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बीकानेर, रांगड़ी चौक के बड़ा उपासरा में शनिवार को यतिश्री अमृत सुन्दरजी ने अपने व्याख्यान में कहा कि सांसारिक विषय वस्तु की दीन हीन बनकर आसक्ति रखकर किसी से भीख नहीं मांगें। भीख मांगने पर व्यक्तित्व नीचा व छोटा होता है। वहीं किसी चीज चाह, कामना, इच्छा नहीं रखने वाले का प्रभाव अधिक होता है।
सांसारिक व्यक्ति विशेष की बजाए जगत का पालन करने वाले परमपिता परमात्मा से सुधर्म, संयम, समताभाव, सुबुद्धि, सुकर्म, सुविवेक, सुसंस्कार, सत्य साधना, भक्ति व शांति की राह पर चलने की कामना करें। सभी प्राणियों के संचित कर्म व संस्कार के कारण उलझी, कष्टमय जिन्दगी को परमात्मा की भक्ति सही कर सकती है। सांसारिक लोगों से कामना की पूर्ति नहीं होने पर अशांति, द्वेष आदि विकार प्राप्त होते है। आदि शंकराचार्यजी के कथन का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि छोटेपन की जड़ भीख मांगना,बड़े होने की जड़ किसी से कोई कामना, इच्छा नहीं रखना है। माता पिता बच्चों की आसक्ति, इच्छा नियंत्रण रखकर मांगने की आदत को नियंत्रित रखे। सत्य साधना से आसक्ति व दीन होकर मांगने की आदत समाप्त हो जाते है।
यति सुमति सुन्दर ने 18 पाप स्थानक का चिंतन करते हुए द्वेष के पाप से बचने की उपाय बताएं। उन्होंने कहा द्वेष व क्रोध आते ही मनुष्य जानवर की तरह हो जाता है,उसकी पशुता सामने आ जाती है। हरेक व्यक्ति में अच्छाई व गुण होते है, उसमें अच्छाई को देखे। दशवैकालिक सूत्र का श्लोक सुनाते हुए कहा कि संसार में पापों से बचने के लिए जीवन के हर कार्य यतना पूर्वक करें। जिन्दगी लेना व देना परमात्मा के हाथ में जीना हमारे हाथ है। जिन्दगी के सफर में सभी मुसाफिर की तरह है। सभी मुसाफिर प्रेम से रहे मैत्री पूर्ण रहे। यतिनि समकित प्रभा ने ’’महावीर स्वामी नयन पथगामी’’ ’’दिन भर भगवान आदि नाथबाला’’ व ’’बोल-बोल, आदिश्वर, ऋषभ देव, म्हासूं मुंड़े बोल’’ सुनाते हुए कहा कि जीवन की एक घटना ने भगवान आदिनाथ को जीवन बदल दिया। इसी तरह हमारा भी जीवन सत्य साधना, सुदेव, सुगुरु व सुधर्म के बताएं मार्ग पर चलने से बदल सकता है।

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