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बीकानेर,आचार्य तुलसी कैंसर रिसर्च सेंटर का गामा कैमरा 21 साल बाद कंडम करार दे दिया गया है। गामा के साथ ही अब पेट स्कैन की जांच भी आउट सोर्स से कर दी गई है। चिरंजीवी और आरजीएसएच के कारण इसका भार मरीजाें पर नहीं पड़ेगा।

कैंसर हॉस्पिटल में गामा कैमरा 2002 में इंस्टॉल हुआ था। न्यूक्लियर मेडिसिन का विशेषज्ञ नहीं होने से दस साल से जांच बंद थी। अवधि पूरी होने के कारण बाद में कैमरा ही बंद कर दिया गया। न्यूक्लियर मेडिसिन में एमडी की नियुक्ति होने के बाद कैमरे को कंडम करने का प्रोसेस शुरू किया गया। भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र की मंजूरी पर प्रिंसिपल ने कैमरे को कंडम करार दे दिया है। इसके साथ ही पेट स्कैन जांच भी आउट सोर्स कर दी गई है।

दोनों मशीन लगाने का खर्च 35 करोड़ से ज्यादा बैठता है। इसे देखते हुए दोनों ही मशीनें अब पीबीएम परिसर में नहीं लग सकेंगी। चिरंजीवी, आरजीएसएच जैसी स्कीम लागू होने के बाद महंगी जांचों के लिए सरकार पीपीपी मोड पर जा चुकी है। इसलिए दोनों ही मशीनों से होने वाली जांच एक प्राइवेट फर्म को सौंप दी गई है। चिरंजीवी और आरजीएसएच में खर्च 13-14 हजार ही आ रहा है। जबकि राज्य से बाहर के रोगियों को 20 हजार रुपए देने पड़ते हैं। गौरतलब है कि मेडिकल कॉलेज प्रिंसिपल ने जून 2022 में मैसर्स मॉलीक्यूलर साइंटिफिक कोर हेल्थ केयर प्राइवेट लिमिटेड को पीपीपी मोड पर पेट सिटी स्कैन जांच का काम एक साल के लिए सौंपा था। अब टैंडर भी इसी फर्म को मिला है। लाइसेंस धारक भी कैंसर हॉस्पिटल में न्यूक्लियर मेडिसिन के डॉ. अमित शेखावत ही हैं।

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