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बीकानेर,चुनावों में आखिर क्यों गायब हो जाता है, पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा ?* वर्तमान समय में पर्यावरण संरक्षण एक वैश्विक मुद्दा बन चुका है लेकिन देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को बिगड़ते पर्यावरण के हालात की कोई चिंता नहीं है, उन्हें तो केवल अपने वोटों की खेती की चिंता सता रही है। भारत आज अभूतपूर्व पर्यावरणीय संकट का सामना कर रहा है। मानव की अमानवीय गतिविधियों के चलते देश ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, ओजोन होल, ओजोन परत क्षय प्रभाव, ग्रीनहाउस प्रभाव, ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र में ऊफान व चक्रवात, बाढ़, भूस्खलन, भूकंप, सूखा, प्रदुषण, महामारियों जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना कर रहा है। इतनी प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों के बावजूद भी देश के विभिन्न राज्यों में हो रहे चुनावों में पर्यावरण सुरक्षा एवं प्रदूषण से जुड़ा कोई भी मुद्दा राजनीतिक विमर्श में स्थान नहीं बना पाया है, ना ही किसी राजनीतिक दल ने अपने घोषणा पत्र में पर्यावरण संरक्षण को मुद्दा बनाया है और ना ही पर्यावरण विकास के लिए संकट डी.एम.एफ.टी फंड का किसी राजनीतिक पार्टी की सरकार ने पर्यावरण विकास में सदुपयोग किया है, जो बेहद ही शर्मनाक व चिंताजनक स्थिति है जबकि पर्यावरण संरक्षण हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है ।

*पर्यावरण संरक्षण को राजनीतिक मुद्दा बनाने का बिल्कुल सही समय* कभी भी हमारी हवा, पानी, मृदा, रसोई घर, परिवेश इतने खराब नहीं हुए थे, जितने आज हैं। देश में कुल 351 प्रदूषित नदी खंड हैं। देश के 640 जिलों में से 276 का भूजल फ्लोराइड युक्त, 387 में नाइट्रेट की अधिकता, 113 जिलों में भारी तत्व की बहुलता और 61 जिलों में यूरेनियम की अधिकता है जिसके कारण आज आम नागरिक के हलक को शुद्ध जल नसीब नहीं हो पा रहा है। गंगा में प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। असी व वरुणा नदी का अस्तित्व समाप्त हो चुका है। देश प्रदेश के अधिकांश प्राकृतिक जल स्रोत जैसे नदियां, तालाब, बावड़ी, कुएं, गौचर भूमियाँ, पुरातन पहाड़ियां, अतिक्रमण व औद्योगीकरण की चपेट में आकर अपने अस्तित्व नहीं बचा पा रहे हैं। दुनिया के 15 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से 14 अकेले भारत में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण भारत में मौत का पांचवा प्रमुख कारण है। प्राकृतिक संसाधनों के अवैधानिक दोहन, कृषि में प्रयुक्त प्रतिबंधित रसायनों के प्रचलन, खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी, सिंगल यूज प्लास्टिक का प्रचलन, बढ़ता औद्योगिकरण, शहरीकरण और विस्फोटक जनसंख्या वृद्धि ने हमारी आबो हवा को जहरीला बना दिया है। बावजूद इसके देश प्रदेशों की राजनीतिक पार्टियां चुनावों में जारी अपने घोषणा पत्र में पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण विषय को प्राथमिकता नहीं देती इसलिए अब वक्त आ गया है कि मतदाताओं को एकमत व जागरूक होकर पर्यावरण संरक्षण को चुनावी मुद्दा बनाएं जाने की मुहिम छेड़नी होगी।

