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बीकानेर,रांगड़ी चौक के बड़ा उपासरा में बुधवार को यतिश्री अमृत सुन्दरजी ने भक्तामर स्तोत्र की दसवीं व ग्यारहवीं गाथा का वाचन-विवेचन करते हुए कहा कि परमात्मा की भक्ति के बल से जीवन के कल्मष दूर हो जाते है। परमात्मा की सुकथा,सुगुणांं का वर्णन पापों का नाश करता तथा उनके सद्गुणों की अनुभूति के साथ की गई भक्ति भव सागर को पार करवाने में सक्षम है।
उन्होंने भक्तामर स्तोत्र का श्लोक ’’आस्तां भव स्तवन-मस्त-समस्त-दोषं, त्वत्संकथापि जतं दुरितानि हति। दूरे सहस्त्र-किरणः कुरुते प्रभैव, पद्माकरेषु जलजानि विकास-भांजि’’ सुनाते हुए कहा कि सूर्य तेजस्वी किरणों से संसार का कल्मष दूर हो जाता है वैसे ही परमात्मा की कृपा की किरणे भक्त पर पड़ने से उसके सभी रोग, दोष, पाप, ताप व घात दूर हो जाते है।
यतिश्री ने कहा कि मानतुंगाचार्यजी ने भक्तामर स्तोत्र में भगवान आदिनाथ को सूर्य के समान उपमा देते हुए कहा कि परमात्मा की कथा, संदेश कल्याणकारी और सभी पापों को नाश करने वाले है। परमात्मा का नाम लेने व उनका वर्णन सुनने से ही प्राणियों के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं। परमात्मा सूर्य के निर्लेप है वे किसी बाधा से ं प्रभावित नहीं होते। सूर्य उदय से कमल को खिला देता है, ऐसे पापियों के पाप नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने रोहिणा चोर की कथा के माध्यम से कहा कि भगवान महावीर की वाणी उपदेश सुनकर व सदाचारों का पालन करने से कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है।
यति सुमति सुन्दर ने 18 पाप स्थानक का चिंतन करते हुए कहा कि माया, छल कपट के भाव मानव मन के अंतःकरण को प्रभावित करते है। मन, वचन व काया से जिसका जीवन एकसा होता है वह महात्मा, तथा मन वचन व काया से एक नहीं रहने वाला माया से वशीभूत दुर्रात्मा रूप् होता है। माया दिखती नही, लेकिन दूसरों को भ्रमित करती है। माया का कषाय, सांसारिक विषय भोगों से लोग कर्म के बंधन बांध लेते, दुखों को बढ़ा लेते है। दर्पण की तरह साधना दिखा देती है कि हमारा अंतःकरण कितना निर्मल व दूषित है। उन्होंने भजन ’’ आंख खोल ने देखों सा, शांत हृदय से सोचों सा, मिनख जमारों जावे है हाथ सूं’’सुनाया। यतनि समकित प्रभा ने कहा कि ज्ञान व ध्यान और सत्य साधना का मार्ग अपनाएं । प्रभु, ध्यान, साधना व भक्ति का मार्ग राग-द्वेष व विकार और दुखों को जड़ से समाप्त कर देता है। इस अवसर पर कन्हैयालाल भुगड़ी के तेले की तपस्या की अनुमोदना की गई।

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