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बीकानेर,बीकानेर के लखासर गांव के रहने वाले लेखराम खिलेरी ने चीन के हांगझाऊ में चल रहे एशियाई गेम्स में कोक्सलेस पेयर रोइंग इवेंट (नौकायन) में देश के लिए रविवार को ब्रॉन्ज मेडल जीता। इसके बाद से उनके गांव और बीकानेर स्थित घर में खुशियों का माहौल है। यहां गुड़ से बनी मिठाई बांटी जा रही है। बहन घर आने वाले ग्रामीणों और आगंतुकों को अपने भाई का स्केच दिखा रही है।

जो उस वक्त बनाया था, जब लेखराम ने आर्मी में रहते स्पोर्ट्स जॉइन किया था। बहन कहती थी, भाई आप जरूर देश का नाम रोशन करोगे। एक ना एक दिन आप देश के लिए मैडल लाओगे। तब मैं ये स्केच सबको दिखाऊंगी। आज बहन की दुआएं काम आईं और लेखराम ने 6 साल की मेहनत से देश के लिए ब्रॉन्ज जीतकर एक मुकाम हासिल किया है।

चीन से बातचीत में 27 साल के लेखराम बताते हैं कि उनका बचपन लखासर गांव में बीता, जहां पानी के लिए छोटी-छोटी डिग्गियां बनी हैं। बचपन में नाव तक नहीं देखी। कभी सोचा नहीं था कि देश के लिए इतना बड़ा काम कर पाऊंगा।

मैंने 21 साल की उम्र में आर्मी जॉइन कर ली थी। मेरे पिताजी जगनराम खिलेरी भी BSF में रहे हैं। उन्होंने प्रेरित किया तो मैं आगे बढ़ पाया। शुरुआत में सोचा नहीं था कि नौकायन करूंगा। गांव में छोटी-छोटी डिग्गियों के अलावा इतना पानी कभी नहीं देखा था। पहली बार जब पानी में नाव उतारी तो डर सा लगा था।

लेखराम के पिता जगनराम बताते हैं कि 2017 में बेटे ने नौकायन सीखना शुरू किया था। सेना में शामिल होते ही खेलों की तरफ झुकाव बढ़ गया था। जब भी फोन आता तो वह प्रैक्टिस के बारे में बताता रहता था। शुरुआत में कई बार नौका पलट जाती थी। पूरा खेल बैलेंस और फुर्ती का है। शुरुआत में कम पानी में ही अभ्यास होता है तो डर नहीं था, लेकिन नौका पर बैलेंस करना बड़ी चुनौती रहती थी।

आर्मी कोच को पता था कि लेखराम शारीरिक रूप से नाव को तेज दौड़ा सकता है, लेकिन बैलेंस पर नियंत्रण जरूरी है। ऐसे में उसे काफी समय तक नाव का बैलेंस बनाने की ट्रेनिंग दी गई। धीरे-धीरे नाव पर बैलेंस भी बना और उस पर कंट्रोल करना भी सीख गया। इसके बाद स्पीड पर फोकस किया। जितनी स्पीड से आप नौका की पतवार को चलाओगे, वो उतनी ही तेज दौड़ेगी। ऐसे में बैलेंस के बाद स्पीड पर फोकस किया गया। आज उसी स्पीड के कारण वो देश को कांस्य पदक दिला सका है।

इस खेल (रोइंग) में एक नाव को उसके साथ जुड़े हुए पतवार की मदद से आगे बढ़ाना होता है। यह अन्य डिसिप्लिन से अलग होता है क्योंकि इसमें नाव को चलाने वाले एथलीट की पीठ नाव की चाल की दिशा में होती है और वे फिनिश लाइन पीछे की ओर से पार करते हैं।

लेखराम के उत्साह को देखते हुए उनकी छोटी बहन संगीता ने उनका स्केच बना लिया था। संगीता ने हाथों में मेडल लिए लेखराम का एक स्केच बनाया था, जिसे वह लेखराम के मैडल जीतने के बाद घर आने वाले हर मेहमान को दिखा रही हैं। बहन की खुशी का ठिकाना नहीं है। बहुत पहले ही उसके हाथ में मेडल का एक स्केच तैयार कर दिया था। आज वो स्केच साकार साबित हो गया।

ड्राइंग में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही बहन संगीता का कहना है कि उसे पूरा विश्वास था कि एक दिन भाई देश के लिए मेडल लेकर आएगा। आज वो दिन आ गया। दूसरी बहन मंजू कहती है कि वो जोश और जुनून का पक्का है। बचपन से ही जो चाहिए, उसके लिए जी-जान से जुट जाता था। आज भी उसका ये जोश ही देश के लिए पदक का कारण बना। वहीं लेखराम की मां समति देवी अपने बेटे की इस उपलब्धि पर बेहद खुश हैं। वह कहती हैं कि उन्हें पूरा विश्वास था कि लेखराम देश का नाम रोशन करेगा।

आर्मी में स्पोर्ट्स कैटेगरी में होने के कारण लेखराम को परिवार साथ में रखने की अनुमति नहीं है। बहन मंजू बताती है कि भाई का सेना के प्रति लगाव पहले से था, चयन के बाद स्पोर्ट्स में सिलेक्शन के बाद तो वो पूरी तरह उसी में समर्पित है। पिछले लंबे समय से वह बीकानेर नहीं आया। राखी पर भी केवल बात ही हो पाती है।

इससे पहले लेखराम गुजरात के गांधीनगर में आयोजित 39वें नेशनल गेम्स में भी सेना के लिए पदक जीत चुके हैं। इसके अलावा हाल ही में 6 जुलाई को स्विट्जरलैंड में आयोजित वर्ल्ड कप में छठा स्थान प्राप्त किया था। इसी वर्ल्ड कप में रही कमियों को दूर करते हुए इस बार कांस्य पदक जीता। इसी साला फरवरी में भी लेखराम ने नेशनल सीनियर रोइंग में गोल्ड मेडल जीता। इसके बाद उनका चयन एशियन गेम्स के लिए हुआ।

लेखराम के पिता जगनराम बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स (BSF) में रहे हैं। वह उधमपुर, गांधीधाम, वेस्ट बंगाल, जम्मू कश्मीर, डोडा, जम्मू के अखनूर बॉर्डर पर तैनात रहे। ऐसे में जगनराम ने अपने परिवार को पहले गांव में और बाद में बीकानेर शहर में रखा। दो बेटियां मंजू और संगीता भी बीकानेर में ही पढ़ी। लेखराम की पत्नी अंजलि और बेटा बीकानेर में रहते हैं।

यह प्रतियोगिता शुरू हुई तो दोनों बहनें लगातार इंटरनेट के माध्यम से लेखराम के बारे में मालूम करती रहीं। उन्होंने कहा कि सुबह से हम रिजल्ट के इंतजार में लगे थे। भाई ने प्रतियोगिता जीतने के बाद वीडियो कॉल कर इसकी जानकारी दी।

लेखराम ने अपनी स्कूली शिक्षा बीकानेर के जेम्स थॉमस सीनियर सेकेंडरी स्कूल से ली। इसके बाद डूंगर कॉलेज में ग्रेजुएशन किया। पढ़ाई में सामान्य लेखराम को सेना में ही भर्ती होना था। इसके लिए वह सुबह-शाम दौड़ लगाते और जमकर पसीना बहाते थे।

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