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बीकानेर,रांगड़ी चौक के बड़ा उपासरा में सोमवार को यतिश्री अमृत सुन्दरजी ने
भक्तामर स्तोत्र की 14-15 वीं गाथा का वर्णन करते हुए कहा कि राग-द्वेष, विकारों का त्याग कर, मन को विचलित किए बिना परमात्मा की शरण में जाएं। साधना, आराधना व भक्ति में कठिनाइयां व परेशानियां आने पर आत्म व परमात्म प्राप्ति के लक्ष्य को नहीं छोड़ें।
उन्होंने कहा कि जीवन में वास्तविक सुख व शांति की प्राप्ति परमात्मा की शरण लेने से मिलती है। परमात्मा ही सर्वगुण संपन्न,शांति, निर्दोषता आदि गुणों से विभूषित है। परमात्मा का प्रभुत्व व अस्तित्व कल्पांतकाल यानि प्रलयकाल में भी विद्यमान रहता है, सुमेरु पर्वत की तरह अड़िग रहता है।
यतिश्री अमृत सुन्दर ने कहा कि राग-द्वेष, विकारों आदि के छोटे-छोटे नीमितों से मन को मलीन नहीं करें। विकारों का क्षय वीराग के मार्ग पर चलने, वीतराग परमात्मा का सत्य साधना ध्यान करने से होता है। परमात्मा के सद्गुण व प्रभाव तीनों लोकों में व्याप्त है। जीवन में हमें विवेक रखते हुए विकारों को मजबूती से अतःकरण में प्रतिष्ठित नहीं होने देना है। राग-द्वेष व आसक्ति से मुक्त होकर मन को शांत व समतावान रखना है। राग-द्वेष व आसक्ति के विकारों को शक्ति के साथ दूर करने का प्रयास व पुरुषार्थ करना है। ध्यान साधना से अंदर के विकार निकलते है तथा स्वभाव में शांति प्राप्त होती है।
यति सुमति सुन्दर ने कहा कि 18 पापों में झूठा आरोप मिथ्यावचन, निंदा, झूठा कलंक लगाना बहुत बड़ा पाप है, इस पाप का प्रायश्चित भी नहीं है। सभी को इस पाप से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कहा कि भाव के अनुसार जीव के अच्छे बुरे, शुभ-अशुभ कर्म बंधते है। हमें सबके प्रति अच्छे भाव रखने चाहिए तथा किसी पर झूठा कलंक ं, ईर्ष्या द्वेष नहीं रखना है।  यतिनि समकित प�

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