बीकानेर,गोपेश्वर- भूतेश्वर महादेव मंदिर में चल रही पाक्षिक श्रीमद् भागवत कथा के पांचवे दिन मंगलवार को नित्य प्रवचन के दौरान कथावाचक क्षमाराम जी महाराज ने कहा कि भगवान की कथा कानों से सुनते हैं तो हद्धय का मेल दूर होता है।
आज की कथा में महाराज ने सुखागमन के पश्चात की कथा का आरंभ किया। महापुरुषों का संकल्प होता है, वह भगवान के संकल्प समकक्ष होते हैं। जैसे रेलगाड़ी जिस स्टेशन से छूटती है, अगले स्टेशन से घंटी बज जाती है। आगे से आगे सूचना देती रहती है। ऐसे ही भगवान का संकल्प होता है, वह महापुरुषों का संकल्प होता है। ऐसे ही सुखदेव जी पहले कहां थे। किसी को नहीं पता, लेकिन बाद में वह पृथ्वी पर घूमते हैं। यह सब भगवत संकल्प था। सुखदेव जी महाराज आए तो लोगों ने कहा परीक्षित तू हमसे जो प्रश्न पूछता है। सुखदेव जी आचरण से भागवत का उपदेश देने वाले हैं। इससे पूर्व महाराज ने कहा कि यजमान को भाव शुद्धी तो है, लेकिन वेशभुषा शुद्धी भी रखनी चाहिए। मंच पर पेंट-पायजामा पहनकर मंच पर ना आएं। पाश्चात्य वेशभुषा पहनकर जो पुष्पाजंली देता है, वह भी दोष होता है। इसलिए यजमान को इस बात का ध्यान रखना चाहिए। केवल भाव शुद्धी ही नहीं, वेशभुषा शुद्धी भी होनी चाहिए। पूजा-पाठ में भाग लेने वाले यजमान को धोती पहनकर शुभ कार्य में भाग लेना चाहिए। यह हमारी मूल संस्कृति से जुडऩे का मुद्दा है। भारतीय संस्कृति के गौरव के लिए शुद्ध मन से आगे आएं और मिलजुल कर इस संस्कृति की सेवा करें। धोती हमारी मूल पौशाक है। कुछ मूगल बाहर से आए तो कुछ उन्होंने वेशभुषा को बिगाड़ दिया और कुछ अंग्रेजो ने बिगाड़ दिया। हमारी संस्कृति पर बड़ा कुठाराघात हुआ है। एक चोटी नहीं रखना, एक धोती नहीं पहनना, एक खानपान को दुषित रखना, एक रोटी-बेटी का व्यवहार बदलना। इनसे हमारा हिन्दु धर्म का आंतरिक रूप से खोखलापन हो रहा है। वर्तमान में बहुत जरूरी है इस धर्म की रक्षा के लिए, सबसे ठोस संस्कृति हमारी और इसे हमारे ही आदमी कुचल रहे हैं और हम ही उन्हें प्रश्रय देते हैं। यह बड़े शर्म की बात है। ५६ मुस्लिम देश बताए जाते हैं, ईसाईयों के ओर भी ज्यादा है। हिन्दु धर्म का और कई देश है क्या?, धर्म इसको धर्म निरपेक्ष के नाम पर बेवकूफ बना दिया है। हम किस देश पर गर्व कर सकते हैं, यह देश हमारा हिन्दु है। गर्व करने लायक यही भारत देश है।शनिवार की शाम को भगवान श्री कृष्ण का जन्म होगा, रविवार को नन्दोत्सव मनाया जाएगा। वैसे भागवत सुनने वालों के लिए प्रत्येक दिन छोटे हो जाते हैं, कारण पता ही नहीं चलता।