बीकानेर, गंगाशहर रोड स्थित नगर आर्य समाज में संस्कृत दिवस पर बोलते हुए मुख्य अतिथि राजकीय डूंगर महाविद्यालय की संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. नंदिता सिंघवी ने संस्कृत भाषा का महत्व प्रतिपादित करते हुए कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है अतः इसके सीखने से अन्य भाषाओं को समझने तथा अनुवाद में सहायता मिलती है। संस्कृत में विज्ञान निहित है। अनेक वैज्ञानिक सिद्धांतों का प्रतिपादन ऋषि मुनियों ने अपने ग्रंथो में किया है परंतु संस्कृत शिक्षा के अभाव में वह ज्ञान प्रकाशित नहीं हो पा रहा है संस्कृत अध्ययन के लाभ बताते हुए सिंघवी ने कहा कि इससे शारीरिक, आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ आर्थिक लाभ भी होता है। आर्य समाज यज्ञों के माध्यम से वेदों के मन्त्रों की रक्षा कर रहा है उन्होंने वेदों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वेदों को राष्ट्रीय ग्रंथ घोषित करना चाहिए। संस्कृत पढ़ने से सभ्य नागरिकों का निर्माण होता है अतः हमारी भावी पीढ़ी को सुसंस्कारित करने के लिए उन्हें संस्कृत अवश्य पढ़नी चाहिए।
आचार्य केसरमल शास्त्री ने यज्ञ करवाते हुए श्रावणी उपकर्म पर प्रकाश डाला और इसे अध्ययन अध्यापन से जुड़ा हुआ पर्व बताया क्योंकि इसी पर्व पर गुरुकुल में नव प्रवेशित विद्यार्थियों का उपनयन संस्कार होता है तथा वे यज्ञोपवीत धारण करके, गुरुमंत्र लेकर, दण्ड, मेखला स्वीकार करके ब्रह्मचर्य आश्रम में प्रवेश लेते हैं, सभी उपस्थित श्रोताओं से इस पर्व को मनाने का आग्रह किया सभी उपस्थित सज्जनों को नया यज्ञोपवीत धारण करवाया। मुख्य यज्ञ मान श्रीमती सुनीता और कंचन देवी थी.
सत्श्रुत उपाध्याय ने रक्षाबंधन के प्रारंभिक स्वरूप का दिग्दर्शन कराते हुए विभिन्न प्रमाणों से सिद्ध किया की प्राचीन काल में जब ब्रह्मचारी विद्या अध्ययन हेतु गुरुकुलों में जाते थे तब राजा लोग (प्रशासक वर्ग) अध्यापक व विद्यार्थियों को रक्षा सूत्र बांधकर उनकी रक्षा करने का वचन देते थे, यही रक्षा करने की परंपरा चलकर वर्तमान में बहिन द्वारा भाई के रक्षा सूत्र बाँधती है और भाई उसे रक्षा का वचन देता है, जिसे हम रक्षाबंधन के रूप में मनाते हैं.
नगर आर्य समाज के प्रधान महेश आर्य ने अपने उद्बोधन में बताया कि हैदराबाद निजाम द्वारा 1938-39 में आर्य समाज पर प्रतिबंध तथा मंदिरों में पूजा और घंटियां बजाने पर रोक लगाई, जिसके खिलाफ सत्याग्रह किया जो आज ही के दिन सफल हुआ। इसके सत्याग्रहियों को स्वतंत्रता सेनानियों का दर्जा दिया गया।
भजनोपदेशक रामगोपाल तथा श्रीमती उषा, कंचन, लक्ष्मी, पुष्पा, गायत्री, सुनीता आदि ने भजनों की प्रस्तुति दी.
आर्य समाज के नगर मंत्री भगवतीप्रसाद ने आगंतुकों का आभार जताया. यज्ञशेष सुनीता के जन्म दिवस के अवसर पर उनके द्वारा वितरित हुवा.
स्वतंत्रता सेनानी स्व. चिरंजी लाल जी स्वर्णकार की जन्म शती पर उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए स्मरण किया। शांति पाठ के बाद वैदिक उद्घोष के साथ कार्यरत क्रम का समापन हुआ.