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बीकानेर,मणिपुर में 3 मई से हिंसा जारी है. इस हिंसा में 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है. मणिपुर में फैली हिंसा के मध्य में मैतेई और कुकी समाज है. मणिपुर हाई कोर्ट ने 20 अप्रैल को राज्य सरकार को मैतेई को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था. इस फैसले के खिलाफ कुकी समाज ने रैली निकाली थी. इसी दौरान दोनों समुदाय के बीच हिंसा फैल गई थी.

*नई दिल्ली,*
मणिपुर में 3 मई से हिंसा जारी है. हिंसा को लेकर लगातार मणिपुर सरकार और राज्य पुलिस पर सवाल उठ रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी हिंसा को लेकर दर्ज मामलों की जांच में देरी और चूक को लेकर मणिपुर सरकार की फटकार लगाई थी. इसके बाद मणिपुर सरकार ने कोर्ट में स्टेसस रिपोर्ट भी पेश की. हालांकि, इस रिपोर्ट में भी FIR से लेकर जांच कर में स्पष्ट खामियां नजर आ रही हैं.

*गंभीर अपराध FIR से गायब*
मणिपुर सरकार ने मंगलवार को दायर अपनी स्थिति रिपोर्ट में सिर्फ 11 ऐसे मामलों की पहचान की है, जिनमें महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध शामिल हैं.

इन मामलों में से एक केस महिला और उसके बेटे की कथित तौर पर पीटकर हत्या करने का मामला है, और 4 मई को भीड़ द्वारा एक अन्य महिला की हत्या के प्रयास को अंडर इन्वेस्टिगेशन दिखाया गया है. स्टेटस रिपोर्ट से पता चलता है कि मृतक का पोस्टमार्टम कराया गया था. हालांकि, FIR में दर्ज धाराओं में 302 (हत्या) या 307 (हत्या का प्रयास) का जिक्र नहीं है.
जीरो एफआईआर और 18 जुलाई को दर्ज की गई एफआईआर में सिर्फ दंगा, छेड़छाड़, आगजनी से संबंधित धाराएं लगाई गई हैं. FIR में धारा 143 (गैरकानूनी सभा), 148 (घातक हथियार के साथ दंगा), 427 (शरारत) के साथ ), दोनों एफआईआर में आईपीसी की धारा 436, 354 (छेड़छाड़) और 34 (सामान्य इरादा) दर्ज हैं.

स्थिति रिपोर्ट से पता चलता है कि शवों को मुर्दाघर में रख दिया गया था. पोस्टमार्टम किया गया है. वहीं, मृत महिला के पति ने पुलिस को अपनी लिखित शिकायत में बताया था कि उनकी पत्नी और बेटे को कार से खींच लिया गया था. इसके बाद उन्हें अज्ञात जगह पर रखा गया था.

इसके बावजूद स्टेटस रिपोर्ट में अपहरण, हत्या या हत्या के प्रयास के अधिक गंभीर अपराधों का कोई उल्लेख नहीं है. हालांकि यह कहा गया है कि मणिपुर पुलिस द्वारा मामले में स्वतः संज्ञान एफआईआर भी दर्ज की गई थी. यह मामला मीडिया में भी रिपोर्ट किया गया है, क्योंकि मारी गई महिला मणिपुर सरकार की एक अधिकारी थी जो लाम्फेल के पॉश सरकारी क्वार्टर में रहती थी.

*एफआईआर में गलत धाराओं का जिक्र*
रिपोर्ट में बताया गया दूसरा मामला 15 मई को 18 साल की एक लड़की के कथित अपहरण और सामूहिक रेप का है. इस मामले में, शिकायत में पीड़िता के हवाले से कहा गया है कि उस पर मीरापाइबिस और स्थानीय लोगों द्वारा हमला किया गया और उसका अपहरण किया गया.

लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि इस मामले में दर्ज FIR में सामूहिक बलात्कार की धारा 376 (जी) के तहत मामला दर्ज न करके 376 डी के तहत किया गया है. यानी जो कि किसी भी जेल, रिमांड होम या आश्रय स्थल के कर्मचारियों या प्रबंधन द्वारा उनके कैदी के साथ रेप का अपराध है. जबकि रिपोर्ट में कहा गया है कि लड़की ने संबंधित पुलिस स्टेशन के समक्ष अपना s161 बयान दर्ज कराया था.
इसके अलावा रिपोर्ट में बताया गया है कि घटना कथित तौर पर 15 मई की है, लेकिन आसपास के कैमरों का सीसीटीवी डेटा हटा दिया गया. इतना ही नहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि घटना की जगह की अभी तक पहचान नहीं हुई है और आरोपी व्यक्ति अभी भी अज्ञात हैं.

