बीकानेर-भ्र्ष्टाचार पर राजस्थान की प्रमुख दोनों पार्टियां जमकर एक दूसरे को कोसती हैँ, तीसरे छूट मुट्ट दल के भी नेता भ्र्ष्टाचार रूपी आरोपों की इस लड़ाई में पीछे नहीं रहते, किन्तु हकीकत यह कि जो विभाग 1959 से आज तक भ्र्ष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाने में अपनी निष्ठां, लगन और ईमानदारी से कार्यरत था उस विभाग को हीं जड़ से समाप्त करने व सजा के तौर पर इस विभाग के कर्मचारियों कि पदोन्नति सहायक प्रशासनिक अधिकारी से ऊपर के पदों की 2018 से आज तक नहीं की l जिसके फ्लस्वरूप इस विभाग के लगभग 20 कर्मचारी पदोन्नति के बिना हीं सेवानिवृत हो गये l राजस्थान विधानसभा से ध्वनिमत से पारित प्रस्ताव 1959 और भारत सरकार के महालेखाकर की अनुशंसा पर नहर विभाग के खर्चो पर प्रभावी वित्तीय प्रबंधन एवं निगरानी हेतु मुख्य लेखाधिकारी (प्री -चैक ) इंदिरा गाँधी नहर परियोजना की स्थपना की गई, अपने प्रारम्भ से अब तक 1959 से जून 2017 तक प्री -चैक के रूप में त्तपश्चात जुलाई 2017 से अब तक निरिक्षण के रूप में एक अच्छे वित्तीय प्रहरी के रूप में पूरी राजस्थान सरकार में अपनी अमीट छाप छोडी जहाँ नहर विभाग में अरबो खर्च के बाद भी प्री चैक के रूप में करोड़ो अनियमित भुगतान को होने से अपने कुशल वित्तीय प्रबंधन से रोका तो निरिक्षण के रूप में अब तक करोड़ो की वसूली की गई किन्तु परिणाम स्वरूप सजा के तौर पर इस विभाग को पूर्व सरकार ने खत्म करने की कार्यवाही शुरू की और इस सरकार ने उस कार्यवाही को अमलीजामा पहनाया इतना हीं नहीं कार्मिक विभाग के मर्जीग की स्थिति में बनाये गये नियम 2008 के उस आदेश को कि किसी विभाग को दूसरे विभाग में मर्जीग किया जाता हैँ तो उस स्थिति में वरिष्ठता नियुक्ति तिथि से मानी जायेगी, किन्तु खेद हैँ कि नहर विभाग के मुख्य अभियंता महोदय अपना प्रशासनिक नियंत्रण के तहत कर्मचारियों के स्थानांतरण 2018 से करते आ रहे हैँ किन्तु कर्मचारियों कि वरिष्ठता का निर्धारण आज तक नहीं कर रहे l मैं राजस्थान के मुख्यमंत्री जी से पूछना चाहूंगा कि भ्र्ष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लगाने वाले विभाग को किस कारण से खत्म किया गया, और 2018 से अब तक किस कारण इस विभाग के कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं की गई, कारणों से अवगत करावे l इस संबंध में महोदय आपको, जल संसाधन मंत्री, इंदिरा गाँधी नहर मंत्री, उच्च अधिकारियो को अनेकों पत्र लिख चुके हैँ किन्तु खेद हैँ कि आज तक कोई कार्यवाही नहीं कि गई,अन्यथा सेवानिवृत हुवे कर्मचारी और कार्यरत कर्मचारी अपने हक प्राप्त करने के लिए मजबूर होकर न्यायालय की शरण लेंगे l
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