य हो गया तब कदम ऋषि ने उससे कहा- कि तू चिन्ता मत कर, तुम्हारे यहां भगवान का अवतरण होने वाला है। कर्दम जी के जाने के बाद देवहूूति ने विचार किया ऐसे ही उसके यहां भगवान प्रकट होते हैं।
महाराज ने कहा  पिता और माता की आज्ञा में भगवान का निवास होता है। उनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। भगवान की आज्ञा का फल उन्हें ही मिलता है, जो भगवान की पूजा करता है। माता- पिता क्या लेने वाले हैं, वह तो देने वाले होते हैं। मां देती ही देती है, लेती नहीं है।  संसार में ज्यादा मोह नहीं करना चाहिए। महंत क्षमाराम जी महाराज ने कहा कि  प्रेम करो संग करो, भगवान के साथ करो, वह प्रेम निभाने वाले होते हैं। वह दुश्मनों से भी प्रेम निभाने वाले होते हैं।
नारी के बारे में महंत जी ने बताया कि शास्त्रों की कही बातें कभी गलत नहीं होती है।महन्त क्षमाराम जी महाराज ने कहा कि महापुरुषों ने, सतपुरुषों ने कहा है जहां नारी का पूजन होता है, वहां देवता रमण करते हैं। नारी जाति के लिए संतो ने कहा है, नारी का जितना जल्दी कल्याण होता है, किसी का नहीं होता है। महिलाओं और कन्याओं से खचाखच भरे पंडाल में क्षमाराम जी ने महिलाओं को कहा कि स्त्रियों को स्वतन्त्रतापूर्वक यहां-वहां नहीं जाना चाहिए। जब भी घर से कहीं जाने का अवसर पड़े तो किसी ना किसी को साथ रखना चाहिए। चाहे वह भाई हो, पुत्र हो, पति हो, इसे अन्यथा नहीं लेना चाहिए। यह स्त्री का सम्मान होता है। स्त्री का अकेेले जाना, जहां चाहे जाना, किसी से मिलना यह ठीक नहीं है। इसका कारण बताया गया है। स्त्री का मन बड़ा कोमल होता है। वह जल्दी भावुक हो जाती है। बहुत जल्दी राजी भी हो जाती है। स्त्री का कोई दुरुपयोग ना कर ले, इसलिए संतो ने कहा है स्त्री को अकेले नहीं किसी के संग आना-जाना चाहिए। यहां तक की संतो के पास भी जाए तो अकेले नहीं जाना चाहिए और संतो को भी चाहिए कि एकांत हो तो स्त्री से संग ना करे, वार्ता ना करे।

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