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बीकानेर,तेरापंथ भवन, गंगाशहर। पर्यूषण पर्व को आत्म साधना का पर्व बताते हुए मुनि श्री श्रेयांश कुमार जी ने गीतिका के माध्यम से पर्युषण पर्व का महत्व बताया। मुनि श्री विमल बिहारी जी ने कहा कि पर्युषण काल में जितना संभव हो सके, श्रावक समाज को धर्म आराधना करनी चाहिए। अपने मुख्य प्रवचन में शासनश्री साध्वी श्री शशिरेखा जी ने कहा कि पर्यूषण का अर्थ है- राग द्वेष का उपशमन। नकली से असली की ओर प्रस्थान करना। विभाव से हटकर स्वभाव में रमण करना। पर्युषण आत्म शुद्धि की विशेष प्रेरणा देता है। साध्वी श्री ललित कला जी ने पर्युषण पर्व का महत्व बताते हुए पर्युषण पर्व मनाने की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। साध्वीश्री कांतप्रभा जी व योगप्रभा जी ने गीतिका का संगान किया। साध्वीश्री मंजुलाश्री जी ने खाद्य संयम को लक्षित करते हुए कहा कि संसार में अमन चैन का एकमात्र साधन है – संयम। उन्होंने तीन प्रकार के आहार तामसिक, राजसिक व सात्विक की विवेचना करते हुए सात्विक आहार को मनुष्य के लिए श्रेष्ठ बताया। तेरापंथी सभा के मंत्री रतनलाल छलाणी ने बताया कि पर्यूषण पर्व की शुरुआत पर श्रावक- श्राविकाओं में विशेष उत्साह नजर आया। किसी ने उपवास तो किसी ने एकासन के माध्यम से पहले दिन तप में अपनी सहभागिता निभाई। तेरापंथ भवन और शांति निकेतन में अलभोर से ही सामायिक, संत दर्शन एवं जाप के लिए श्रावक समाज के पहुंचने का क्रम शुरू हो गया।

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