*पुलिस-आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई का अभाव*
रिपोर्ट में एक और मामले का हवाला दिया गया है, जिसमें सीआरपीएफ अधिकारी पर एक महिला को थप्पड़ मारना, लात मारने का आरोप है. एफआईआर में आईपीसी की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ का मामला दर्ज किया गया है. लेकिन स्टेटस रिपोर्ट में आरोपी अधिकारी की गिरफ्तारी या पूछताछ का जिक्र नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से बार-बार सवाल किया कि क्या दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई है, खासकर वायरल वीडियो के मामले में. जहां पीड़ित महिलाओं ने कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि पुलिसकर्मियों ने दोनों की मदद करने से इनकार कर दिया था. इतना ही नहीं कथित तौर पर पुलिस द्वारा उन महिलाओं को भीड़ के कहने पर उन्हें सौंप दिया गया.

सरकारी वकील इस सवाल का जवाब नहीं दे पाए कि वायरल वीडियो में दिख रही पुलिसकर्मियों पर लगे आरोप को लेकर अब तक कोई कार्रवाई हुई है या नहीं. राज्य द्वारा दायर स्टेटस रिपोर्ट में भी पुलिस कर्मियों के खिलाफ किसी भी आरोप का जिक्र नहीं किया गया है, और इसमें सिर्फ यह बताया गया है कि इस मामले में एक नाबालिग समेत 7 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि मणिपुर पुलिस ने 24 जुलाई को दोनों महिलाओं का बयान दर्ज किया था और मामले को जांच के लिए सीबीआई को भेज दिया गया है. हालांकि, स्टेटस रिपोर्ट में दायर धाराओं में 376 (G) को शामिल नहीं किया गया. इस धारा के तहत गैंगरेप के मामले में न्यूनतम 10 साल की कैद की सजा होती है. स्टेटस रिपोर्ट में जीरो FIR का भी जिक्र है. इसमें धारा 376 आईपीसी के तहत रेप का केस दर्ज किया गया है. जबकि स्टेसस रिपोर्ट में सामान्य FIR में रेप के अपराध को शामिल नहीं किया गया है. यह बात सोमवार को वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने भी सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी.

*सुप्रीम कोर्ट में क्या क्या हुआ?*
केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि स्टेटस रिपोर्ट में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा के 11 मामलों को भी राज्य सरकार की सिफारिश के अनुसार जांच के लिए सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया जाएगा. हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में बताया कि कुकी और मैतेई दोनों समुदाय की ओर से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हमले के मामलों का जिक्र किया है, जिन्हें स्टेटस रिपोर्ट में जगह नहीं दी गई है.

कुकी समुदाय के वकील निजाम पाशा और मैतेई के लिए पेश वकील जयदीप गुप्ता ने मंगलवार को बेंच को बताया कि मीडिया और समुदायों के साथ काम करने वाले गैर सरकारी संगठनों द्वारा महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा से जुड़े कम से कम 10 और मामले सामने आए हैं. जयदीप गुप्ता ने एक 80 साल की महिला के साथ हुई घटना का भी जिक्र किया. उन्होंने बताया कि एक 80 साल की महिला पर कथित तौर पर हमला किया गया, इसके बाद उसे जलाकर मार डाला गया. जबकि निजाम पाशा ने ऐसे 9 मामलों का जिक्र किया.

*सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार*
सीजेआई डिप्टी चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा कीबेंच ने मंगलवार को मणिपुर पुलिस द्वारा चूक के मुद्दे को उठाया, सीजेआई ने यहां तक ​​टिप्पणी की कि ऐसा लगता है कि राज्य मशीनरी पूरी तरह से विफल हो गई है. सरकार ने फिलहाल FIR और शिकायतों के मिलान के लिए समय मांगा है. सॉलिसिटर जनरल और अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में कहा कि स्टेसस रिपोर्ट काफी कम समय में पेश की गई है.

स्टेटस रिपोर्ट देखने के दौरान कोर्ट ने बार-बार सरकारी वकीलों से घटना की तारीख, जीरो एफआईआर की तारीख, एफआईआर दर्ज करने में देरी के कारण और जांच के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी मांगी. हालांकि, सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि समय की कमी की वजह वरिष्ठ कानून अधिकारी मणिपुर के अधिकारियों के साथ नहीं बैठ पाए और उन्हें ठीक से जानकारी नहीं दी जा सकी.

7 अगस्त को अगली सुनवाई
इस मामले की सुनवाई अब सोमवार 7 अगस्त को होनी है, राज्य सरकार को अब दर्ज की गईं 6000 से अधिक एफआईआर के लिए एक सारणीबद्ध रिपोर्ट दाखिल करनी है, जिसमें अपराध की तारीखें, एफआईआर की तारीख, एफआईआर में देरी की वजह, अपराध के प्रकार, उठाए गए कदम बताने होंगे.

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