*मतदाताओं के लिए पर्यावरण बने प्राथमिकता* देश के पूर्वोत्तर राज्यों नागालैंड, त्रिपुरा, मेघालय में चुनाव संपन्न होने के बाद, अब पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम व तेलंगाना में वर्ष 2023 के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस हेतु देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों ने अपनी चुनावी बिछात बिछाना शुरू कर दिया है। अब केवल उनके चुनावी घोषणा पत्र जारी होने बाकी हैं, लेकिन उनके चुनावी घोषणा पत्र में पर्यावरण संरक्षण को जन मुद्दा नहीं बनाया जाना, राजनीतिक दलों की प्रकृति विरुद्ध आचरण व प्रवृत्ति को परिलक्षित करता है। हमारे जंगल वन्य जीव और जैव विविधता पतन की ओर अग्रसर हैं। पिछले 3 दशकों में हमने प्राकृतिक वनों को बगीचों में बदल दिया है। मनुष्य और वन्य जीवों में संघर्ष बढ़ गया है। प्राकृतिक संसाधनों का अवैधानिक दोहन तेज़ी से हुआ है। जलवायु परिवर्तन देखा जा रहा है, जो लोगों के जीवन और आजीविकाओं के लिए खतरा बन चुका है। पृथ्वी का तापमान स्थाई रूप से 1 से लेकर 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, परिणामस्वरूप मानव जीवन संकट में है। राजनीतिक पार्टियों को वोट देने से पहले मतदाताओं को पर्यावरण संरक्षण की गारंटी, इन राजनीतिक पार्टियों से लेनी होगी और पर्यावरण संरक्षण को पार्टियों के घोषणा पत्र का प्रमुख एजेंडा व प्राथमिकता घोषित करवा कर उन्हें संकल्प दिलाना होगा, क्योंकि यह पर्यावरण को प्राथमिकता देने का सही वक्त है।

*प्राकृतिक जल स्रोत, पर्वत एवं गौचर पर अतिक्रमण के मुद्दे, राजनीतिक दलों के एजेंडो में शामिल हो* प्रकृति एवं प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण के लिए संघर्षित डॉ. मोनिका रघुवंशी का मानना है कि प्रमुख राजनीतिक पार्टियां प्रकृति हित एवं जनहित से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों को दरकिनार करके धर्म, जाति व आरोप प्रत्यारोप की राजनीति में अपनी पूरी ऊर्जा, समय व धन खर्च करती नहीं थकती हैं। आमजन या जीव मात्र के जीवन के लिए जरूरी प्रमुख आवश्यकताओं जैसे शुद्ध पेयजल, कृषि जल, शुद्ध हवा, शुद्ध खाद्यान्न, शुद्ध डेरी प्रोडक्ट की उपलब्धता, प्राकृतिक जल स्रोतों के संरक्षण, उनके अतिक्रमण एवं अवैधानिक दोहन, पुरातन अरावली पर्वत श्रृंखला में अवैध खनन, गोवंश के संरक्षण के लिए जरूरी गोचर भूमि में हो रहे अतिक्रमण, कृषि में प्रयुक्त घातक रसायनों का प्रचलन, ड्रग्स माफिया का मक्कड़ जाल, प्रतिबंधित व अप्रमाणित दवाओं व खाद्य सामग्रियों का बेचना, कचरा कुप्रबंधन, सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रचलन जैसी प्रमुख समस्याएं आज हमारे समक्ष खड़ी हैं। पुरातन अरावली पर्वत श्रृंखला पर अतिक्रमण कर, वहां के जंगलों को नष्ट कर, होटल व अवैध खनन का फैलता जाल, वहां की जैव विविधता के लिए खतरा बन चुका है। इस प्रकार देश प्रदेशों के प्रभावशाली राजनीतिक दल पर्यावरण से जुड़ी प्रमुख समस्याओं को गौण कर रहे हैं, जो ना तो जनहित में है, ना प्रकृति हित में और ना ही इन पार्टियों के हित में हैं क्योंकि प्रकृति के संरक्षण में ही हमारी संस्कृति, सभ्यता, परंपराए एवं जीवन सुरक्षित है ।
कैप्शन:- पर्यावरण संरक्षण

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