बीकानेर,जोधपुर। विश्व विख्यात जीव वैज्ञानिक एवं पर्यावरणविद् प्रोफेसर डॉ. सुरेन्द्रमल मोहनोत का मंगलवार तड़के निधन हो गया। वे 82 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्कार आज दिनांक 12/09/2023 को मध्याह्न पश्चात साढ़े चार बजे सिंवाचीगेट स्थित जैन समाज के श्मशानघाट पर किया जाएगा । ज्ञातव्य रहे कि उनके परिवार में उनकी पत्नी श्रीमती उच्छ मोहनोत हैं ।
प्रथम इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्षमित्र एवं प्रथम राष्ट्रीय पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित, कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से जुड़े रहे डॉ. सुरेन्द्रमल मोहनोत उन गिने चुने जीव वैज्ञानिकों में से थे, जिन्होंने रेगिस्तान में पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए वैज्ञानिक सोच को आम आदमी तक पहुंचाया। मोहनोत के प्रयासों से ही वर्ष 1978 में बंदरों के निर्यात पर पूर्ण रोक लगी जो अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय डेजर्ट फेलोशिप दिलवाना, विश्नोई समुदाय के वृक्ष व पर्यावरण रक्षा के कार्यों को सम्मान तथा राष्ट्रीय स्मारक के रूप में दर्जा दिलवाने का महत्वपूर्ण कार्य डॉ. मोहनोत के प्रयासों से हो संभव हो पाया था। डॉ. मोहनोत ने बीस से अधिक देशों में भारतीय नर वानरों के विशेषकर हनुमान बंदरों के आचरण विज्ञान पर व्याख्यान दिए। उनके जनहित के उच्च स्तरीय कार्यों को देखते हुए राजस्थान उच्च न्यायालय ने खनन, पानी एवं पर्यावरण के संवर्धन के लिए उनकी अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी। उच्च शिक्षा में वन्यजीव संरक्षण, पर्यावरण संवर्धन आदि विषयों को विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में सम्मिलित करवाने के लिउ डॉ. मोहनोत ने महती भूमिका निभाई।
विश्वविद्यालय में अध्यापन के साथ डॉ. मोहनोत ने स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से विज्ञान को आधार मानकर मरुस्थल के विभिन्न अभाव वाले क्षेत्रों में उपलब्ध जैव विविधता, परम्परागत ज्ञान-विज्ञान, ओरण- गोचर संस्कृति, वन्यजीव, पशुधन, जलसंरक्षण तथा खनिज सम्पदा को आम आदमी से जोड़ने के प्रयास किए। उन्होंने मरुस्थल के बदलते पर्यावरण एवं उनसे होने वाले हानि-लाभ से जनता एवं प्रशासन को समय-समय पर सचेत भी किया।
प्रो. मोहनोत का जन्म 13 जून 1941 को जोधपुर में हुआ था। उनके पिता रणजीत मल मोहनोत उत्तर रेलवे की लेखा सेवा में कार्यरत थे। पर्यावरणविद् प्रो. मोहनोत की प्रारंभिक शिक्षा जोधपुर की महेश तथा नवीन राजकीय उच्च विद्यालय में हुई। वे बचपन से ही वनस्पति एवं जन्तु विज्ञान में रूचि रखते थे तथा वनों में घूमने, प्राकृतिक सौन्दर्य का लुप्त लेने एवं वन्य जीवों की जीवन क्रियाओं को वे बहुत नजदीकी से देखते थे। डॉ. मोहनोत ने विज्ञान में स्नातक की परीक्षा वर्ष 1962 में जसवंत महाविद्यालय से तथा प्राणि विज्ञान में स्नातकोत्तर की परीक्षा वर्ष 1964 में जोधपुर विश्वविद्यालय (वर्तमान में जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय) से प्राप्त की। यद्यपि उनका चयन आयुर्विज्ञान महाविद्यालय में चिकित्सा अध्ययन के लिए भी हो गया था, परन्तु आर्थिक विषमताओं के कारण वे इस अध्ययन को पूरा नहीं कर सके। डॉ. मोहनोत ने प्रारम्भ में कुछ समय तक घरेलू मक्खियों पर अपना शोध प्रारम्भ किया। तत्पश्चात् उन्होंने विश्वविख्यात कीट विज्ञानी प्रो. एम. एल. रूनवाल के निर्देशन में जोधपुर के हनुमान बंदरों की पारिस्थितिकी एवं सामाजिक आचरण जैसे नवीन विषय पर अन्वेषण कर वर्ष 1970 में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
डॉ. मोहनोत ने वर्ष 1964 में एमएससी करने के बाद कुछ माह तक केन्द्रीय विद्यालय जोधपुर में भी अध्यापन किया। इस विद्यालय में जीव विज्ञान विषय उनके कुशल नेतृत्व में ही खोला गया। इसके पश्चात मॉडर्न विद्यालय में भी मोहनोत ने जीव विज्ञान विषयक प्रयोगशाला की परियोजना तैयार की। डॉ. मोहनोत ने अक्टूबर 1964 से जोधपुर विश्वविद्यालय (वर्तमान जेएनवीयू) में अध्यापन प्रारंभ किया।
1971 में डॉ. मोहनोत ने नर हनुमान बंदरों के दूध पीते बच्चों को मारकर दल में अपना एक छत राज्य स्थापित करने का विस्तृत अध्ययन एवं अन्वेषण किया, यह विश्व में संभवतः पहला शोध कार्य था, जो आगे चलकर सामाजिक जीव विज्ञान का आधार बना। उनका यह शोध पत्र 1970 से 1980 के दशक में प्राणिविज्ञान के जर्नलों में सर्वाधिक लोकप्रिय एवं संदर्भित रहा। अमेरिका की नेशनल जियोग्राफिक सोसाइटी, आई. यू. सी. एन. नेशनल साइंस फाउण्डेशन, वेनर मेन फाउण्डेशन, अंतरराष्ट्रीय प्राईमेट प्रोटेक्शन लीग जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से जुड़े रहे डॉ. मोहनोत के अन्वेषण को विश्वव्यापी मान्यता प्राप्त है।
कथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्थान, (पंजीकृत ) जोधपुर के अध्यक्ष साहित्यकार एवं इतिहासकार प्रोफेसर जहूर खां मेहर तथा साहित्य अकादेमी,नई दिल्ली से पुरस्कृत साहित्यकार मीठेश निर्मोही ने प्रोफर मोहनोत के निधन को देश और दुनिया के लिए अपूर्णीय क्षति बताते हुए विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की है ।